अधर में लटका ड्रीम प्रोजेक्ट

सोनिया गाँधी का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाने वाला खाद्य सुरक्षा बिल की मांग अभी फ़िलहाल अधर में लटकता हुआ दिख रहा है। जिसे महीनों की बातचीत के बाद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (रासप) ने एक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की सिफारिश की थी। इसमे देश के गरीब और असहाय लोगों को सरकार की तरफ से खाद्य मुहैया करने को कहा गया है। जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का प्रस्ताव है कि भारत की आबादी के कम से कम तीन चौथाई हिस्से के लिए, जिसमें 90 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी आती है, सरकारी अनुदान पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए कानून बनाया जाए। इसके अन्तर्गत 75 प्रतिशत को पूर्वाधिकार परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा जाना है। इसके अंतर्गत आने वाले परिवार को हर महीने एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर से 35 किलो अनाज-(ज्वार, बाजरा आदि) दो रुपये की दर से गेंहू और तीन रुपये की दर से चावल पाने के अधिकारी होंगे जबकि आम परिवारों को 20 किलो पाने का अधिकार होगा, जिसका मूल्य हालिया न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा, जो आजकल साढ़े पांच-छह रुपये प्रति किलोग्राम पड़ता है। इस ड्रीम प्रोजेक्ट के अंतर्गत 14 साल के लड़के और लडकियों तथा गर्भवती महिलाओं के लिए नगद सहायता का प्रावधान है।

सोनिया गाँधी का ड्रीम प्रोजेक्ट इतना बड़ा है कि देश का एक बड़ा भाग इसके अंतर्गत आ जाता है। जिसके लिए उतनी ही ज्यादा अनाज की आवश्यकता भी होगी। जो करीब 20 से 25 मिलियन टन अतिरिक्त अनाज की जरूरत होगी। देश की जनता के लिए यह बात बहुत अच्छी है लेकिन इस प्रोजेक्ट को आन्न – फन्ना में बनाने के कारण इसमें बहुत सी कमियां है। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि सोनिया ये प्रोजेक्ट को लाकर पार्टी की छवि को सुधारने का प्रयास है। जो कि एक चुनावी हथकंडा है।

कई लोगों ने खाद्य सुरक्षा बिल की कमियों को लेकर विरोध है। इस मामले में कृषि, खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने पहले ही अपने बयान में यह कह दिया था कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चहेते खाद्य सुरक्षा विधेयक को कानून बना दिया गया तो देश राजकोषीय घाटे के दलदल में घंस जाएगा।

उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत अगर गरीब परिवारों को महीने में 25 किलो अनाज दिया जाता है तो सरकार को 76720 करोड़ रुपए की खाद्य सब्सिडी देनी पड़ेगी। अगर 35 किलो अनाज दिया जाता है तो खाद्य सब्सिडी का बोझ 1.07 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर विधेयक के मुताबिक गरीब परिवारों को दो रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से गेहूं दिया
जाना है, इससे सरकार के ऊपर प्रति किलो 17 रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इससे राजकोषीय घाटे को संभालने का सारा गणित चौपट हो सकता है। चालू वित्त वर्ष 2010-11 में खाद्य सब्सिडी के लिए 55,578 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

पवार ने कहा कि अगर खाद्य सुरक्षा कानून के चलते ज्यादा सब्सिडी देनी पड़ी तो हम 2012-13 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 4.1 फीसदी तक लाने का लक्ष्य नहीं हासिल कर पाएंगे।

लेकिन इस कानून का समर्थन करनेवालों का कहना है कि इससे देश के 40 करोड़ गरीबों को भुखमरी से बचाया जा सकता है। साथ ही यह कि सरकारी खरीद का लाखों टन अनाज अभी बरबाद होता रहता है, जिसका आगे सदुपयोग किया जा सकता है।

जाहिर है योजना का स्वरुप काफी बड़ा है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि जब देश में महंगाई और आर्थिक मंदी जैसे संकट है तो इस योजना के लिए इतना पैसा (1 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपए की जरूरत होगी) कहा से आयेगा। एनएसी के अनुमान के मुताबिक सरकार को इस योजना के लिए करीब 28 हजार करोड़ की अतिरिक्त सब्सिडी देनी होगी। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि मौजूदा राशन की दुकानों से इसे कैसे लागू किया जाएगा।

जहाँ देश में करीब 40 प्रतिशत लोग 20 रुपये में गुजर- बसर करने के किये मजबूर है तथा जहाँ अभी गरीबी की परिभाषा भी सुनिश्चित नहीं है। वहां पर यह कैसे निर्धारति किया जायेगा कि कौन गरीब है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (रासप) की माने तो गरीबो को पूर्वाधिकार परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा जाना है। जिसका विभाजन जाति जनगण के आधार पर किया जाना है। जब की जाति जनगण के लिए कोई समय सीमा ही नहीं तय किया गया है। ऐसे में जरुरत मंद कौन है इसका पहचान कैसे किया जा सकता है। ऐसे में जरुरत मंद को अनाज नहीं मिला तो वह कहा पर जाकर शिकायत करेगा यह भी निश्चित नहीं है।

खाद्य सुरक्षा बिल बिल देश के लिए बहुत जरुरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी यह है कि अन्य योजनो की तरह यह योजन भी लोगों के भ्रष्टाचार का शिकार न बन जाये इसके लिए जरुरी है कि कोई भी योजना लागू करने के पहले उसके अच्छाइयों और बुराइयों पर पहले गहन मंथन हो। जिसके बाद एक प्रभावी योजना पारित हो जिससे देश की जनता लाभान्वित हो सके।

मानेन्द्र कुमार भारद्वाज
इंडिया हल्ला बोल

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