जानिये भारतीय शिक्षा पद्ति कैसे देश की संस्कृति और संस्कारों का हनन कर रही है।

भागवत कथा वाचक श्री देवकीननदन ठाकुर जी महाराज ने देश में एक नया मुद्दा उठा दिया है। जाने अनजाने में हम सभी भी ये गलती रोज दोहरा रहें है लेकिन हमे आज तक इस बात का पता नहीं चला।

हम भी टेररिज्म को बढ़ावा दे रहे हैं और वो टेररिज्म है “कल्चर टेररिज्म”।

महाराज श्री ने कल्चर टेररिज्म को यूँ समझाया:-

सरहद पार से आकर जो उग्रवादी हमें बेवजह गोलियां मार जाते हैं। अपनी सनक के लिए, कट्टरता के लिए या हिन्दू धर्म को सॉफ्ट टारगेट मानते हुए, विश्व में थोड़ी सी बची हिन्दू सोसाइटी और खंड-खंड होने के बाद छोटे से बचे टुकड़े सनातन भूमि हिंदुस्तान को अपने में मिलाने के लिए, इस विद्वान सोसाइटी को भी अपनी सोसाइटी में मिलाने के लिए वो ऐसा करते हैं, पर इसके मुकाबले कल्चर टेररिज्म कितना खतरनाक है ये जानना ज़रूरी है।

महाराज श्री ने कहा जो मैं अभी कहने जा रहा हूँ, उसके बारे में आप सब लोग जानते तो होंगे पर उसपर इतना ध्यान नहीं देते होंगे। देखिये आप अपने किसी ईसाई बंधू या अपने किसी मुस्लिम बंधू से पूछेंगे तो आपको पता चलेगा कि उन्हें अपने धर्म से जुड़े इतिहास के बारे में जानकारी भी है, वो उसका सम्मान भी करते हैं और वो अपने संस्कारों पर पूर्णतया विशवास भी करते हैं जोकि बहुत अच्छी बात है। अब हम अपने आप को देखते हैं, पहली बात तो यह कि हमे अपने धर्म, अपने संस्कारों, अपने ग्रंथों और अपनी संस्कृति के बारे में या तो पता ही नहीं है या फिर बहुत कम जानते हैं, दूसरी बात यह कि हमे अपने धर्म पर,अपने भगवान पर विश्वास ही नहीं है और हमारा इतिहास तो भूल ही जाओ। हमें अपने संस्कारों को, अपनी संस्कृति को ढोंग बताने में बिलकुल भी शर्म नहीं आती। खैर इसमें आप लोगों की कोई गलती नहीं है क्योंकि इसके पीछे एक षड्यंत्र था, जिसके अन्तर्गत आपको आपके धर्म के बारे में सिर्फ यह बताया गया की उसमें कितनी कुरीतियां हैं, कितने आडम्बर हैं पर यह नहीं बताया गया कि उसमें कितना विज्ञान है।

यह कल्चर टेररेरिस्म है

सबसे ज़्यादा अगर नुक्सान हो रहा है तो वो कल्चर टेररिज्म से हो रहा है। ये एक ऐसा घुन है जो कहीं न कहीं हमारी संस्कृति को खोखला कर रहा है। हम वंशज तो ऋषि मुनियों के हैं पर अंदर से संस्कृति और संस्कार मरते जा रहे हैं और इसकी शरुवात इस देश में संस्कृत के मरने से,संस्कृत के BAN होने से और संस्कृत को हमसे दूर करने से हुई और इसकी शुरुआत 1834 में लॉर्ड मैकाले ने की जिसके कहने पर गुरुकुलम ख़त्म किये गए। गुरुकुलम प्रत्येक गांव में थे, उस समय जोकि बहुत पुरानी बात नहीं है, भारत देश में लगभग 7 लाख 32 हज़ार गांव थे और तकरीबन इतने ही गुरुकुल थे। गुरुकुलम में ही मंदिर मौजूद होते थे जो गांव में प्रशासन व्यवस्था की तरह थे। मंदिर ही गांव में धर्म व्यवस्था राज्य व प्राकृतिक अनुकूलताओं के अनुसार गांव गांव में व्यवसाय, घर घर में लघु उद्योग और कृषि व्यवसाय के रूप में व्यवस्था स्थापित करते थे। वो लघु उद्योग का सामान उस समय की परिवहन व्यवस्था जिन्हें हम व्यापारी, वणजारे जो वणज यानि व्यवसाय को घर घर जाकर लघु उद्योगों से माल उठाते और दुसरे राज्यों में नगरों व नगरों के बाहर स्थापित मंडियों में पहुंचाते वहां से बाजार में सामान दूकानदार ले कर जाते जिन्हें उस वक्त  वैश्य और बजाज के नाम से पुकारा जाता था। वैश्य का व्यापार का सञ्चालन करने वाले उत्तर और मध्य भारत में जाने जाते थे और बजाज सिंध प्रान्त से दर्रा खैबर तक जाने जाते थे। उन्ही सिन्धुओं की वजह से हम हिन्दू हो गए जो ईरानियों ने हमें नाम दिया। यह था पहला कल्चर टेररिज्म।

2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में मैकाले की भारत के प्रति विचार और योजना मैकाले के शब्दों में:

“मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे। जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम इसकी पुराणी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्यूंकी अगर भारतीय सोचने लग गए की जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्म सम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।”

हमें अपना राज्य सुदृढ़ करने के लिए ऐसे लोग चाहिए जो रक्त और रंग में तो भारतीय हों, पर रुचियों में, दृष्टिकोण में, नैतिकता में और बुद्धि में अँगरेज़ हों. ऐसे लोग तभी तैयार किए जा सकते हैं जब उन्हें यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी जाए. अत: हमें यह राशि “यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान” (इसी को अब हम लोग “आधुनिक ज्ञान-विज्ञान” कहने लगे हैं) के प्रसार पर खर्च करनी चाहिए.

मैकोले का स्पष्ट कहना था कि:

भारत को हमेशाहमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।

मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि::

इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी 

सन् 1836 में लार्ड मैकाले अपने पिता को लिखे एक पत्र में कहता है:

अगर हम इसी प्रकार अंग्रेजी नीतिया चलाते रहे और भारत इसे अपनाता रहा तो आने वाले कुछ सालों में 1 दिन ऐसा आएगा की यहाँ कोई सच्चा भारतीय नहीं बचेगा। (सच्चे भारतीय से मतलब……चरित्र में ऊँचा, नैतिकता में ऊँचा, धार्मिक विचारों वाला, धर्मं के रस्ते पर चलने वाला)।

अगर मैकाले की व्यवस्था को तोड़ने के लिए मैकाले की व्यवस्था में जाना पड़े तो जाएँ…. ‘अंग्रेजी गूगल’ का इस्तेमाल करके हिंदी लिखता हूँ और इसे ‘अँग्रेजी फ़ेसबुक और ट्विटर’ पर शेयर करता हूँ।

 …..क्यूंकी कीचड़ साफ करने के लिए हाथ गंदे करने होंगे। हर कोई छद्म सेकुलर बनकर सफ़ेद पोशाक पहन कर मैकाले के सुर में गायेगा तो आने वाली पीढियां हिंदुस्तान को ही मैकाले का भारत बना देंगी। उन्हें किसी ईस्ट इंडिया की जरुरत ही नहीं पड़ेगी गुलाम बनने के लिए और शायद हमारे आदर्शो ‘राम और कृष्ण’ को एक कार्टून मनोरंजन का पात्र।

आज हमारे सामने पैसा चुनौती नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन चुनौती है। इसकी रक्षा और इसको वापस लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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