जहाँ एक तरफ देश महंगाई, भ्रष्टाचार आदि समस्या से जूझ रही है वहीं एक बार फिर रिटेल में एफ डी आई को लेकर देश में घमासान हो रहा है। देश में चारों तरफ एफ डी आई को लेकर विरोध जारी है। संसद के शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले ये कयास लगाये जा रहे थे की लोकपाल बिल को सर्वसम्मति से पारित कर दिया जायेगा लेकिन सरकार ने रिटेल में प्रत्यक्ष निवेश के
मुद्दे को तूल पकड़ा कर लोगो का ध्यान हटा दिया है। कहा भी जाता है कि सियासी सरंचना में कभी मुद्दे कभी राजनीति को प्रभावित करते है तो कभी राजनीति खुद मुद्दों का निर्माण करती है वर्त्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह पंक्ति ठीक बैठ रही है।
वैसे संसद में हंगामा करने के लिए कई मुद्दे थे, जिनमें महंगाई, भ्रष्टाचार,लोकपाल बिल और उत्तरप्रदेश का बंटवारा आदि था। यह भी उम्मीद की जा रही थी कि इन मुद्दों को लेकर सरकार के पास अपना बचाव करने के आलवा कोई और उपाय नहीं था लेकिन इन सबके वावजूद शीतकालीन सत्र शुरू होते ही पासा यू पलटा क़ि सभी मुद्दे हवाहवाई हो गए। सरकार के मठाधिसों ने रिटेल क्षेत्र में एफ डी आई नामक ऐसा सियासी पासा फेका कि संसद के शीतकालीन सत्र में सभी मुद्दे खो गए। एफ डी आई को लेकर सबके दिमाग में यही ख्याल आते है कि सरकार को एफ डी आई को लेकर इतनी जल्दी क्यों?यहाँ तक उसने अपने सहयोगियों तक विचार -विमर्श नहीं किया। हालांकि देखा जाये तो खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए किसी भी तरह की निति तैयार करने और उस पर फैसला लेने का संवैधानिक अधिकार कार्यपालिका के पास है।
राजनिति चपलता के धनि कांग्रेस के खेवनहारों ने जिस तरह एफ डी आई के तहत वालमार्ट जैसे मार्केट को भारतीय खुदरा बाज़ार में निवेश को बढ़ावा दिया है उससे छोटे उद्यमी काफी नाखुश हैं चरों तरफ घोर असंतोष व्याप्त है। फिर भी सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगा है, सरकार रोलबैक करने को तैयार नहीं है। वर्ष 2004 में 26 % एफ डी आई की बात की थी लेकिन अब भाजपा के भी तेवर बदले नजर आ रहे हैं वो भी रोलबैक पर अडिग हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि विदेशी निवेश से देश में रोजगार को बढ़ावा मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी। वहीं वितमंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि रिटेल मल्टी ब्रांड में सरकार का फैसला सही है। इस बार चूक गए तो हम खुदरा क्षेत्र में विकास का एक मौका खो देंगे। एक तरफ जहाँ हमारे देश के प्रधामंत्री एफ डी आई खोले को देशहित में बतातें हैं।वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 26 नवम्बर को ट्वीट किया कि छोटे उद्योगों को साथ में लेकर चलना होगा जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। देखा जाये तो ओबामा अपने देशहित की बात कर रहें हैं वहीं मनमोहन सिंह को अमेरिका के सुरक्षा की चिंता है।
मल्टी ब्रांड रिटेल के पक्ष में यह कहा जाता है कि इससे 2020 तक 1 करोड़ रोजगार पैदा होंगे, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस तर्क नहीं है। आकड़ो पर गौर करें तो भारत का कुल रिटेल क्षेत्र 20 लाख करोड़ का है और इसमें 4 .40 करोड़ लोग कम करते हैं, लेकिन वालमार्ट जैसे मार्केट को भारत में बुलाने से लोगो का रोजगार छीन जायेगा।
खैर बात तो साफ है कि सरकार एफ डी आई को लेकर गंभीर है और इसके चलते ज्वलंत मुद्दो से लोगों का ध्यान हटा रही है ताकि लोकपाल बिल पारित न हो सके भले ही उसके खुद के साथी अभी दूसरी कतार में खड़े नज़र आ रहे हो। जिस प्रकार सरकार राजनिति के खातिर अर्थनीति को आधार बना कर ज्वलंत मुद्दे को जनता के मानस पटल से हटा रही है उससे लगता है कि अवसरवादी राजनीति के अलवा कुछ नहीं है।
अम्बरीश द्विवेदी
इंडिया हल्ला बोल