अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते होंगे जब कर्नाटक के तीन पूर्व मंत्री विघानसभा में अश्लील विडियो देखते पकड़े गए थे। ज़ाहिर है इसका श्रेय मीडिया चैनल को ही जाता है। कैमरामैन ने नेता जी की इस करतूत को कैप्चर किया था।
अंजाम ये हुआ था कि लक्ष्मण सादवी, सी सी पाटिल और कृष्णा पालेमर को अपनी कुर्सी तक गवानी पड़ी थी।
कर्नाटक सरकार अब विधानसभा में मीडिया के लिए नए कानून लाने की फ़िराक में हैं। मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा ने बताया है कि निजी चैनलों को विधान सभा में प्रतिबंधित किया जाएगा। सीएम ने संसद की तर्ज पर इसे लागू करने का हवाला दिया है। अब मुख्यमंत्री जो भी सफ़ाई पेश करें, मगर वजह साफ़ नज़र आ रही है। उनकी मंशा भविष्य में होने वाली अपनी ग़लती को छुपाने की है। वो नहीं चाहते कि आने वाले वक़्त में फिर से फजीहत का सामना करना पड़े।
मगर सवाल ये उठता है कि मीडिया पर बैन लगाना कहा तक जायज़ है। एक पत्रकार ने वही किया जो उसे करना चाहिए था। मंत्रियों को क्या पड़ी थी कि ऐसी हरकत करें वह भी तब जब विधानसभा में बहस जारी थी। इनमें से एक मंत्री ऐसे थे जिन पर महिला और बाल कल्याण की ज़िम्मेदारी थी, पर नैतिकता की सीमा लांघने में वो ज़रा भी नहीं हिचके। अब पत्रकारों को अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने का ऐसा ईनाम मिला है जो काफ़ी दिनों तक याद किया जाएगा। अब हर पत्रकार मन में ऐसी घटना को उजागर करने से पहले सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि दुनिया बहुत ज़ालिम है यहां सच बोलने की भी क़ीमत चुकानी पड़ती है। ये पहली घटना नहीं है जब मीडिया सरकार की आंखों की किरकिरी बना है। बोफोर्स, तहलका, राष्ट्रमंडल खेल से लेकर 2जी घोटाले को मीडिया ने उछाला था। मगर सरकार भूल रही है मीडिया की स्वतंत्रता हमारे संविधान में दर्ज है। उसे रोकना संविधान का उल्लंघन है। खैर देखने वाली बात यह होगी कि कर्नाटक सरकार अपनी इस मंशा में कितनी कामयाब हो पाती है।
शारिकुल होदा