"सचिन पर राजनीति या राजनीति में सचिन"…?

पिछले कुछ दिनों से देश के राजनीतिक परिदृश्य में सचिन का ही वर्चस्व बना हुआ है, क्योंकि अब सचिन जल्द ही माननीय सांसद महोदय बनने वाले हैं। लेकिन थोड़ा पीछे चले और याद करें कि जिस दिन सचिन और उनकी पत्नी अंजलि तेंदुलकर का गुपचुप तरीके से सोनिया गांधी से मिलना हुआ और उसके बाद खबर निकल कर आई कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने सचिन को राज्यसभा में भेजने के लिए मनोनयन किया है। इसके बाद देश की मीडिया ने इस खबर को इतना उछाला की अभी तक उसी विषय पर चर्चा, बयानबाजियां और बतकही जारी है। याद करिए की उसी दिन देश में बोफोर्स मामले में पच्चीस सालो से चला आ रहा एक नया घटनाक्रम जुड़ा, वह था की स्वीडिश जांचकर्ता स्टेनफोर्ड ने यह कहा की अमिताभ बच्चन का नाम इस मामले में केवल घसीटा गया है और वह निर्दोष हैं। और उसी दिन एक और घटना हुई की समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद और लोहिया के शिष्य बृजभूषण तिवारी जी का निधन हो गया था। लेकिन इन सभी खबरों को सचिन ने कही पीछे छोड़ दिया था। यह सचिन के प्रति देश का जुनून ही है की राज्यसभा जाने की उनकी खबर उस दिन के प्राइम टाइम में छायी रही।

उसी समय हमारे देश में एक कलेक्टर जिसका नक्सलियों द्वारा अपहरण कर लिया जाता है उसकी रिहाई के लिए होरही दुओं की खबर और उससे निजात पाने की कवायद भी इसी खबर के पीछे छूट जाती है, इसके अलावा स्टैंडर्डस एंड पुअर्स भारत की वित्तीय साख को कम करके आंक रही थी. तेलंगाना के कुछ कांग्रेसी सांसद ही विद्रोही तेवर अख्तियार कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में  कलेक्टर का अपहरण कर माओवादी सरकार के साथ सौदेबाजी कर रहे थे. बावजूद इसके खबरों की दुनिया  राज्यसभा के लिए सचिन के मनोनयन के इर्द-गिर्द ठहर गयी | चलिए अगर कल को सचिन राज्यसभा पहुंचेंगे तो क्या कर लेंगे या कांग्रेस का क्या नया कायाकल्प कर सकते हैं। यह भी एक बहस का हिस्सा है क्योंकि आखिर जब कोई सांसद देश की सर्वोच्च सदन में पहुँचता है तो उसे तब असल देश के आकांक्षाओं, नए नीव निर्माण और आधारभूत जरूरतों की पूर्ति करने और नए नियम कानून के साथ उसे इस दिशा में क्रियान्वित करने का जिम्मा होता है।  इसी परिप्रेक्ष्य में हमारे मास्टर ब्लास्टर कल को हमारे देश के लिए क्या नया कर सकते हैं।  अभी तक देश के लिए खेलते हुए उन्होंने केवल रिकार्ड का ही निर्माण किया है और वह रिकार्ड भी हो सकता है की आने वाले समय में जल्दी न टूटे। लेकिन यहाँ सांसद के रूप में उनकी नयी  पारी एक नया प्रश्न  खड़ा करती है की सचिन क्रिकेट में जिस परिपूर्णता की मिसाल बन कर सामने हैं, क्या संसदीय जीवन में भी वे उस परिपूर्णता की ओर आगे बढ़ पायेंगे? सवाल है कि क्या सचिन को यह जीवन रास आयेगा? क्या वह अपनी अलमस्त और अभी तक निर्विवाद वाली छवि को कायम रख पाएंगे ? क्योंकि अब जिस जगह उनकी पारी की शुरुआत होगी वहां की पिच बहुत सपाट और आरोपों के उछाल और बाउंसर पड़ने के लिए जानी जाती है। लेकिन इसीलिए एक ऐसे क्षण में, जब कांग्रेस के बारे में कहा जा रहा है कि उसके भीतर नेतृत्व का संकट है, पार्टी संगठन में भारी फेर-बदल की चर्चाएं हैं, नीतियों को लकवा मार गया है, मंत्रियों पर भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं, ऐसे निराशाजनक माहौल में सचिन को राज्यसभा के लिए नामित करना उनकी उपलब्धियों का सम्मान कम, कांग्रेस की अपने मौजूदा संकट से उबरने की कोशिश ज्यादा दिखती है. लेकिन यह कवायद ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे की राह पकड़ ले, तो हैरत नहीं होनी चाहिए।

अगर सचिन क्रिकेट के मैदान पर बेजोड़ हैं, तो भारतीय खेलों में मौजूदा समय में ही टेनिस कोर्ट पर लिएंडर पेस, निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा भी मौजूद हैं.अगर एक पल के लिए आप इन नायकों की उपलब्धियों को अहमियत देने से हिचकिचा रहे हों, तो इतना तो मानना ही पड़ेगा कि दिलीप तिर्की ने इसी भारत में हॉकी के मैदान पर उपलब्धियों के नये कीर्तिमान गढ़े. चाहे-अनचाहे क्रिकेट के जुनून के बीच हॉकी आज भी इस देश का राष्ट्रीय खेल है.

दिलचस्प है कि अगर सचिन ने भारत के लिए सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेले हैं, तो दिलीप टिर्की ने भी सबसे ज्यादा 412 अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में शिरकत की है. तीन बार के ओलिंपियन दिलीप तिर्की भी राज्यसभा पहुंचे हैं. इसी बुधवार को बीजू जनता दल की ओर से दिलीप तिर्की ने राज्यसभा में शपथ ली.दिलीप तिर्की के राज्यसभा पहुंचने की खबर पर एक पल के लिए ठहर कर गौर करें. क्या आपने इसे अखबार या टेलीविजन की स्क्रीन पर उसी शिद्दत से उभार लेते देखा, जैसे सचिन की खबर मीडिया पर हावी है? बिल्कुल नहीं. इसकी साफ वजह है- टिर्की भारतीय हॉकी के बेजोड़ खिलाड़ी हैं, लेकिन उन्हें लेकर कोई मिथक नहीं गढ़ा गया. ठीक यहीं सचिन एक मिथक में तब्दील हो चुके हैं.

वास्तव में यह कोई नयी बात नहीं है की कोई लोकप्रिय अभिनेता या खिलाड़ी या व्यक्तित्व सांसद बन रहा है। आज से पहले भी कई लोग आये और गए हो गए उन्होंने कोई विशेष छाप नहीं छोड़ी कहीं ऐसा ही सचिन के साथ भी न हो यही बहस होनी चाहिए क्योंकि राजनीति में सामंजस्य बैठाना सभी के  बस का नहीं होता नेतृत्व और राजनीति का कीड़ा और उस कीड़े को जीवन पर्यंतजीवित रखने का गुण ईश्वर प्रदत्त होता है , इसी के साथ यही भी सच है की सचिन ने केवल खेल को लेकर ही अपना जीवन देखा और व्यतीत किया है राजनीति उनके लिए कांटो के रास्ते पर चलने जैसा हो सकता है क्योंकि इस राजनीति में सचिन को लेकर केवल एक बात ही निकल आती है की “बहुत कठिन है डगर पनघट की “…।

अभिषेक द्विवेदी

इण्डिया हल्लाबोल

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