पशुओं की ‘संसद‘

मनुष्यों के अत्याचार से पीड़ित पशुओं ने सुरक्षा के लिए अपनी संसद में आवाज बुलंद की। कोई मनुष्य की तरह मानवाधिकार कानून की मांग कर रहा था तो कोई लोकपाल बिल जैसा बिल। पशुओं की संसद में ‘कूकुर दल‘ के नेता ने सबसे पहले मुद्दा उठाया। महोदय! हमारी जाति स्वामिभक्ति के लिए प्रसिद्ध है और इंसान गद्दारी के लिए। फिर भी मनुष्य जब मनुष्य को गाली देता है तो कहता है तुम कुत्ते हो। यह कैसा न्याय है? भला हममें और मनुष्यों में क्या समानता? यह हमारी जाति का अपमान है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अभी इनकी बात खत्म ही हुई थी कि चूहे दल का नेता बोल उठा। स्पीकर महोदय! मनुष्यों से हमारी जाति को भी शिकायत है। मनुष्य जाति में जब भी कायरता का उदाहरण दिया जाता है तो कहा जाता है तुम चूहे हो। इससे हमारे साथी जानवरों की नजरों में हमारी गलत छवि बन रही है। यह हमारी जाति की प्रतिष्ठा के लिहाज से सही नहीं है।

इतने में बंदर दल का नेता भी बोल पड़ा। जब भी मैं और मेरी साथी घूमने निकलते है तो मनुष्य हमें तरह-तरह का मुंह बनाकर चिढ़ाते हैं। इससे हमारी सामाजिक मर्यादा को ठेस पहुंचती है। हम एक लोकतांत्रिक जंगलराज के जानवर है और कहीं भी घूमने फिरने के लिए स्वतंत्र हैं फिर इस प्रकार से समाज में हमारा मजाक बनाना नियमों के खिलाफ है।

जहां भैसों ने खुद को बंधुआ मजदूर बता डाला वहीं गधों ने खुद पर बढ़ रहे मनुष्य अत्याचार का दुखड़ा रोया। उधर घोड़ों ने भी कहा कि दूसरों की शादी में तो मैं खूब शरीक हुआ हूं लेकिन मेरी शादी में कोई भी नहीं आया। इसलिए अब मैं किसी भी दूल्हे को खुद पर नहीं बैठाउंगा। पंछी समाज को भी मनुष्यों से बहुत शिकायत थी। जहां कबूतर ने खुदको शिकार का एक माध्यम बताया वहीं तोते ने अपनी सुंदरता को पिंजरे की जकड़ से मुक्त कराने का मुद्दा उठाया। अंत में

जानवरों के प्रधानमंत्री ‘शेर‘ को सभापति ने बोलने के लिए आमंत्रित किया। शेर बोला वैसे तो मनुष्य मेरी राह के पास तक नहीं भटकते लेकिन किसी राजा को यूं चिड़ियाघर में रखकर उसकी स्वतंत्रता को सीमित करना पूरे जानवर समाज का अपमान है।

प्रत्येक दल की समस्या सुन सभापति परेशान हो गए। उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। उन्होंने सदन से आग्रह किया कि कृप्या कोई ऐसा समाधान निकाले जिससे सभी जाति के जानवरों का समाधान निकल आए। इसके बाद उन्होंने सदन को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया। उसी रात सभी जानवर जाति के लोगों ने सर्वदलीय मीटिंग बुलाई जिसमें सबने अपनी-अपनी समस्या के सामाधान हेतु कुछ नियम बनाए। अगले दिन एक बिल सदन में पेश हो गया और सभापति ने इस बिल का नाम पूछा तो एक सुर में आवाज उठी ‘पशुपाल बिल। जानवरों के सभापति भी चुटकी लेते हुए बोले चलो आप सबकी एकता और शांति से हमारे यहां ‘पशुपाल बिल‘ पारित हो गया। अब देखते हैं मनुष्य ‘लोकपाल‘ कब पारित करा पाते हैं।

अंत में सभापति बोले इंसान कहते हैं तुमसे तो जानवर भले मगर आज हमने सिद्ध कर दिया है कि हम हैं इंसान से भले।

प्रशांत शर्मा

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