आखिर कब उभर पाएंगे भोपाल गैस त्रासदी से

तीन दिसंबर 1984  से लेकर अब तक भोपाल गैस त्रासदी  को 26 वर्ष बीत चुके हैं।  भोपाल गैस त्रासदी की बरसी पर आज  एक बार फिर उस मंजर कि तस्वीर हमारे मानस पटल पर उभर कर सामने हैं। 26  साल बाद भी हर सुबह दुर्घटना वाली सुबह नज़र आती है। उस मंजर को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

देश आधुनिक से अत्याधुनिक होता गया है और भारत का नाम आज तेज़ी से उभरती
हुई संसार कि दूसरी अर्थव्यवस्था में शामिल किया जा रहा है, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के घाव अभी भरे नहीं हैं। हालांकि 26  साल का अरसा कम नहीं होता। इतने लम्बे दौर के उतार चढ़ावों एवं विकट परिस्थितियों के आगे
झुककर लोग टूटकर हार मान लेते हैं। भोपाल गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे। यूनियन कार्बाइड फक्ट्री से जहरीले गैस रिसाव और रासायनिक कचरे का प्रभाव आज भी  है।

एक नई पीढ़ी तैयार हो गई, सरकारें आई और चली गईं, लेकिन किसी को गैस पीड़ितों की सुध नहीं आई। मुआवजा तो दूर असहाय लोगों को ईलाज के लिए भी तरसना पड़ गया। गैस पीड़ितों के लिए एक केन्द्रीय आयोग गठित होना चाहिए। यह बात 26  सालों के बाद केन्द्र सरकार को समझ में आई है। हालांकि केन्द्रीय आयोग बनने में भी अभी कई पेंच हैं। अभी न्यायालय का फैसला आया और फैसले में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने सात दोषियों को दो साल की सजा व एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।

बतातें चले कि भोपाल में यह मौत का मंजर 3 दिसम्बर 1984 को आधी रात को शुरू हुआ था, जिसमें हजारो की संख्या में लोग मरे गए थे, कोई अपंग हुआ, तो कोई बहरा ,तो किसी के माता -पिता तो किसी की पत्नी विधवा हुई यही नहीं आज भी मौत का मंजर जारी है। इतना होने के बाद भी हम आज तक कुछ सीख नहीं पाए हैं वही के वही ठहरे  हुए हैं। भोपाल उद्योगिक नगरी तो
बन गई लेकिन गैस त्रासदी में शिकार हुए लोगों की चीत्कार आज भी सुनाई पड़ती है। पीड़ित लोगों को न तो मुवावजा और न ही न्याय  मिला है।

अगर देखा जाये तो उपहार अग्निकांड में पीड़ित लोगों को 15 लाख मुआवजे की राशि के साथ 9 फीसदी की दर से ब्याज भी दिया गया। लेकिन भोपाल गैस पीडितो को मात्र 25  हजार रूपये मुवावजे के रूप में निर्धारित किया गया। जो काफी कम था जो आज तक कम से कम लोगों को ही  मिल पाया है जबकि प्रभावित लोगों की भावी पीढ़ियों को  अभी तक जहरीले रसायनों का दंश झेलना पड़ रहा है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बीमार लोग काम नहीं कर सकते, उस पर ईलाज का खर्च गरीब लोगों की कमर तोड़ देता है। ऐसे में भरण पोषण कैसे हो, यह एक बड़ा सवाल है।देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 25 हजार रुपये 2004 से 2006 के दौरान वितरित किये गए। 1990 से लेकर 2006 के बीच 16 वर्षों की अवधि के दौरान पीड़ितों को एक तरह से किस्तों में कुल 50 हजार रुपये ही मिल पाये हैं।ऐसी दशा में लोगों को जीवन यापन करना मुश्किल है। आज शनिवार को जब भोपाल गैस त्रासदी की बरसी पर पीड़ित लोग अपने मुवावजे की मांग कर रहे थे तभी पुलिस के द्वारा उन्हें बर्बरता से पिटा गया ऐसे में सरकार की पीड़ित लोगों के प्रति संकीर्ण मानसिकता का ही पता चलता है।

भोपाल गैस त्रासदी पर निदा फाजली की ये पंक्तिया सटीक बैठ रही हैं। 

रात के बाद नए दिन की सहर आएगी,

दिन नहीं बदलेगा ,तारीख बदल जाएगी ||

अम्बरीश द्विवेदी

इंडिया हल्ला बोल

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