जब तक यह खबर आप तक जाएगी संभव है की तब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका होगा ,और तब तक चुनाव और सर पर चढ़ कर बोलने लगा होगा |इस चुनावी प्रदेश में यूँ तो सभी दलों ने अपने चुनावी परफार्मेंस के लिए मानक तय कर रखे हैं ,लेकिन इस चुनाव में यह मानक जातिगत समीकरणों पर भी आधारित होगा |पिछले दो दशक की राजनीति में यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमे चुनावी पंडितो की सारी गणित फेल होती जा रही है |चुनाव शास्त्रियों को अबकी बार मतदाताओं का मूड समझने में दिक्कत हो रही है ,और वे कोई भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं |
इस बार चुनावों की जो भी हलचल दिखाई दे रही है उसे देख कर लगता है जैसे उत्तर प्रदेश ही भारत का भाग्य विधाता है |इसमें कोई दो राय नहीं है की यह सूबा हमेशा से राजनीति का केंद्र रहा है ,चाहे वह सांसदों की संख्याबल को लेकर हो या फिर केंद्र की सत्ता का किंग मेकर की भूमिका बनाने को लेकर हो |वैसे इस चुनाव में सभी पार्टियों का एक केन्द्रीय लक्ष्य अल्पसंख्यको के मतों में सेंध लगाना भी है ,तभी तो केन्द्रीय सत्ता ने चुनाव के ठीक पहले ही अल्पसंख्यको को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देकर सबसे पहले इन वोटो पर झपट्टा मारने की कोशिश की |
असली परेशानी यह है किअपने पथप्रदर्शक व सलाहकार कि सुझाई रणनीति के तहत राहुल गाँधी ने अपना सर्वस्व उत्तर प्रदेश के चुनाव में लगा दिया है |उनके करिश्माई व्यक्तित्व का जादू अगर नहीं चला तो अगले लोकसभा के सिलसिले में उनके प्रशंसको कि बोलती बंद हो जाएगी |इसके अलावा कांग्रेस यह भी मुगालता पाले हुए है कि मायावती से दलितों का मोह भंग हो चुका है और वह फिर से कांग्रेस की तरफ लौटने को व्याकुल हैं | लेकिन यह अभी दूर की कौड़ी है |अगर मुसलमान भी दिग्विजय पर भरोसा कर मुलायम ,माया से बिछुड़ जाते हैं तो फिर बात ही क्या कहनी |
इसके बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा खींचतान पिछड़ा और सवर्ण वोटो के लिए हो रही है |दलित और मुस्लिम वोटो की दावे दारी पिछड़ा और सवर्ण वोटो के मुकाबले कुछ स्पष्ट है ,लेकिन यू पी में चुनाव लड़ रही चारो बड़ी पार्टियाँ पिछडो के वोट को लेकर सबसे ज्यादा राजनीति कर रही हैं |सभी पार्टियों को अलग अलग कारणों से उम्मीद है पिछड़े उसे वोट करेंगे |इसके कारण भी स्पष्ट हैं जैसे मुलायम को यादव के कारण,कांग्रेस को बेनी प्रसाद के कारण .भाजपा को उमा भारती के कारण और बसपा को पिछडो को सबसे ज्यादा टिकट देने और सरकार में होने के कारण |उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वोटों की राजनीति में अल्पसंख्यक आरक्षण की घोषणा सबसे अहम् टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है |
इस घोषणा के बाद पिछड़ा राजनीति तेजी से बदली है |उस से पहले तक सिर्फ सवर्ण वोट की राजनीति कर रही भाजपा ने पैंतरा बदला ,अपनी छवि का जोखिम उठा कर बसपा से निकाले गए दागी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को अपनी पार्टी में शामिल करवाया ,इसके बाद उमा भारती कटियार आदि के नाम पर पिछड़ा राजनीति में कूद पड़ी |भाजपा ने सबसे ज्यादा इस मुद्दे को हाई लाईट किया की कांग्रेस ,बसपा ,सपा तीनो ओ बी सी कोटे में से पिछडो का हक मार कर अल्पसंख्यको को देने जा रहे हैं |
अल्पसंख्यक आरक्षण का वादा कर भाजपा के अलावा तीनो पार्टियाँ पिछडो की नजर में विलेन बनी हैं |भाजपा इस का फायदा उठाना चाह रही है |यू पी के आधे मतदाता पिछड़ा समूहों से हैं ,इनमे सबसे ताकतवर समूह यादवों का है ,जिन पर सबसे बड़ी दावे दारी मुलायम सिंह की है लेकिन गैर पिछड़े यादवो में मुलायम की असरदारी नहीं दिखतीहै | मुलायम के पास बेनी प्रसाद हुआ करते थे ,जिनकी वजह से उनको गैर पिछड़े भी वोट करते थे ,मगर अब बेनी बाबू कांग्रेस के लिए पिछड़ा वोट पटा रहे हैं |
इस बार दलित वोटों की निष्ठा को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है ,प्रदेश का इक्कीस प्रतिशत दलित वोट आम तौर पर मायावती के ही साथ रहा है और पांच साल के निर्बाध शासन में दलित समुदाय का भला किया है |संगठन के स्तर पर उन्होंने कोई समझौता नहीं किया ,प्रशासनिक स्तर पर उन्होंने इनके हित्कार्यो की समीक्षा करने के किए समन्वयक भी बनाए थे ,ताकि दलितों का हित हो सके |यहाँ राहुल गाँधी ने इस वोट बैंक पर सेंध लगाने की कोशिश की ,कई रात उन्होंने दलितों के घर पर बिताया उनके यहाँ खाना खाकर उनका विशवास जितने की कोशिश की ,लेकिन इसके बाद भी दलित मत टूटेंगे इसमें संदेह है |
कुल मिला कर इस चुनाव में आने वाला समय निर्णायक होने वाला है क्योंकि सभी की कोशिशें , आशाएं और विश्वास केवल समय के भरोसे और जनता जनार्दन के मानसिकता पर ही टिका है ,और अब की जनता को बरगलाना इन दलों को धोखा दे सकता है ,क्योंकि जनता का अब जागरण हो चुका है |
अभिषेक दुबे
इंडिया हल्ला बोल