आसान नहीं प्रणव दा की राह, कैसा होगा उम्मीदों का बजट ?

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर लगातार बढ़ती चुनौतियां के बीच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के लिए इस बार बजट पेश करना अग्निपरीक्षा होगी।उत्तर प्रदेश सहित हाल में संपन्न पांच विधानसभा चुनावों के बाद बदली परिस्थितियों में संप्रग सरकार के लिए संतुलित बजट पेश करने की चुनौती खड़ी हो गई है। एक तरफ बढ़ता राजकोषीय घाटा, धीमी पड़ती आर्थिक वृद्धि, महंगाई और बढ़ती सब्सिडी की कठिन चुनौतियां हैं तो दूसरी तरफ आम आदमी और नौकरी पेशा वर्ग सस्ता अनाज, सस्ता पेट्रोल, डीजल और आयकर दरों में ज्यादा रियायतें मिलने की उम्मीद लगाए बैठा है।

वित्त मंत्री को राजकोषीय घाटे में कमी लाने के लिए हरसंभव प्रयास करने होंगे। इसके लिए वह उत्पाद एवं सेवाकर की दरों में वृद्धि कर इन्हें वैश्विक मंदी शुरू होने से पहले की स्थिति में ला सकते हैं। वित्त मंत्री को डीजल, रसोई गैस और उर्वरक के दाम बढ़ाकर उनपर सब्सिडी कम करनी होगी। इसके अलावा बिजली और कोयला क्षेत्रों में अड़चनों को दूर करने की भी जरूरत है ताकि औद्योगिक उत्पादन को फिर से पटरी पर लाया जा सके।

उद्योग जगत को भी वित्त मंत्री से काफी उम्मीदें हैं। उद्योग जगत चाहता है कि कंपनी कर बेशक 30-32 प्रतिशत पर बना रहे लेकिन उत्पाद एवं सेवाकर दरों में वृद्धि नहीं होनी चाहिए। प्लांट एवं मशीनरी पर मूल्यह्रास दरें बढ़ाई जानी चाहिए तथा कंपनियों के लिए निवेश प्रोत्साहन फिर से शुरु होना चाहिए। उद्योग जगत तेल एवं गैस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए और भी कई तरह की रियायतें चाहता है।

पिछले साल फरवरी में 2011-12 का बजट पेश करते हुए वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि 8.75 से लेकर 9.25 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था। अब जबकि वित्त वर्ष की समाप्ति नजदीक है, व्यक्त अनुमानों के अनुसार 2011-12 की आर्थिक वृद्धि सात प्रतिशत के आसपास और मुद्रास्फीति मार्च अंत तक सात प्रतिशत के उच्चस्तर पर रहेगी। वर्ष के दौरान सरकार का राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत रहने का बजट अनुमान लगाया गया था लेकिन अब इसके 5.5 प्रतिशत रहने के अनुमान व्यक्त किए जा रहे हैं। सरकार की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर वसूली भी बजट अनुमान से कम आंकी जा रही है।

बजट सत्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को विपक्ष के हमलों के साथ साथ अपने सहयोगियों के घातक रवैये से भी सावधान रहना होगा। पिछले सत्र में कांग्रेस के लिए सरदर्द बने खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश, महंगाई और लोकपाल जैसे मुद्दों के अलावा इस बार आम बजट, आर्थिक सुधार और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी केंद्र यानि एनसीटीसी यूपीए के लिए नई चुनौती हैं। सरकार को घेरने के लिए एनडीए ने भी अपनी रणनीति तैयार कर ली है। रविवार को आडवाणी के घर हुई बैठक के बाद यह तय हुआ कि इस सत्र में चिदंबरम का बहिष्कार नहीं किया जाएगा।  कपास के निर्यात पर लगी रोक को हटाने के लिए अगर सरकार अधिसूचना जारी नहीं करती है तो संसदीय आम बजट सत्र की शुरुआत हंगामेदार रहेगी।

यूपीए की अहम सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के तेवर लगातार बगावती बने हुए हैं। एनसीटीसी पर ममता और एनसीपी का विरोध जगजाहिर है। इसलिए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद नए राजनीतिक समीकरणों को लेकर भी अटकलें तेज हो गई हैं। लिहाजा लोकपाल, न्यायिक जबावदेही विधेयक, खाद्य सुरक्षा बिल और जमीन अधिग्रहण जैसे तमाम विधेयकों के भविष्य को लेकर सवाल खड़े़ होने लगे हैं। इसकी एक बड़ी वजह राज्यसभा में सरकार का अल्पमत में होना भी है। 30 मार्च को राज्यसभा के लिए होने वाले चुनाव के नतीजे सरकार के आंकड़ों के गणित को और भी बिगाड़ सकते हैं।

यही नहीं, हाल ही में विधानसभा नतीजों के बाद रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के नेता दिनेश त्रिवेदी ने मध्यावधि चुनावों की संभावना जताकर कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दी थीं, हालांकि बाद में उन्होंने अपनी सफाई में कहा कि उनकी यूपीए से अलग होने की मंशा नहीं है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस पर बहुत दबाव डाला है।

कुल मिला कर अब तो आस ही लगाया जा सकता है की आने वाली सोलह तारीख को बजट से आम आदमी को क्या सौगात मिलती है ,वैसे प्रणव दा हमेशा से ही संकटमोचक की भूमिका निभाई है और ऐसे में शायद यही भूमिका उन्हें फिर से निभानी पड़े |

अभिषेक द्विवेदी —

[इण्डिया हल्लाबोल स्पेशल डेस्क}

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