जानिए कितने प्रकार की होती है कांवड़ और क्या हैं इसके नियम

उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा में दूसरे राज्यों से लाखों की संख्या में कांवड़ियां हर की पौड़ी आते हैं और जहां से गंगाजल लेकर शिवरात्रि पर अपने-अपने क्षेत्रों के शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है।

कांवड़ यात्रा कैसे शुरू हुई, किसने शुरू की, कितने प्रकार की होती है और कांवड़ के दौरान नियम क्या होते हैं। श्रावण मास चल रहा है और हरिद्वार से शिव भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लेने जाते हैं। फिर उस जल से भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। शास्त्रों में हरिद्वार ब्रह्मकुंड से जल ले जाकर भगवान शिव को अर्पित करने का विशेष महत्व माना गया है।

दरअसल, वैश्विक महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद हो रही इस कांवड़ यात्रा में हालांकि कोई कोविड प्रतिबंध नहीं लागू किया गया है और अधिकारियों को उम्मीद है कि यात्रा के दौरान कम से कम चार करोड़ शिवभक्त गंगा जल लेने के लिए उत्तराखंड के हरिद्वार तथा आसपास के क्षेत्रों में पहुंचेंगे।

ये है कांवड़ का इतिहास :- भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे, मान्यता है कि वे सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास पुरा महादेव गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। उस समय श्रावण मास चल रहा था और तब से इस परंपरा को निभाते हुए भक्त श्रावण मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे।

सामान्य कांवड़ :- सामान्य कांवड़िए कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के लिए कई जगह पंडाल लगे होते हैं, जहां वह विश्राम करके फिर से यात्रा को शुरू करते हैं।

डाक कांवड़ :- डाक कांवड़िए कांवड़ यात्रा की शुरूआत से शिव के जलाभिषेक तक बिना रुके लगातार चलते रहते हैं। उनके लिए मंदिरों में विशेष तरह के इंतजाम भी किए से जाते हैं। जब वो आते हैं हर कोई उनके लिए रास्ता बनाता है। ताकि शिवलिंग तक बिना रुके वह चलते रहें।

खड़ी कांवड़ :- कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ लेकर कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते रहते हैं।

दांडी कांवड़ :- दांडी कांवड़ में भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होती है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता है।

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