तेल का ये कैसा खेल…

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने एक बार फिर तेल की बढ़ती कीमतों के लिए भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों को ज़िम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि इन देशों की बढ़ती ज़रूरतों के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उछाल आया है। राष्ट्रपति ओबामा ने विकासशील देशों की बढ़ती आबादी को इसका आधार बनाया है। हमारी ज़रूरतों के हिसाब से ये काफ़ी हद तक सही प्रतीत होता है। मगर आप अगर थोड़ी गहराई में जा कर देखें तो मालूम होगा कि ऐसी हालत के लिए ख़ुद अमेरिका ही ज़िम्मेदार है। जब कभी भी अमेरिका ने जंग छेड़ी है तेल की कीमतों में भी उबाल आया है। अमेरिका की कूटनीतिक रवैये के कारण हमें वियतनाम, इराक, अफग़ानिस्तान में युद्ध देखना पड़ा है। ज़ाहिर है युद्ध मे हथियारों और मिसाइलों पर जम कर ख़र्च आता है। इसमें तेल की भी मांग बढ़ जाती है। 9/11 की घटना के बाद जिस तरह अमेरिकी रक्षा बजट बढ़ा है वैसा पहले कभी नहीं देखने को मिला। रही सही कसर इराक युद्ध ने पूरी कर दी। आज भी अमेरिका कच्चे तेल का सबसे बड़ा उपभोगता है जब्कि उसकी आबादी चीन और भारत के मुकाबले काफ़ी कम है। अमेरिका पर आरोप लगते आए हैं कि अपनी तेल की ज़रूरतों को पूरी करने की ख़ातिर तेल उत्पादक देशों पर हमला करने का कोई मौका नहीं चूकता। अब उसकी टेढ़ी नज़र ईरान पर है। बहाना परमाणु उर्जा का लगाया जा रहा है।

दूसरा पहलू यह है कि अमेरिका में इस साल के अंत में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। बराक ओबामा भी डेमोक्रेटिक पार्टी से दूसरी और आख़िरी बार अपनी क़िस्मत आज़माने के लिए मैदान में उतरे हैं। अमेरिकियों ने जो ओबामा से उम्मीद लगाई थी वो शायद पूरी नहीं हो पाई है। ओबामा को अब लगता हे कि अपनी नाक़ामयाबी का ठीकरा भारत, चीन और ब्राज़ील पर फोड़ने से उनकी परेशानियों का हल निकल जाएगा। अगर ओबामा ने अपनी आर्थिक नीति में सुधार किया होता तो यह दिन न देखना पड़ता। वजह चाहे जो भी हो कच्चे तेल की कीमतों के लिए काफ़ी हद तक अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। आज भी भारत और चीन में प्रति व्यक्ति के हिसाब से निजी वाहनों की संख्या काफी कम है। इन देशों का एक बड़ा वर्ग पब्लिक ट्रान्सपोर्ट का इस्तेमाल करता है। हांलाकि इस दर में पछले कुछ वर्षों में इज़ाफ़ा देखने को मिला है। मगर फिर भी ये अमेरिका के मुक़ाबले का काफ़ी कम है।

“मैं ओबामा साहब से अपील करना चाहूंगा कि पहले अपने गिरेबान में झांक लें। जिनके घर शीशे के बने हों उनको दूसरे के घर में पत्थर नहीं फ़ेकना चाहिए”

शारिकुल होदा
नई दिल्ली

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