श्री दुर्गा माता की आरती

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आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। जिसका अर्थ यही है कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
 

श्री दुर्गा माता की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशि दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
जय अम्बे …
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ।।
जय अम्बे …
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।
जय अम्बे …
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्पर धारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी।।
जय अम्बे …
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटि चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति।।
जय अम्बे …
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।।
जय अम्बे …
चण्ड – मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु – कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे …
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
जय अम्बे …
चैंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरु।
बाजत ताल मृदंग, अरु बाजत डमरू।।
जय अम्बे …
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता ।।
जय अम्बे …
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
जय अम्बे …
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ।।
जय अम्बे …
अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख – सम्पत्ति पावे।।
जय अम्बे …

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