बोरियत भरी जिंदगी के लिए ये पढ़े

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मैं अपने जीवन में कई ऐसे लोगों से मिला हूं जिनमें खुद को बोर करने की प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी, लेकिन सैंडी मान उनमें से एक हैं जो इसे कौशल के रूप में निखारने में जुटी हैं।बोरियत का शिकार लोग उनकी प्रयोगशाला में आते हैं और टेलीफोन नंबरों की लंबी सूची को लय में गाते हुए बाहर निकलते हैं।वे अपने काम को बहुत शालीनता से करते हैं, लेकिन उनका पैर घिसटकर चलना और नियमित रूप से जम्हाई लेना बताता है कि वे इस अनुभव का लुत्फ़ नहीं उठा रहे हैं।

बोर होने का उनका यही कष्ट दरअसल, विज्ञान का फ़ायदा है, क्योंकि सैंडी मान बोरियत से हमारे जीवन पर पड़ने वाले असर को समझना चाहती हैं।वह ऐसे मनोविज्ञानियों में शामिल हैं, जो इस अनछुए विषय पर काम कर रही हैं।मान कहती हैं, “यह मनोविज्ञान का उपेक्षित विषय है। यह स्वीकार करना कि आप बोर होने के विषय पर शोध कर रहे हैं, अपने आप ही बोर होने जैसा है। लेकिन सच्चाई यह नहीं है।”

बोर होना ख़तरनाक हो सकता है और मन की अशांत स्थिति का संकेत है, जो कि आपकी सेहत के लिए नुक़सानदेह हो सकता है।बोर होने का ये नकारात्मक पहलू है, लेकिन दूसरी तरफ मान का शोध ये भी बताता है कि अगर आप बोर नहीं होंगे तो रचनात्मक कार्य नहीं कर सकेंगे।बोर होना हमारे दैनिक जीवन से इस क़दर जुड़ा हुआ है कि यह सोचकर हैरानी होती है कि 1852 में चार्ल्स डिकंस की किताब ‘ब्लीक हाउस’ में छपने के बाद ही यह शब्द भाषा में शामिल हुआ।

कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के जॉन ईस्टवुड कहते हैं, “यह वह अवस्था है जब आप कोई काम कर रहे होते हैं और आपको लगता है कि यह बेकार है।”एक और गलतफ़हमी है कि सिर्फ़ ‘बोरिंग लोग ही बोर होते हैं।’ दरअसल, दो अलग तरह के व्यक्तित्व हैं जिनमें बोर होने की प्रवृत्ति देखी गई है, हालाँकि वे ख़ुद में नीरस नहीं होते।ईस्टवुड कहते हैं कि बोरियत अक्सर उन व्यक्तियों में देखी जाती है जो नियमित तौर पर कुछ नया करने की तलाश में रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए सामान्य जीवन का ढर्रा उनका ध्यान बनाए रखने के लिए काफी नहीं होता।

दूसरी तरह के बोर होने वाले लोग बिल्कुल इसकी उलट समस्या का शिकार होते हैं। उन्हें दुनिया डरावनी लगती है और इसलिए वे अपने दरवाजे बाहरी लोगों के लिए बंद कर देते हैं।”दर्द के प्रति अतिसंवेदनशील होने के कारण वे दूसरे लोगों से खिंचे-खिंचे रहते हैं।” हालाँकि इस तरह से वे आराम की स्थिति में होते हैं, लेकिन हमेशा नहीं और फिर बोरियत का शिकार होते हैं।काफी पहले ही यह स्पष्ट हो चुका है कि बोर होने से व्यक्ति खुद को नुकसान पहुंचाने लगता है। बोर होने की स्थिति में व्यक्ति को धूम्रपान, बहुत ज़्यादा शराब पीना, ड्रग्स जैसी लतें लग जाती है। बोर होने का आपकी उम्र पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

ब्रिटेन में मिडिल एज्ड नौकरशाहों पर हुई बेहद मशहूर ‘व्हाइटहॉल स्टडी’ में पाया गया था कि बोर होने वाले नौकरशाहों की अगले तीन साल में मृत्यु होने की संभावना 30 प्रतिशत अधिक थी।मनोचिकित्सकों के लिए ये तथ्य कुछ उलझाने वाला था।टेक्सस यूनिवर्सिटी की हीदर लेंच कहती हैं, “बोर होने का प्रतिदिन का अनुभव बताता है कि इससे फ़ायदा होता है।” मसलन डर हमें ख़तरे से बचाता है, जबकि दुख हमें भविष्य की संभावित गलतियों से रोकता है।लेंच का कहना है कि बोर होना हमें पुराने खांचों में बने रहने से रोकता है और नए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित करता है। इससे हमें कल्पना की उड़ान भरने में मदद मिलती है।

हम एक ढर्रे से बाहर निकलकर कुछ अलग तरीके से सोचने में कामयाब रहते हैं।इन फ़ायदों को देखते हुए सैंडी मान का मानना है कि बोरियत जब हमें नुक़सान पहुंचाने लगती है, तो हमें इससे डरना नहीं चाहिए, बल्कि हमें इसका आनंद उठाना चाहिए।वो कहती हैं, “ट्रैफ़िक में फंसने के बाद ये कहने की बजाय मैं बोर हो रही हूं, ये सोचना चाहिए कि मैं संगीत चालू कर दूंगी और अपने मन को कल्पनाओं के आसमान में छोड़ दूंगी। इसके अलावा मैं अपने बच्चों को भी बोर होने दूंगी- क्योंकि उनकी रचनात्मकता के लिए ये अच्छा है।”

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