रेल बजट 2012 : कुछ दर्द, कुछ उम्मीदें

जब रेल मंत्री अपना पहला रेल बजटपेश करेंगें तो जाहिर है पूरे देश की निगाहें उन पर होंगी, हर साल की तरह इस बार भी ये जनता के लिए सौगात ला सकता है, हालांकि इस बार घाटे का हवाला देकर रेल मंत्री ने किराया बढ़ाने के संकेत दिए हैं। भारतीय रेल एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। दुनिया मे सबसे ज्यादा कर्मचारी भी इसे संस्था में काम करते हैं। यातायात का सबसे सस्ता साधन होने के अलावा सर्वाधिक लोकप्रिय भी है। ये देश के कई शहरों को ही नहीं बल्कि कई दिलों को भी जोड़ता है। पिछले कई दशकों में रेलवे ने काफ़ी तरक्की की है। आज हमारी ट्रेनें करीब 3 करोड़ लोगों का बोझ रोज़ाना उठाती हैं। कई महानगरों के लिए तो ये जीवन रेखा है। देश की तरक्की में भी इसका बड़ा योगदान है, पर कई सालों में रेल को ज़बरदस्त घाटा झेलना पड़ रहा है। हलांकि पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने रेलवे को पटरी पर लाया था पर एक बार फिर ये पटरी से उतर गई। विगत वर्षों में ट्रेनों की सुविधाएं बढ़ी है पर ख़ामियां अभी भी बाकी है। लंबी दूरियों की गाड़ियो में खान-पान की व्यवस्था पर सवाल उठते आए हैं। राजधानी-शताब्दी जैसी वीआईपी ट्रेनों के खाने में भी अकसर शिकायतें मिलती हैं। रेलगाड़ियों में जेनरल डिब्बों की संख्या काफ़ी कम है। आरक्षित सीटों में भी बढ़ोतरी की ज़रूरत है। छुट्टियों और पर्व के समय स्पेशल ट्रेनें भी बढ़नी चाहिए। इसके आलावा तत्काल टिकट और अन्य टिकटों में भी कालाबाज़ारी भी काफ़ी बढ़ी है। 

इन सभी समस्या को तो लोग फ़िर भी झेल जाते हैं पर इससे बड़ी चिंता यात्रियों की सुरक्षा को लेकर है। हमारी गाड़ियां हमेशा आतंकवादियों और नकसलियों के निशाने पर होती हैं। ट्रेन ब्लास्ट और ट्रैक उड़ाने की घटना खौफ़ पैदा करती हैं। इन वारदातों से कई मासूम मुसाफ़िरों को जान से हाथ धोना पड़ा है। रेलवे ने ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाई है पर फिर भी ये ऊंट के मुँह ज़ीरा साबित हो रही हैं। इसके अलावा रेल हादसे से भी लोगों के मन में डर वना रहता है। ख़ासकर कोहरे के कारण एक ही ट्रैक पर दो रेलगाड़िया आ जाने से टक्कर होने का खतरा बना रहता है।

हलांकि रेल मंत्रालय ने एंटी कॉलिज़न डिवाइस लगाने की योजना पर विचार करती आई है पर इसे जल्द से जल्द लागू करने की ज़रूरत है ताकि ऐसी घटनाओं पर तुरंत लगाम लगाया जा सके।

स्टेशनों को भी विश्व स्तरीय बनाने की बात चलती आई है पर साफ़ सफ़ाई के मामले में और सुधार की दरकार है। यात्रियों को भी व्यवस्था सुघारने में अपना पूरा सहयोग देना चाहिए क्योकिं उनकी भी उतनी ही ज़िम्मेदारी बनती है जितनी कि सरकार की। यात्रियों को कम से कम समान ले जाने की नसीहत दी जाती है पर लोग इस पर शायद ही अमल करते हैं। दूसरे यात्रियों को भी इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है।

हर साल रेल बजट में रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ाई जाती हैं मगर इसी स्तर पर रेल ट्रैक को नहीं बढ़ाया जाता। कई पटरियों का दोहरीकरण करना अभी बाक़ी है। रेलगाड़ियो की स्पीड भी अन्य देशों की ट्रेनों के मुक़ाबले काफ़ी कम है। हम भारतीयों को उम्मीद है कि कब बुलेट ट्रेन की सूरत देखने को मिले। कई रेलमंत्री हाई स्पीड ट्रेन चलाने के वादे कर चुके हैं, पर अब वक्त आ गया है इसको पूरा करने का, या फ़िर यूं कहें कि हमें इस सपने को काफ़ी पहले पूरा कर लेना चाहिए था।

खैर जो भी हो देश के नागरिकों को उम्मीद है कि आने वाली 14 मार्च को हमें एक कल्याणकारी बजट देखने को मिलेगा, जो हमारी आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा

शारिकुल होदा

नई दिल्ली

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