एक जनरल की बग़ावत….. सही या गलत ?

सरकार और सेनाप्रमुख जनरल वी के सिंह का हालिया चल रहा प्रकरण वैसे तो एक अतिसंवेदनशील और राष्ट्रीय हित तथा सुरक्षा का मामला है। यदि हम इस पूरे मामले और घटनाक्रम पर नजर डालें तो ऐसा जान पड़ता है कि एक टी वी धारावाहिक के प्रसारित होने वाले कड़ियों की तरह यह भी पटकथा संवाद और दृश्य मंचन से लबरेज पूर्वनियोजित कार्यक्रम है।

गौर करें तो सेनाप्रमुख का सरकार से जन्मतिथि और सेवाविस्तार का मामला चल रहा था। इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने उनके जन्मतिथि में बदलाव से इनकार करते हुए उनके सेवा विस्तार के मंसूबो पर पानी फेर दिया। असल कहानी इसके बाद शुरू हुई उनकी रणनीति और अदृश्य प्रतिशोध वैसे तो चुप चाप किस्म की थी ,जहाँ उन्होंने इसके बाद एक -एक को निशाने पर लिया लेकिन उनकी योजना कहीं न कहीं राष्ट्रीय हितों पर एक आघात कर रही थी।
इसी घटना के क्रम में उन्होंने अपना पहला वार 26 मार्च को किया जब संसद का सत्र चल रहा था और उनके बेहतरीन शाट ने पूरे देश का ध्यान बजट के हंगामे से अपनी ओर खींच लिया | इसी दिलचस्प वाकिये में यह भी और दिलचस्प था की इसी दौरान राजधानी दिल्ली में ब्रिक्स {ब्राजील ,रूस ,भारत ,चीन ,दक्षिण अफ्रीका } देशो के समूह का सम्मलेन था। जहाँ सरकार और सेनाध्यक्ष के मध्य यह विवाद चीन और रूस के राष्ट्राध्यक्षो के सामने तमाशा बनी।
जनरल सिंह के हमले की शुरुआत किसी टी वी चैनल औए एक अदद अखबार को दिए  साक्षात्कार से हुई। साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया था की सितम्बर 2010 ,में एक अवकाश प्राप्त जनरल ,जो उनके दफ्तर मिलने आए थे ,ने उन्हें चौदह करोड़ रूपए की रिश्वत की पेशकश की थी। ये डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी के महानिदेशक के पद से रिटायर हुए थे। लेकिन गौर करें तो यहाँ निशान कोई और था शायद रक्षा मंत्री ए के एंटनी। जिनसे जनरल सिंह ने यह बात बताई थी। इस सन्दर्भ में एंटनी साहब का बयान आता है की “मै आवाक रह गया …”
कार्यवाई करने के लिए कहने पर वी के सिंह ने कहा कि”मै इसे जाने देना चाहते हूँ “…. एंटनी का दावा है कि जनरल सिंह इस मामले को बढ़ाना नहीं चाहते थे। यहाँ यह कहा जा सकता है कि इतने बड़े और संवेदनशील मुद्दे पर दोनों चुप रहे।
बहरहाल ,घटनाक्रम के अगले अंक में 27 को एक अखबार में सेनाध्यक्ष का प्रधानमन्त्री को 12 मार्च को लिखे एक पत्र का अंश छपा था। इसमें सेना की तैयारियों और आयुध भण्डार को लेकर बातें कही थी कि सेना के टैंक खराब हैं ,टैंको में गोले नहीं है। थलसेना कि तैयारी बेहद ख़राब है और “97 फीसदी अप्रासंगिक हो चुकी है “। जाहिर है इन आरोपों और आयुध विश्लेषणों का सीधा सरोकार एक बार फिर रक्षा मंत्री ए के एंटनी पर था। वह भी तब जब ब्रिक्स सम्मलेन की मेजबानी दिल्ली कर रहा था। सरकार और फ़ौज की इस घिनौनी जंग में कहीं न कहीं ब्रिक्स में शिरकत कर रहे चीन के ह्रदय में प्रफुल्लता भर गयी होगी।
इसके बाद आए राजनीतिक बवंडर में राजनेताओं ने जनरल सिंह पर बहुत सारे तंज कसे। लालू ने इसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा बताया तो जनता दल यू ने उन्हें हटाने की मांग की। रामगोपाल यादव ने उन्हें “ज्यादा न बोलने की हिदायत “दे दी ,अरुण जेटली ने हालात को रहस्य दर रहस्य से घिरा बता दिया।
इस सारे मुद्दे पर गौर करें तो रिश्वत की पेशकश किए जाने पर जांच के आदेश दिए जाने की बजाय एंटनी ने हाथ खड़े कर दिए। एक मंत्री और सेनाप्रमुख ने मिलकर उसी वक्त तय कर लिया कि मामले को ठंढे बस्ते में डाल दिया जाय। सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया गया ? वही दूसरी ओर प्रधानमन्त्री को चिट्ठी लिखने से पहले यानी 12 मार्च के पहले उन्हें भारतीय सेना के स्तर और तैयारियों का ज्ञान नहीं था ? क्या यह सब सेवा विस्तार न पाने की खिसियाहट तो नहीं थी ?
खैर ,यह सारी बातें सेना की वस्तुस्थिति से जुडी हैं ,जो सीधे देश की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इन सारी सूचनाओं के लीक होने से गलत फायदा उठाया जा सकता है ,और इससे सेना का मनोबल भी गिरता है। जहाँ तक बात रिश्वत की बात का है तो उन्होंने यह बात सार्वजनिक करके कोई गलत काम नहीं किया। सेना में भ्रष्टाचार की शिकायत नई नहीं है।वास्तव में हमारे तंत्र में भ्रष्टाचार ने जड़ें जमा ली है। जनरल सिंह सेना ,नौकरशाही और राजनीति के भ्रष्ट गठजोड़ में फांस बन गये हैं। सेना प्रमुख के लीक कुए पत्र पर हो -हल्ला मचाने से बेहतर है की राजनेता और सरकार यह सोचें कि सेना कि यह स्थिति क्यों हो गयी |वहीँ सरकार तो हमेशा से अपना दायित्व निभाने में पीछे रहती है।

–अभिषेक द्विवेदी —
{इण्डिया हल्लाबोल ,दिल्ली}

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