"हमारी राष्ट्रीय नीति पर लगते प्रश्न चिन्ह "

हमारी सरकार और उसकी नीतियाँ या यूँ कहें की हमारी सरकार द्वारा अपनाई जा रही नीतियाँ कितनी स्पष्टवादी हैं और राष्ट्रीय ,अन्तराष्ट्रीय मापदंडो पर कितनी सकारात्मक हैं इस विषय पर शायद ही कभी कोई चर्चा होती है। सरकार पहले तो अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर कुछ स्पष्ट रवैया नहीं दिखाती, जिसके कारण अंतराष्ट्रीय फलक पर हमेशा उसको विश्व की तथाकथित महाशक्तियो के आगे नतमस्तक हो जाना पड़ता है, लेकिन क्या कारण है कि राष्ट्रीय परिदृश्य में भी दोहरा मुखौटा पहन लेती है। शायद यह हमारी नेतृत्व की दूरदृष्टि की कमी और त्वरित निर्णय लेने की अक्षमता है।

आज जिस तरह से वर्तमान समय सारे विश्व पटल पर एक असंतुलन सा दिखाई पड़ता है, उस से यही कहा जा सकता है की आज सारे बड़े छोटे राष्ट्रों ने परस्पर एक दूसरे पर हावी होने का मौका नहीं छोड़ना चाहते। चाहे वह अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय नीति हो या फिर ईरान की बढती हुई ललक या फिर चीन की अपने आप को सर्वशक्तिमान के रूप में प्रायोजित करने की बातें हो। सारी चीजो का विश्लेषण करने पर यही कहा जा सकता है की आज बदलते संसार में पल पल बड़े सवाल उठ रहे हैं और यहाँ सबको लेकर चलाना ,सबकी बातें करना मुश्किल ही हैं, लेकिन ग्लोबलाइजेशन के मुद्दे पर सभी के सवाल और परेशानियां संयुक्त ही हैं। किन्ही दो देशों के आपसी रिश्ते, चाहे वे पडोसी हो या अपनी विदेश नीति के उन्नति की ओर अग्रसर होने के रूप में कटिबद्ध हो, दोनों के रिश्ते अंतर्राष्ट्रीय फलक पर उन देशो का भविष्य तय करते हैं और यह विचार इनकी भूमिका का प्रभावी तत्त्व है। इसी के साथ किसी देश के समुदाय और समाज खुद को किस तरीके “रिप्रजेंट” करते हैं यह भी देश का राजनितिक, सामाजिक भविष्य तय करता है। यहाँ ऐसे ही कुछ विचारों का आदान प्रदान और विश्लेषण किया जा रहा है।

चीन की बढती दखलंदाजी :- समय के साथ पड़ोसी मुल्क चीन की भाषा और व्यवहार में बदलाव ला दिया है और यह बदलाव इस कदर तक बढ़ गया है कि चीन के विदेश मंत्रालय का मामूली अधिकारी भी भारत के “पश्चिम बंग “प्रदेश के गवर्नर को आँखे दिखाकर कर बोलता है कि वह दलाई लामा के कार्यक्रम में शिरकत न करने जाए,और यह समारोह कोलकाता में संपन्न होता है। इस घटना को आप क्या कहेंगे? इस से आगे भी एक तथ्य आता है कि चीन ने भारत के करीब 1.35 लाख वर्गमील क्षेत्रफल पर कब्ज़ा कर रखा है। यह अपने आप में एक ऐसी बात दर्शाता है कि क्या हम इतने दयनीय हो गए हैं। हम अंतर्राष्ट्रीय फलक पर आपसी सामंजस्य बना कर चलते हैं। कहीं भी असंतुलन नहीं पैदा करते, लेकिन हमारी इस शराफत को लोग हमारी निष्क्रियता मान बैठते हैं चीन से अभी भी ग्यारह पड़ोसी मुल्को से सीमा विवाद है। तीस वर्षो से दोनों मुल्को  में सीमा को लेकर अंतहीन बातचीत हो रही है। चीन कि मनमानी कि २००६ में हद हो गयी थी जब अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा कर दिया था और अभी तक जम्मू कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानता। पाकिस्तान के अनधिकृत कश्मीर में अपनी फ़ौज रखता है। अब यहाँ तक खबर आ रही है कि अरुणाचल प्रदेश के आस पास हमारी सीमा में अनधिकृत निमार्ण भी कर रखा है। यह हमारी सरकार की कमजोरी ही है जो इस मुद्दे पर खुला कर बात बात नहीं करती और केवल पाकिस्तान का ही भय सार्वजनिक करती है जिस से हमारे  आम जन मानस का ध्यान उधर ना जाए। ऐसे में देश को एक नए राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता है जो हमारे पस्त होते हौसलों को ऊपर उठा सके।

सब्सिडी पर घाल मेल :- हमारे हर वर्ष पेश होने वाले बजट में सब्सिडी को बहुत महत्व दिया जाता है इसकी बहुत चर्चा भी  होती है ,जबकि सत्य यह है कि सब्सिडी के नाम पर लूट और बंदरबाट जारी है। हर वर्ष हमारी सरकार जनता और विशेष कर मध्यमवर्गीय परिवारों को खाद्य, पेट्रोलियम पदार्थों आदि पर कितनी छूट देती है और बजट में सब्सिडी के नाम पर घाल मेल भी होता  रहता है। वर्ष 2011-12 के बजट में हमारी सरकार ने 1,43,570 करोड़ की सब्सिडी का प्रावधान था, हाल ही में वित्त मंत्री प्रणव दा ने कहा कि इसमें 80 हजार से एक लाख करोड़ तक की बढ़ोत्तरी होगी, मतलब यह हुआ की सब्सिडी बढ़ कर 2,23,570–2,43,570 करोड़ के बीच होगी। उर्वरक पर यह सब्सिडी लक्ष्य से पचास हजार करोड़ से अधिक है। खाद्यान्न पर 60,573 करोड़ की सब्सिडी है। अब यह भी बढ़ने की संभावना है। 1.32 लाख करोड़ की सब्सिडी पट्रोलियम उत्पादों पर भी है। अगर इस सब्सिडी राशि की जांच की जाए तो मालूम होगा की भ्रष्टाचार कितना गहरा और भयावह हो गया है। अगर इसे कम करने की बात करें तो एक वर्ग में तूफ़ान खड़ा हो जाता है। जांच हो जाए तो पता च जाएगा कि गरीबो कि सब्सिडी से कितने अरबपति –खरबपति और धनवान पैदा हो गए हैं।

कुल मिलाकर यहाँ दोष हमारे सरकार और इसकी नीति का ही है जो हमें घर से लेकर बाहर तक यानी अंतर्राष्ट्रीय फलक तक अपनी मजबूरी और असमर्थता दिखाती हैं, इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे क्योंकि उपरोक्त मुद्दे काफी गंभीर हैं।

अभिषेक दुबे

इंडिया हल्ला बोल

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