एक धमाके की जरुरत है !

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और बटुकेश्र्वर दत्त जैसे क्रन्तिकारी तो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज और सोच आज भी हमारे अंदर है। 

क्रान्तिकारी भगत सिंह और सुखदेव के मुल्क से प्रेम तो देखिये. भगत सिंह का फांसी के समय अमृत को लेने से इंकार करना और सुखदेव का नाम के साथ थापर का इस्तेमाल करने का इंकार इस बात का सबूत है कि एक क्रन्तिकारी का धर्मं सिर्फ भारतीयता ही होती है और वो भगवान से यही प्रार्थना करता है कि हे भगवान जब भी जन्म मिले तो भारत माता के चरणों में ही मिले। आपको लगता नहीं की हमने उनकी शाहदत को भुला दिया है।

एक बात का और अफ़सोस रहेगा जिसका जवाब आज तक नहीं मिला की इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नेहरु सबको भारत रत्न से विभूषित किया गया पर देश के क्रांतिकारियों को भारत रत्न के काबिल ही नहीं समझा गया। 

क्या ये हमारी ही सरकार है और हमारा देश है जहाँ क्रांतिकारियों को महाराष्ट्र की पुस्तकों में आतंकवादी करार दिया गया था और बाद में जब बात बड़ी तो सरकार माफ़ी मांग रही है। जहाँ इज्जत मिलनी चाहिए थी वहां सरकार से इन क्रांतिकारियों को मिली तो सिर्फ बेइज्जती।

भारत की जनता स्वाधीनता आंदोलन में जीवन लगाने व न्यौछावर करने वाले लाखों ज्ञात-अज्ञात देशभक्त शहीदों को भुला कर ही नहीं बल्कि उनकी अवहेलना कर, इंडिया गेट को शहीदों की याद बताकर आजादी के प्रतीक दिन, हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को इंडिया गेट पर सिर झुकाती है आखिर क्यों? जब कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि इंडिया गेट पर खुदे नामों में एक भी नाम हमारे स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों का नही है। 

जब हम किसी से प्रश्न करते हैं कि क्या आपको पता है कि इंडिया गेट किसकी याद में बना है? तो सब कहते हैं शहीदों की याद में। पर आम आदमी को जब पता चलता है कि यह अफगान व प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज साम्राज्य की रक्षा के लिए मरने वाले सिपाहियों की याद में बना है, हमारे आजादी के शहीदों की याद में नहीं उसे यह बात झूठ लगती है। परंतु आप तो इसकी सच्चाई जानते हैं इंडिया गेट की नींव 10 फरवरी 1921 में एक अंग्रेज अधिकारी लुटियन ने डाली थी और 1931 में जब शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फॉसी दी जा रही थी तो इन शहीदों का हत्यारा लार्ड इरविन ने इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करके इसे भी हमारे मत्थे पर जड़ दिया था। यह कह कर कि ‘‘यह है इंडिया की राष्ट्रीय निशानी, अंग्रेज साम्राज्य की वफादारी का प्रतीक, जो अंग्रेजों के लिए लड़ेगा उसे सम्मान दिया जाएगा जो आजादी के लिए लड़ेगा उसे फांसी।’’ 
इतना ही नहीं दिल्ली पर राज करने वाली सरकारो ने 1947 (उन्नीस सौ सैतालिस) के बाद भारतीय सिपाहियों की कुर्बानी का भी मजाक उड़ाया, जब 1971 उन्नीस सौ इकहतर में भारतीय सिपाहियों की याद में अमर जवान ज्योति को इसी इंडिया गेट की छत्र-छाया में बनाया गया। क्या आज भारत के पास उनकी कोई राष्ट्रीय यादगार बनाने के लिए भी जगह नहीं थी या फंड नहीं था? हमारा सिपाही भारत के गणतंत्र के लिए जीवन न्यौक्षावर करता है, साम्राज्य के लिए नहीं। फिर अंग्रेजी सेना से आज की सेना का रिश्ता क्यों जोड़ा गया है।

