प्रकृति ने हमें कई चीजें दी हैं। जिसका सेहत पर सकारात्मक असर होता है। प्रकृति प्रदत्त उपहारों में से एक है गेहूं के ज्वारे, जिसका इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।
सेहत के फायदे
गेहूं के ज्वारों में शुद्ध रक्त बनाने की शक्ति होती है, तभी तो इन ज्वारों के रस को `ग्रीन ब्लड′ कहा गया है। इसे ग्रीन ब्लड कहने का एक कारण यह भी है कि गेहूं के ज्वारे के रस और मानव रूधिर दोनों का पी.एच. फैक्टर 7.4 ही है, जिसके कारण इसके रस का सेवन करने से इसका रक्त में अभिशोषण शीघ्र हो जाता है।
गेहूं के ज्वारे का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है क्लोरोफिल। यह क्लोरोप्लास्ट नामक विशेष प्रकार के कोषो में होता है। क्लोरोप्लास्ट सूर्य किरणों की सहायता से पोषक तत्वों का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि डॉक्टर वर्शर क्लोरोफिल को `सकेन्द्रित सूर्य शक्ति′ कहते हैं। वैसे तो हरे रंग की सभी वनस्पतियों में क्लोरोफिल होता है, किन्तु गेहूं के ज्वारे का क्लोरोफिल बड़ा ही श्रेष्ठ होता है। क्लोरोफिल के अलावा इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम और एंटी-ऑक्सीडेंट भी होता है।
गेहूं के ज्वारे रक्त व रक्तसंचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, डायबिटीज, कैंसर, त्वचा रोग, मोटापा, किडनी आैर पेट संबंधी रोग के उपचार में लाभकारी हैं।
गेहूं के ज्वारे में क्षारीय खनिज होते हैं, जो अल्सर, कब्ज और दस्त से राहत प्रदान करता है। यह एग्जिमा, सर्दी-खांसी आैर दमा में लाभकारी हैं। मौसमी बीमारियों के साथ-साथ यह मलेरिया में लाभकारी है। डेंगू में प्लेटलेट्स बढ़ाने में मदद करता है।थायराइड, हृदयरोग व रक्तचाप में भी लाभकारी है, क्योंकि यह कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है।
रोगी के अलावा स्वस्थ्य व्यक्ति भी इसका सेवन कर सकता है। इसका रस पाचन क्रिया को तेज करता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकालकर शरीर को मजबूत बनाता है और तुरंत शक्ति प्रदान करता है।
गेहूं के ज्वारे को चबाने से गले की खराश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है। इसके रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा में चमक आती है।जब गेहूं के बीज को उपजाऊ मिट्टी में बोया जाता है, तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती हैं। जब यह अंकुरण पांच-छह पत्तों का हो जाता है, तो अंकुरित बीज का यह भाग गेहूं का ज्वारा कहलाता है। अच्छी किस्म के जैविक गेहूं के बीज को बोने के लिए उपजाऊ मिट्टी और जैविक या गोबर की खाद का उपयोग करें। रात को सोते समय लगभग आवश्यकतानुसार गेहूं को एक पात्र में भिगोकर रखें।
दूसरे दिन गेहुओं को धोकर गमले में बिछाएं और ऊपर से मिट्टी डालें और पानी से सींच दें। गमले को किसी छायादार जगह पर रखें, जहां पर्याप्त हवा और प्रकाश आता हो, पर सीधी धूप से बचाएं। 5-6 दिन बाद 7-8 इंच लंबे ज्वारे हो जाएं, तो इनको जड़ सहित उखाड़कर अच्छी तरह से धो लें। फिर इसे पीस लें। करीब आधा गिलास पानी मिलाकर इसे छान लें आैर सुबह खाली पेट पिएं।
एक घंट तक कोई भी आहार या पेय पदार्थ न लें। ज्वारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेव, अन्नानास आदि के रस को मिलाया जा सकता है। हां, इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नींबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं, क्योंकि यह ज्वारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है।
विटामिन्स का पिटारा
आहारशास्त्री विग्मोर ने कई प्रकार की घासों पर परीक्षण किया और उन्होंने गेहूं के ज्वारों को सर्वश्रेष्ठ पाया। उनके अनुसार गेहूं के ज्वारों में 13 प्रकार के विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। जिसमें विटामिन बी-12, कई खनिज लवण, सेलिनियम और सभी 20 अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।
गेहूं के ज्वारे में पाया जाने वाला एंजाइम्स शरीर को विषाक्त द्रव्यों से मुक्त करता है। इसलिए इसे आहार नहीं वरन अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। गेहूं के ज्वारे की उपयोगिता को अमेरिका, यूरोप, एशिया और भारत के अनेक राज्यों में लोग तेजी से अपना रहे हैं और नियमित रूप से सेवन कर लाभ प्राप्त कर रहे हैं।