जो भी होता है अच्छे के लिए होता है।

हमेशा एक बात सुनता आया हूँ कि जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। पहले तो मैं इस बात को दिलासा देने का एक माध्यम मानता था लेकिन अब इस पर यकीन होने लगा है। एक दिन दुकान से नया जूता खरीद कर लाया और वह कुछ दिन बाद ही फट गया। उस समय दुकानदार को मन ही मन मैंने काफी कोसा और फिर उसे बनवाने के लिए मोची के पास गया। मोची जूते को सिल ही रहा था कि मेरे मन में एक ख्याल आया अगर जूता-चप्पल बनाने वाली सभी कम्पनियां मजबूत समान बनाने लगी तो बेचारे मोची कैसे अपना खर्चा चलाएंगे।

आगे चला तो देखा कि हाल ही में बनी रोड चंद दिनों में ही टूट गई थी। वहां के लोग विधायक और ठेकेदार को चोर घपलेबाज आदि प्रकार से सम्बोधित कर रहे थे। मेरे मन में फिर सवाल उठा अगर रोड बनाने में जनप्रतिनिधि और ठेकेदार घपला नहीं करेंगे तो सड़क वर्षों तक चलेगी। फिर मनरेगा तो मात्र सौ दिन मजदूरों को काम देता है शेष बचे 265 दिन कैसे ये अपना और परिवार का पेट पालेंगे? अक्सर शोर उठता है कि गरीबों के लिए आवंटित मकान सरकारी मशीनरी ने हड़प लिए। तो भाई इसमें गल्ती पात्र की ही तो है। वो जागरूक नहीं होगा तभी तो उसकी जमीन हड़प ली गई फिर वह सिर्फ मकान ही नहीं जीवन में बहुत कुछ खोता आया होगा। वर्ना समाज में मीडिया के होते हुए कोई भी गलत काम छिप सकता है क्या।

वो बात अलग है कि मीडिया में इन दिनों पेड न्यूज चरम पर है लेकिन सरकार ने तो भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आन्दोलन‘ खड़ा करने के लिए मीडिया को पूरा श्रेय दे डाला। उल्टा उस बुजुर्ग को भ्रष्टाचारी कह डाला जिसने ग्यारह दिन भूखे पेट बिताए। खैर अन्ना आंदोलन के बाद देश में एक जागरूकता उत्पन्न हो गई। कांग्रेस भले ही ऊपर से इसका विरोध कर रही हो लेकिन भीतर-भीतर वो भी कह रही है जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। भाई अगर अन्ना आंदोलन न होता तो देश में भ्रष्टाचार विरोधी अलख न जगती। पुराने घूसखोर नेता जेल न जाते और नए के लिए पद न खाली होते।

राहुल गांधी वैसे भी नवयुवकों को देश का असली चेहरा मानते हैं। अब युवाओं की भर्ती के लिए पार्टी में पद तो रिक्त होने चाहिए सो अब हो रहे हैं। एक पुरानी कहावत भी है दो तलवारें एक मियान में नहीं रह सकते। फिर एक वरिष्ठ मंत्री दूसरे वरिष्ठ मंत्री को कैसे फूंटी आंख सुहाएगा? मौका मिला नहीं कि एक चिट्टी में उसने खोल दी दूसरे मंत्री की पोल। लेकिन दांव सही नहीं बैठ पाया और किसी तरह बच गए मंत्री जी। बात यही पर खत्म नहीं होती है। इस आंदोलन के बहाने कई चापलूस नेताओं ने बड़े-बड़े बोल बोलकर पार्टी में अपना कद बढ़ाने की कोशिश भी।

एक नेता ने तो गुरू-शिष्य के रिश्ते को शर्मशार कर दिया। कल तक जो शिष्य अपने गुरू के चरणों में पड़ा रहता था उसने अपने गुरू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। हास्यास्पद बात तो यह है कि वह शिष्य आज कांग्रेस पार्टी के होने वाले प्रधानमंत्री का मार्गदर्शक बना हुआ है। यानी वर्तमान प्रधानमंत्री तो भ्रष्टाचार के घेरे में हैं और भविष्य के अंडर ट्रेनिंग में चल रहे हैं। खैर! मैं कौन होता हूँ किसी को अच्छा बुरा कहने वाला। अब जो भी हो रहा है अच्छे के लिए ही तो हो रहा है।

प्रशांत भार्मा

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