सरकार और विपक्ष की एक और परीक्षा …" राष्ट्रपति चुनाव "…

पिछले कुछ समय से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन लगातार चुनावों में अपने आपको बेचारा सा पा रहा है। अभी कुछ समय पहले ही संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनावों में बहुप्रतीक्षित सफलता न पाने का मलाल अभी भी सरकार और उनके कद्दावर नेताओं को हो रहा है। अब इसके बाद इस ग्रीष्मकाल में एक और गर्मी सरकार की सिरदर्दी बनी हुई। आने वाले समय में राष्ट्रपति का चुनाव गठबंधन और सरकार के लिए नाक का प्रश्न बन गया है। इधर बीच इस राष्ट्रपति  चुनाव के लिए लगातार मोर्चो और गठबंधन बनाने का कार्य भी जोर शोर से हो रहा है। सरकार के लिए नयी परेशानी यह है की अपने साथियो के साथ ही किसी तरह का तालमेल नहीं बन पा रहा है। उनके गठबंधन के सहयोगी शरद पवार या ममता बनर्जी या फिर जयललिता, सभी ने अपने अपने तरीके से सरकार से तोल  मोल करके राजनीति की नयी शुरुआत कर दिए हैं। 2014 के आम चुनाव में नयी राजनीति की शुरु आत करने के लिए राष्ट्रपति चुनाव एक अच्छा अवसर बन सकता है, लेकिन पूरे तीसरे मोरचे के लोगों में हौसला खत्म हो गया लगता है।

इधर अभी भाजपा की सुषमा स्वराज ने बहुत सोच कर और चालाकी से राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की तरफ से आ रहे नामों का विरोध किया और अपनी ओर से एपीजे अब्दुल कलाम का नाम उछाला था, पर वह दावं उल्टा पड़ गया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (राजग) के दो घटक दलों, जदयू और अकाली दल, ने उनके स्टैंड का विरोध किया और राजग को अपने घटक दलों से विचार-विमर्श करने की घोषणा करनी पड़ी, लेकिन कलाम जी से जब अगले राष्ट्रपति चुनाव के बारे में चुनाव लड़ने की बात पूछी गयी तो उन्होंने कहा की इन्तजार और देखने की बात कही गयी जिससे यहाँ कहा जा सकता है की वो भी अगले राट्रपति के चुनावों के लिए उम्मीदवारी  के लिए तैयार है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश चुनाव में ऐतिहासिक सफलता पाए हुए गदगद मुलायम सिंह यादव भी केंद्र की राजनीति में अपने पैर जमाये हुए है और एक अच्छी घुसपैठ करने के लिए बेताब है। वैसे उनकी ख़ुशी भी फ़ालतू नहीं है राष्ट्रपति चुनाव के लिए अगर कांग्रेस को अपने पसंद के उम्मीदवार को सफलता दिलानी है तो उनको दजरंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए आवश्यक मूल्यों का मत का एक हिस्सा वहभी रखते है। जो सगभग सत्तर हजार के करीब बैठता है। अभी मुलायम यादव जहाँ तक किसी मुस्लिम राष्ट्रपति की लाबिंग कर रहे हैं तो उससे यह भी सन्देश देने के लिए आतुर लगते हैं की मुस्लिम समाज के लिए अभी भी वह सब कुछ कर सकते हैं। इधर बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए हामिद अंसारी या फिर कलाम के नाम को उछाला था।

ममता बनर्जी यदि यूपीए सरकार की दुखती रग हैं, तो द्रमुक के लोग सत्र शुरू होने के दिन भी सरकार को मोहलत देने की स्थिति में नहीं थे. राष्ट्रवादी कांग्रेस का खेल बहुत छुपा नहीं है। लालू-रामविलास जी समर्थन देना चाहते हैं, तो इनके वजनहीन समर्थन की तुलना में इनके साथ की राजनैतिक कीमत बहुत अधिक है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को एक साथ साधना भी आसान नहीं है।  और जो बात अभी कोई नहीं कह रहा है, वह यह है कि तीसरे मोर्चे की राजनीति और बीते 20-25 वर्षो में देश की राजनीति में जो बड़े बदलाव हुए हैं, उनके अनुकूल नयी पहल करने के हिसाब से यह स्थिति सबसे उपयुक्त है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पास इस वक्त 40 प्रतिशत से अधिक वोट हैं, जबकि राजग के पास 30 प्रतिशत से कम। इस तरह किसी भी गठबंधन के पास इतना वोट नहीं है कि वह किसी को राष्ट्रपति चुन सके। दूसरी तरफ पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने अपने पिता प्रकाश सिंह बादल को देश का आगामी उपराष्ट्रपति बनाए जाने की संभावनाओं पर कुछ नहीं कहा। पूछने पर कि अगर बादल देश के अगले उपराष्ट्रपति बन गए तो, सुखबीर ने कहा, ‘राजग नेतृत्व इस मामले में संयुक्त रूप से निर्णय लेगी। ’इधर बीच राष्ट्रपति चुनाव के लिए सभी अपनी अपनी राय रख रहे हैं एन सी पी के नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा ने कहा की अगला राष्ट्रपति कोई आदिवासी ही हो तो बढ़िया होगा। एक ताज़ा घटनाक्रम में सरकार के अभी तक संकटमोचक प्रणव दा का भी नाम निकल कर आया की वो बनेगे लेकिन उन्होंने इसे केवल अटकले ही बताया। लेकिन प्रणव दा ऐसे व्यक्ति हैं की उनके नाम पर सभी की सहमती बन सकती है। उनके नाम पर ममता , मुलायम और जया जैसे भी सहमत हो सकते है। राष्ट्रवादी कांग्रेस का यहाँ बात को मानने के आलावा कोई स्टंट नहीं दिखता क्योंकि वह ऐसी स्थति में नहीं हैं की रार मचाएं।

वैसे अगला राष्ट्रपति चुनना हमारी सरकार के लिए आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए एक नया सबब बन सकता है क्योंकि यहीं से वह आने वाले समय में अपने संभावित दोस्तों और दुश्मनों का चुनाव कर सकते हैं। इन सभी बातो के बीच एक बात तो तय है की इस बार के प्रेसिडेंशियल चुनाव में एम की तिकड़ी का काफी दखलंदाजी होगा क्योंकि इन एम तिकड़ी यानी ममता, मुलायम और मायावती पर कांग्रेस का काफी कुछ दांव पर लगा है। यहाँ कांग्रेस के लिए मुलायम और मायावती को साथ लेकर चलने एक पारदर्शिता और ठोस निर्णय की आवश्यकता होगी। यह भी सही है की उत्तर प्रदेश  में ये तीनो तीन विपरीत ध्रुव की तरह है जो शायद ही कभी एक जुट होंगे। लेकिन इस राष्ट्रपति चुनाव के लिए यह कांग्रेस के कुशल रणनीतिकारो के लिए वास्तव में एक बड़ी परीक्षा होगी।

 

अभिषेक द्विवेदी

{इन्डिया हल्लाबोल, दिल्ली}

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