जानिये भगवान शिव पर क्यों चढ़ाए जाते हैं आक, भांग, बेलपत्र और धतूरा

सावन के महीने 13 दिन बीत चुके हैं और आज 14वां दिन है। शिव मंदिरों में भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है। भगवान शिव को भोले-भंडारी कहा जाता हं। जो भी उनकी शरण में गया है, उन्होंने उस पर अपनी कृपा बरसाई है फिर वह चाहे देवता हो, असुर हो या मानव।

हर भक्त शिव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करते हुए आशीर्वाद पाना चाहता है। हम आप और सभी भगवान शिव की पूजा करते समय उन्हें आक, भांग, बेलपत्र, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि आखिर क्योंकर भगवान शिव को भांग, धतूरा और बेलपत्र प्रिय हैं।

इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है जिसका वर्णन शिव महापुराण की कथा में मिलता है और आज हम आपको उसी के बारे बताने जा रहे हैं।
शिव महापुराण के अनुसार, जब अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने साथ मिलकर सागर मंथन किया, तो मंथन के दौरान कई तरह की रत्न, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी आदि निकले थे।

इसके साथ अमृत से पहले हलाहल भी निकला था। हलाहल विष इतना विषैला था कि इसकी अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, इस विष से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचना शुरू हो गया था। तब भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए हलाहल विष का पान कर लिया था।

भगवान शिव ने विष को गले से नीचे नहीं उतरने दिया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था और उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। विष का प्रभाव धीरे-धीरे महादेव के मस्तिष्क पर चढऩे लगा, जिसकी वजह से वह काफी परेशान हो गए और अचेत अवस्था में आ गए।

भोलेनाथ को इस स्थिति में देखकर सभी देवी-देवता अचंभित हो गए और उनको इस स्थिति से बाहर निकालना उनके लिए परेशानी का सबब बन गया।देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि देवताओं को ऐसी स्थिति से निकालने के लिए मां आदि शक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान शिव का कई जड़ी-बूटियों और जल से उपचार करना शुरू कर दिया।

मां भगवती के कहने पर सभी देवी-देवताओं ने महादेव के सिर पर भांग, आक, धतूरा व बेलपत्र रखा और निरंतर जलाभिषेक करते रहे। जिसकी वजह से महादेव के मस्तिष्क का ताप कम हुआ। उसी समय से भगवान शिव को भांग, बेलपत्र, धतूरा और आक चढ़ाया जाता है।

भगवान शिव की पूजा करते हुए चढ़ाएं ये चीजें :- 

1. भगवान शिव का अभिषेक आप लौटे में जल भर कर सकते हैं लेकिन इस बात का खास ख्याल रखें कि कभी भी शंख में जल भरकर शिवजी का अभिषेक नहीं करना चाहिए।

2. शास्त्रों के अनुसार तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी माना गया है। जिसके कारण इन्हें विष्णुजी तथा उनके अवतारों के अलावा और किसी देवता को अर्पित नहीं किया जा सकता है।

3. टूटा हुआ चावल पूर्ण नहीं होता है इसे अशुद्ध माना जाता है। इसलिए यह शिवजी को अर्पित नहीं करना चाहिए।

4. भगवान शिव पर कभी भी नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखें की भगवान शिव को चढ़ाया गया नारियल कभी भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए।

5. कभी भी कटे-फटे बेलपत्र भगवान शिव को न चढाएं। इसका फल आपको उल्टा मिलेगा। इसीलिए जब भी भगवान को बेल पत्र चढ़ाएँ तो धोकर और देखकर चढ़ाएँ।

6. कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता। केतकी का फूल भगवान शिव को पूजा में स्वीकार्य नहीं होता है।

7. भगवान शिव को कभी भी हल्दी, मेहंदी और सिंदूर नहीं चढ़ाना चाहिए। दरअसल, ये चीजें स्त्रियों के श्रृंगार में काम आती हैं। शिव पौरुषत्व का प्रतीक है।

8. भोलेनाथ की पूजा में तिल और चम्पा के फूल का प्रयोग नहीं किया जाता है, इसलिए इसे भूलकर भी न चढ़ाएँ।

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