उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने विधान सभा चुनाव को देखते हुए जिस प्रकार प्रदेश के बंटवारे का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कराकर केंद्र के पाले में फेंका था इससे लगता था कि केंद्र सरकार भी इसे जल्द ही पारित कर देगा लेकिन केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव जिस तरह लौटाया है इससे मायावती के सियासी चाल पर काफी चोट लगी है। ये तो तय था कि जिस प्रकार मायावती सरकार अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा कि पूर्ति के लिए प्रदेश के बंटवारे की चाल चली थी उसका शुरू से ही विरोध होने लगा था।
अगर देखा जाये तो यदि केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव पारित कर देती तो आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता। जो 22 सालों से उत्तर प्रदेश में पैर ज़माने के कोशिश में लगी है। उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने की उत्तर प्रदेस सरकार की घोषणा के साथ यह साफ़ हो गया था कि केंद्र ऐसे किसी प्रस्ताव पर अपनी मुहर नहीं लगाने जा रही है। अतः ऐसा ही हुआ और इसके लिए एक हद तक राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में विभाजित करने करने के प्रस्ताव पर उसने न तो विधानसभा के बाहर चर्चा की और न ही अन्दर। विधानसभा में यह प्रस्ताव जिस तरह आनन् -फानन में बिना किसी चर्चा के पारित हो गया उस पर सवाल खड़े होने चाहिए थे। इससे बड़ी बिडम्बना और कुछ नहीं हो सकती कि किसी राज्य के विभाजन का प्रस्ताव विधानसभा में बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया जाये। केंद्र सरकार द्वारा इस प्रस्ताव को नकार दिए जाने पर मायावती ने कांग्रेस पर पलटवार किया जिससे उत्तर प्रदेश के बंटवारे के मुद्दे पर एक बार फिर सियासी गर्मी बढ़ गई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को आरोप लगाया कि राज्य विभाजन को लेकर केंद्र सरकार गंभीर नहीं है। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र को राज्यों के पुनर्गठन के विषय में संविधान की निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन भी कहा है।
यह तो ठीक है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य के पुनर्गठन की जरूरत महसूस की जा रही है, लेकिन इसका ये अर्थ यह नहीं है कि कोई भी निर्णय बिना सोचे समझे ले लिया जाये। यदि मायावती सरकार उत्तर प्रदेश के विभाजन के प्रस्ताव के प्रति गंभीर होती तो उसकी ओर से ऐसे हड़बड़ी का प्रदर्शन नहीं किया जाता। इससे साफ था कि मायावती सरकार का उद्देश्य इस प्रस्ताव के जरिये राजनीतिक लाभ लेना था। ऐसे में केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को लेकर यूपी सरकार से दो कदम आगे निकल गई। कांग्रेस प्रवक्ता ने राज्य विभाजन के प्रस्ताव को वापस लौटाने के केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया है। खैर केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को तो ठुकरा दिया है लेकिन मायावती सरकार अपनी बातों पर अडिग हैं।
यूपी सरकार राज्य सरकार पुनर्गठन के मामले में अभिमत चाहती है तो उसे राष्ट्रपति के द्वारा राज्य विधानमंडल से बातचीत करना चाहती है। वैसे आगमी विधानसभा चुनाव कांग्रेस व बसपा दोनों पार्टियां जनता को लुभाने में लगी हैं एक तरफ बसपा उत्तर प्रदेश के विभाजन के प्रस्ताव को पारित करना चाहती हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है। अगर देखा जाये तो इस प्रस्ताव का क्या होगा ये तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन बेहतर यही होगा कि दोनों पार्टिया राजनीतिक सियासत को छोड़कर विकास को महत्व दें।
अम्बरीश द्विवेदी
इंडिया हल्ला बोल