चक्रव्यूह क्या था, और क्यूँ चक्रव्यूह युद्ध का निर्णय कर सकता था

सूर्य, चन्द्र, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, बुध, शुक्र, राहू, और केतु, जो नवग्रह हैं उसकी गति के अनुपात मैं व्यूह की रचना को चक्रव्यूह कहते हैं; सिर्फ इतना ही नही वेदांत ज्योतिष के अनुसार बारह खंड या भाग/घर का क्रमांक भी निश्चित होता है| चक्रव्यूह नवग्रह की उस समय की दिशा से ठीक विपरीत दिशा मैं चलता है, और पूरे सौर्यमण्डल मैं उसका फैलाव होता है| उसकी मार का कोइ तोड़ नहीं होता| वह बारह भाग या गृह मैं विभाजित करके बनता है, तथा उनका स्वरुप वही होता है, जो वेदांत ज्योतिष मैं, १ से १२ गृह का होता है, अथार्त :

१. लग्न, युद्ध छेत्र मैं उसको कहा जाएगा, केंद्रीय दिशा निर्देश मंच,

२. कुटुंब या धन, जिसका अर्थ.. हुआ, तैनात और रिज़र्व सेना, अस्त्र,

३. संचार,

४. घर, अर्थ.. सेना जो सुरक्षा कवच के अंदर है,

५. उच्च शिक्षा, अर्थ.. आधुनिकतम अस्त्र के संचार का केंद्र

६. शत्रु, अर्थ.. सेना जो उस समय शत्रु से युद्ध लड़ने के लिए तैनात है

७. बहारी संपर्क और सम्बन्ध, अर्थ.. सेना, अस्त्र जो शत्रु से युद्ध कर रहे हैं,

८. जीवन, मृत्यु और कारण

९. से १२ … वास्तव मैं ८ से १२ परिणाम है १ से ७ के |

वेदान्त ज्योतिष का यह आवश्यक सिद्धांत है कि हर मनुष्य अपने जन्म के साथ पहले ६ घरो का ज्ञान और कर्म शक्ति अपने साथ लाता है, और यहाँ पर आ कर मनुष्य शिक्षा से मात्र उस दिशा मैं निपुर्णता प्राप्त करता है|

पहले तो यह समझ लें की अर्जुन अपने ही सौर्यमण्डल मैं बहुत दूर युद्ध करने गए थे जहाँ संचार की व्यवस्था भी नहीं थी, चुकी पांडव पक्ष मैं और किसी को चक्रव्यूह का तोड़ मालूम नहीं था, इसलिए इस युद्ध से कौरव की विजय निश्चित थी, ऐसी सोच कौरव पक्ष मैं अवश्य थी, और उसी जोश के साथ इस व्यूह को क्रियान्वित करा गया|

चक्रव्यूह की रचना हुई है, और किसी को इसका ज्ञान नहीं है, यह सोच कर ही पांडव पक्ष के

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