भगवान को देखना हो तो इस पोस्ट को जरूर पढे

सबसे पहले मैं आपको “भगवान” शब्द का अर्थ बताता हुँ । यह शब्द भ+ग+व+अ+न इन पाँच अक्षरों से मिलकर बना है।

भ= भूमि
ग= गगन
व= वायु
अ= अग्नि
न= नीर (जल)

पृथ्वि, जल, तेज, वायु, आकाश इन पाँच तत्वों से ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है । संस्कृत में “भग” शब्द का अर्थ ऐश्वर्य से है । अर्थात जो समस्त ऐश्वर्य का स्वामी है वही भगवान है । अगर आप समझते हो कि भगवान चार हाथ दस सिर वाले है, ओर आकाश में ऊपर बेठे है तो गलत समझते हो । भगवाननिराकार है। तथा भगवान धर्म कि स्थापना के लिये साकार बनते है । आपको भगवान का अनुभव करना पडेगा, तब ही आप उन्हे देख पाओगे।

कभी एकान्त में बेठकर सोचो – यह वायु बनकर जो बह रहा है कोन है ?
उत्तर :- भगवान है
वायु के बगेर हम जीवित नहीं रह सकते है ।

जो जल बनकर हमारी प्यास बुझाते है कोन है ?
उत्तर:- भगवान है, हम जल के बिना जीवित नहीं रह सकते है।

जो भोजन बनकर हमारी भूख मिटाते है, कोन है ?
उत्तर:– भगवान है, हम अन्न के बिना जीवित नहीं रह सकते है ।

जो सूर्य बनकर हमें ऊर्जा देते है। कोन है ?
उत्तर:– भगवान है, सूर्य से ही दिन रात होते है ,

अन्न पैदा होता है । सूर्य को वेदों में समस्त जगत कि आत्मा कहा गया है ।( सूर्ज आत्मा जगतस्तस्तुषश्च) सूर्य के बिना हम जीवित नहीं रह सकते है । हमारे लिये मकान, वस्त्र , तथा जीवित रहने कि आवश्यक
सामग्री कि व्यवस्था कोन करता है ?
उत्तर:- भगवान करते है ।

इस संसार में चींटी से लेकर हाथी तक कि भोजन कि व्यवस्था वही करते है । इस संसार के गरीब से गरीब प्राणी को भी भोजन मिलता है ।

तुलसीदास जी ने बहुत सुन्दर लिखा है ।
” हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रकट सकल जग जाना”

भगवान सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है । उन्हे प्रकट करने के लिये आपको कठोर तप कि आवश्यकता नहीं है । आपको केवलमात्र उनसे प्रेम करना है । जेसे पत्थर में अग्नि होती है लेकिन दिखाइ नहीं देती ओर जब आप दो पत्थरों को आपस में रगडोगे तो अग्नि प्रकट हो जायेगी । वेसे ही भगवान को प्रकट करने के लिये संसार के समस्त जीवों, वस्तुओं में भगवान के होने कि भावना करनी पडेगी, तब ही भगवान प्रकट होंगे । ” जाकि रही भावना जेसी । प्रभु मूरत तिन देखेउ वेसी “

जिसकि जेसी भावना होगी उसको भगवान उसी रूप में दिखेंगे । प्रहलाद जी ने खम्भे में भगवान कि भावना कि तो भगवान खम्भे से प्रकट हो गये ।

मीरा बाइ ने भगवान
कि मूर्ति को ही अपना पति माना तो अन्त में मीरा बाइ भगवान कि मूर्ति में सशरीर विलीन हो गइ ।

कबीर दास जी कहते है:– ” धरती को कागद करूँ, ओर कलम करूँ वनराय ।
समुद्र कि मसी करूँ, तो भी हरि गुन वर्ण्यो न जाय ।।

भावार्थ:– इस समस्त पृथ्वि को में कागज बनाउ, संसार में जितने भी वन है उनकि मैं लेखनी बनाउ, जितने भी समुद्र है उनकि स्याही बनाली जाये तो भी भगवान के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता है । भगवान को देखना हो तो समस्त जीवों से प्रेम करो, आपके पास में भोजन , पानी, वायु जो कुछ भी हो उसे भगवान ही मानो फिर देखिये आपको भगवान के दर्शन केसे नहीं होंगे । जब आपका भगवान से प्रेम बढने
लगेगा तब आपको सबसे पहले स्वप्न में भगवान का दर्शन होने लगेगा, ओर जब प्रेम चरमसीमा पर होगा तब भगवान कोई न कोई रूप बनाकर आपसे मिलने के लिये 100% आयेंगे । ओर आते रहेंगे । यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हे पहचान पाओगे या नहीं ।

भारत भूषण शर्मा

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