भगवान श्रीकृष्ण की आरती

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आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की आरती

जय श्रीकृष्ण हरे, प्रभु जय श्रीकृष्ण हरे।
भक्तजनन के दुख्र सारे पल में दूर करे।

परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी।

जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी।

कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला।

दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे।
गज के फंद छुड़ाए भवसागर तारे।

हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे।
पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे।

केशी कंस विदारे नल कूबर तारे।
दामोदर छवि सुंदर भगतन के प्यारे।

काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे।
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे।

राज्य उग्रसेन पायो माता शोक हरे।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे।

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