धमाके में इन परिवारों की दुनिया ही उजड़ गई, अब तो बस

दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर हुए धमाके में किसी का बेटा तो किसी का पति छीन लिया। वहीं कईयों की जिंदगी तबाह कर दी। पीड़ितों को अब बस यादों के सहारे पूरी जिंदगी काटनी है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल जहां अपनों की आखिरी झलक पाने के लिए भी लोग तरस रहे हैं। लापरवाही और बदइंतजामी की मार झेल रहे लोगों का गु्स्सा अब सड़कों पर उबाल मार रहा है।

भाई की मौत का गम——– भाई की मौत हो गई और आलम ये है कि इन्हें अब तक प्रमोद की डेड बॉडी तक नहीं सौंपी गई है। अस्पताल का कोई अधिकारी इनसे बात करने को तैयार नहीं। 24 घंटे से ये अपने रिश्तेदार प्रमोद को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ढूंढ रहे थे। लेकिन लापरवाही का ऐसा आलम है यहां कि पहले तो प्रमोद के बार में कोई जानकारी इन्हें नहीं दी गई। हादसे के बाद ही प्रमोद लापता थे। हर अस्पताल में उनके दोस्तों और रिश्तेदारों ने उन्हें ढूंढने की कोशिश की। और आखिरकार 7 सिंतबर को देर रात इन्हें टीवी पर मृत लोगों की लिस्ट में प्रमोद का नाम मिला। आनन फानन में ये राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे। लेकिन अस्पताल प्रशासन ने न तो इन्हें प्रमोद की डेड बॉडी सौंपी और न ही प्रमोद के पोस्टमॉर्टम के बारे में इन्हें कोई जानकारी दी। प्रमोद के दोस्तों और रिश्तेदारों की ये गुहार आखिर कौन सुनेगा। इस अस्पताल में तो आलम ये है कि इन्हें कोई ये भी बताने वाला नहीं कि आखिर कब प्रमोद की डेड बॉडी इन्हें मिलेगी। कब उन्हें अपने प्रमोद की आखिरी झलक देखने को मिलेगी।

घर के मुखिया को खोने का दर्द———-

दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके में मरने वाले किसी एक मजहब या धर्म के नहीं थे। आतंकियों ने अपने बम पर किसी का नाम नहीं लिखा था। मरने वाले वो बेकसूर थे जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाने की जद्दोजहद कर रहे थे। ऐसा ही एक परिवार है गीता कॉलोनी का, जहां रहने वाले इंदरजीत को धमाके ने हमेशा के लिए छीन लिया। घर के मुखिया को खोने का दर्द परिवार वालों को साल रहा है। पेशे से स्क्रैप डीलर इंदरजीत तारीख पर हाईकोर्ट गए थे। अंदर जाने के लिए टोकन लेने के लिए लाइन में लगे थे, लेकिन उनकी बारी आती, इससे पहले ही धमाके के रूप में मौत आ गई। इंदरजीत की पत्नी बेहद सदमे में हैं। सरकारी दावों के परखच्चे उड़ चुके हैं। बयान मरहम का काम नहीं कर सकते। मुआवजे का ऐलान उन्हें वापस नहीं ला सकता, जिन्हें आतंकियों के मंसूबों ने छीन लिया। ऐसे में बेकसूरों और बेगुनाहों के खून के लिए जिम्मेदार सरकार के खिलाफ गुस्सा नाजायज नहीं कहा जा सकता।

गए थे इंसाफ की गुहार लगाने, मिली मौत———–

इंसाफ की चौखट पर गुनहगारों ने हमला करके अपने मंसूबे जता दिए हैं। लेकिन सरकार के बयान वही हैं। वो मुआवजे का ऐलान कर रही है। लेकिन क्या मुआवजा धमाकों से मिले जख्म भर पाएगा। इंडियन स्विमिंग टीम के पूर्व कोच एके शर्मा की पत्नी संगीता शर्मा का कहना है कि सरकार ने जब धमाके पीड़ितों के लिए मुआवजे का ऐलान किया तो इन्हें ये सरकारी मरहम जले में नमक छिड़कने जैसा लगा। घर में 59 साल के एके शर्मा की उपलब्धियां टंगी हैं। स्विमिंग के रिकॉर्ड होल्डर एके शर्मा को तब राष्ट्रपति ने सम्मानित किया था। लेकिन केंद्रीय विद्यालय में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत उन्हें बर्खास्तगी से चुकानी पड़ी और इसी भ्रष्टाचार से लड़ते हुए तारीख पर गए ए के शर्मा को आतंकियों के बम ने परिवार से छीन लिया। हाई कोर्ट जाते हुए शर्मा ने अपनी पत्नी को कुछ नहीं बताया था। भ्रष्टाचार से लड़ाई उनकी जिंदगी के रुटीन का हिस्सा बन चुकी थी। एके शर्मा नहीं लौटे। हाई कोर्ट के बाहर हुए धमाके ने उन्हें कई बेकसूरों की तरह मौत की नींद सुला दिया। भ्रष्टाचार के जंग तो शायद वो जीत भी जाते, आतंकियों के मंसूबे से एके शर्मा नहीं जीत पाए।

सपनों की तलाश में गए अमनप्रीम की मौत———-
दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाके में जो लोग मरे उनमें सभी वो थे, जिनसे उनके परिवार, पड़ोस और समाज के लोगों को उम्मीदें थीं। नारायणा विहार के एचडी जोशी और पालम इलाके का 20 साल का नौजवान अमनप्रीत भी इन्हीं में थे। जोशी के दोस्तों को अपने दोस्त के खोने का गम है तो अमनप्रीत के घरवालों को जवान बेटा खोने का दुख। पश्चिमी दिल्ली के नारायणा विहार में जोशी परिवार के इस कमरे में कभी ठहाके गूंजते थे। दोस्तों के साथ बैठकें होती थीं। आज यहां ठहाकों की जगह पसरा है मातम। 58 साल के एचडी जोशी बेहद जिम्मेदार और सामाजिक शख्स थे ।

मुकेश वाहने

बालाघाट, म.प्र.

 

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