अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन शबाब पर है। इसलिए इस आन्दोलन के विरोधी भी फेसबुक पर सक्रिय हो गये हैं और विचारों का धुआँ उगल कर लोगों को भ्रमित करना चाहते हैं। कुछ लोग इस काम को चालाकी से अंजाम दे रहे हैं और कुछ लोग भोलेपन से पेश आ रहे हैं। आज अचानक मेरी नजर कानपुर में पीटीआई के ब्यूरो चीफ जफर इरशाद की टिप्पणी पर पड़ी। उनके तर्क को देखकर मुझे लगा कि ये आदमी ईमानदार मालूम पड़ते हैं, मगर गलतफहमी के शिकार होकर अन्ना के विरोधी दिख रहे हैं। लेकिन दोपहर में जब उनकी दूसरी टिप्पणी सामने आयी तो उनका असली चेहरा प्रकट हो गया ! वे तो खुल्लमखुल्ला आंदोलनकारियों को ललकार रहे हैं ! पत्रकारों से तटस्थ दृष्टि की आशा की जाती है। लेकिन जफर साहब बिके हुए पत्रकार और एक भ्रष्ट कांग्रेेसी नेता की तरह बात कर रहे हैं। वे आंदोलन को फ्लॉप सिद्ध करते हुए आंदोलनकारियों पर व्यंग्य कर रहे हैं ! वॉल पर अंकित उनकी टिप्पणी द्रष्टव्य है-
‘‘ अरे, फेसबुक पर क्रांति का झंडा बुलंद करने वाले ईमानदार लोगो, घर में क्यों बैठे हो, सुबह नाश्ता और चाय तो पी ली। अब तो अन्ना के समर्थन पर सड़कों में निकलो… दिल्ली में कुछ हजार लोग बाहर निकले हैं, लखनऊ में एक दर्जन भी नहीं, चंडीगढ़, भोपाल, इलाहाबाद में कुछ दर्जन लोग बाहर निकले हैं। क्या सिर्फ घर में बैठकर फेसबुक पर सरकार को गालियाँ देने से ही देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा ? वैसे यह भी ठीक है। यहाँ फेसबुक पर क्रांति की बात और है, कौन जाए वहाँ लाठियाँ खाने पुलिस की । जै अन्ना !’’
जफर साहब का क्रोध अहिंसक आंदोलनकारियों पर इतना है कि उन पर लाठी बरसाने की भी लालसा रख रहे हैं ! उन्हें लाठी खाने के लिए भेजने को उत्सुक हैं !जफर भाई ! जब जन आंदोलन छिड़ता है तो जनता को आंदोलन के विरोधियों का सामना अनेक मोर्चा पर करना पड़ता है। आप जैसे वैचारिक धुंध फैलाने वाले पत्रकारों की बखिया उधेरने के लिए भी कुछ आदमी चाहिए न फेसबुक पर ? सो वही समझिये। जब हजारों लाखों लोग फेसबुक से जुड़े हैं तो विचार की युद्धभूमि में इसका तब्दील होना स्वाभाविक है। आप जैसे लोगों को माकूल जवाब देने वाला भी कुछ आदमी फेसबुक पर चाहिए।
आप आंदोलनकारियों की फिकर मत कीजिए, अपनी यूपीए सरकार को बचाइये और कान खोलकर सुन लीजिए- या तो जन लोकपाल विधेयक पारित होगा या सरकार जायेगी। तीसरा कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि अन्ना ने जनता को जगा दिया है। उसका मनोबल बढ़ा दिया है। जनता अपना सारा हिसाब-किताब चुकता करेगी। अब लोगों को भरमाने वाली आपकी जो पहली टिप्पणी है, उस पर विचार कर लेते हैं…..
‘‘ मैं ईमानदार नहीं हूँ , इसलिए अन्ना के साथ नहीं हूँ । मैंने पत्रकारिता में आने से पहले अपना काम कराने के लिए कई बार घूस दी है, ट्रेन में टिकट बुक करवाने के लिए टीटी को घूस दी। पत्रकारिता में आने के बाद मैंने कई बार सरकारी अधिकारियों के यहाँ चाय पी और खाना खाया, तो मैं ईमानदार कैसे हो गया ? जिन लोगों ने आज तक किसी को एक पैसा घूस न दी हो और न ली हो, किसी के यहाँ मुफ्त खाना या चाय न पी हो वे ईमानदार लोग ही अन्ना के साथ हों, मैं तो नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा जमीर गवारा नहीं करता।’’
चूँकि हर आदमी अपने जीवन में कभी न कभी किसी न किसी तरह का छोटा से छोटा भ्रष्टाचार भी करता ही है; इसलिए आपके अनुसार भ्रष्टाचार का विरोध करने का हक किसी को नहीं है ! भ्रष्टाचार को फलते-फूलते रहना चाहिए ! उस पर रोक लगाने के लिए कोई खड़ा न हो, क्योंकि वह इसका अधिकारी नहीं है। वाह !
आप ईमानदार नहीं हैं, इसलिए आपके लिए स्वाभाविक है कि आप न सिर्फ अन्ना के आंदोलन में शामिल न होंगे बल्कि विरोध में भी पूरी ताकत झोंक देंगे। अपना जायज काम कराने के लिए कोई भी आदमी घूस देना नहीं चाहता, लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था ने आदमी को इतना विवश कर दिया है कि अपनी जीविका के लिए या अपरिहार्य काम के लिए उसे घूस देना ही पड़ता है। घूस देते वक्त उसकी आत्मा रोती है। उसका वश चले तो वह घूसखोर को ऐसा पटका मारे कि वह धूल चाटने लग जाय।
आपने अपने काम कराने के लिए कई बार घूस दी है, लेकिन यह नहीं कहा कि आपके काम जायज थे या नाजायज ? अगर नाजायज थे तो आप भ्रष्ट हैं। अगर जायज थे तो क्या आप इस व्यवस्था को चलने देना चाहते हैं ? क्या इसके प्रति क्षोभ नहीं है आपके मन में ? आपने ट्रेन में वेंटिग लिस्ट में लगे लाचार यात्रियों का हक मारकर पैसे के जोर से उनकी सुविधा नहीं छीन ली ? आप इसी को ईमानदारी कह रहे हैं ? आप पत्रकार हैं। बिके हुए पत्रकारों की भ्रष्ट नेताओं और सरकारी अधिकारियों से बड़ी साँठ-गाँठ रहती है। वे उनके यहाँ चाय ही नहीं पीते, खूब मुर्गी-मसल्लम उड़ाते हैं, शराब पीते हैं, गिफ्ट लेते हैं और अनेक तरह की सुख-सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। सरकारी अधिकारियों के यहाँ आपका खाना साधारण खाना नहीं रहा होगा। ध्यान रखिये, जो देश को खा रहे हैं, उनका खाना आपने खाया है, इसलिए आपको उनका गाना ही पड़ेगा। नमक हराम होने से बचने का सुंदर सुयोग हाथ आया है। खूब जमकर भ्रष्टाचार का साथ दीजिए। जय भ्रष्टाचार !