और सुनिए सरकार के अच्छे कामों के बारे में,

देश के गोदामों में पडा धान सड़ रहा है लेकिन सरकार देश की गरीब जनता के पास ये धान नहीं पहुँचने देते ये जानते हुए भी की गरीब जनता भूखे पेट रही है. ये भी सोचे की देश में महंगाई क्यों बड़ती ही जा रही है और एक गरीब आदमी को अब अपनी जरूरतों का सामान खरीदते भी सौ बार सोचना पड़ रहा है। ये बताएं की ये सरकार हर बार गरीब किसानो और मजदूरों के रूप में भारत की गरीब जनता का शोषण ही क्यों कर रही है क्यों एक गरीब किसान की उपजाऊ जमीन को जो उसकी माँ है सरकार ये कह कर सस्ते दामों पर ले लेती है की वो देश के हित के लिए उसे जमीन चाहिए लेकिन बाद में वही जमीन दलाली कमाने के लिए जमीन के सौदागरों को बेच दी जाती हैं। आपको नोएडा का जमीन के घोटाले का किस्सा भी याद होगा और एक और घटना जो हाल ही में हुई है जिसमें हरियाणा सरकार ने लीस पर हरियाणा के उलहवास गावों की पंचायत की जमीन राजीव गाँधी ट्रस्ट जिसके ट्रस्टी स्वयं राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और प्रियंका वडेरा है उनको सिर्फ ३ लाख रूपया साल के किराये पर दे दी।

इसको अलावा आदर्श घोटाला जिसकी आपराधिक साजिश में कुछ रक्षा अधिकारी भी महाराष्ट्र सरकार के नौकरशाहों और अन्य लोगों के साथ शामिल थे जिनके खिलाफ दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करने के सबूत मिले हैं। इसके अलावा किस किस घोटाले का नाम लूँ: 
यूपीःपाठ्यपुस्तकों की छपाई में घोटाला या स्पेक्ट्रम घोटाला जिसमें मानव रहित विमान १५० करोड़ का घपला हुआ  कोमन वेअल्थ गेम घोटाला जिसके सुरेश कलमाड़ी जैसे आरोपी इसके अलावा 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला जो देश के सभी घोटालों की जननी है जिसमें राजा और नीरा राडिया जैसे अभियुक्त शामिल हैं तो आज जिस घोटाले का पर्दाफाश हो रहा है, वह देश में हुए अब तक के सभी घोटालों का पितामह है। आपको अब तक के सबसे बड़े घोटाले से रूबरू करा रहा है. देश में कोयला आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट हुई है। सबसे बड़ी बात है कि यह घोटाला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही नहीं, उन्हीं के मंत्रालय में हुआ. यह है कोयला घोटाला. कोयले को काला सोना कहा जाता है, काला हीरा कहा जाता है, लेकिन सरकार ने इस हीरे का बंदरबांट कर डाला और अपने प्रिय-चहेते पूंजीपतियों एवं दलालों को मुफ्त ही दे दिया।

क्या आप लोग थक नहीं जाते इन सब घोटालों के बारे में सुन सुन कर... क्या यही सपना था, जो आजाद भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु, सुभाष जैसे कितने ही क्रांतिकारियों ने भारत के भविष्य के लिए देखा था।

मुझे लगता है जैसे हमारे क्रांतिकारियों को सही ही लगता था की सत्ता की नींद में सोई सरकार को जगाने के लिए एक धमाके की जरुरत होती है वैसे ही आज भ्रष्टाचार से लिप्त इस सरकार को जगाने के लिए एक धमाके की जरुरत है ताकि सत्ता का मजाक बनाने वाली यह सरकार अपनी नींद से जाग सके। वक्त आ गया है की अब सुखदेव, आजाद, भगत सिंह जैसे युवा क्रान्तिकारी अब दुबारा आगे आयें जो इन भारत माता को बेचने की कोशिश करने वालो को जेल की सलाखों की जगह दिखा पाएं और अगर फिर भी न मानें तो सजाये मौत।

देश के युवाओं से निवेदन है की भारत में एक सच्चे स्वाधीनता संग्राम के लिए सहयोग दें ताकि हम देश के गद्दारों के हाथों से सत्ता छीन कर क्रांतिकारियों के सपनो के भारत को साकार कर पाएं और भारत के सिस्टम को बदल पाएं। हम एक आखिरी फैसला लें की या तो बुराई का खात्मा करेंगे या भारत माता के चरणों में शहादत की एक और दास्ताँ लिखी जायेगी जिसमें इस बार हजार नहीं करोड़ों भारत माता के बच्चे होंगे।

है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 
वन्दे मातरम….

अनुज थापर

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