बजट 2012 : "आम आदमी को जोर का झटका, धीरे से"

तो लीजिये बजट तो प्रणव दा ने पेश कर दिया और इस बार तो यह भी कह दिया कि “मुझे उदार होने के लिए निष्ठुर होना पड़ेगा | ” लेकिन यह कैसा तर्क दे रहे हैं बाबू मोशाय | निष्ठुरता हमसे काहे की भाई हम तो पहले से आपकी निष्ठुरता और बेखयाली के मारे हैं ,खैर अब  जो है वह तो झेलना ही पड़ेगा |

यहाँ कुछ उन बिन्दुओ पर नजर डाल लेते हैं जिन्हें अबकी बार के बजट में वित्त मंत्री ने पेश किया है |बजट की शुरुआत विपक्ष की टोका-टाकी और शोर-शराबे के बीच हुई। शुक्रवार को ठीक 11 बजे लोकसभा में जैसे ही वह बजट पेश करने के लिए खड़े हुए वामपंथी सदस्यों ने कर्मचारी भविष्य निधि [ईपीएफ] ब्याज दर में सवा फीसद की कमी किए जाने पर शोर मचाना शुरू कर दिया।

केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को लोकसभा में 2012-13 के लिए आम बजट पेश करते हुए लोगों को व्यक्तिगत कर राहत देने, काले धन पर रोक लगाने, अधोसंरचना, पूंजी बाजार में सुधार को बढ़ावा देने तथा सब्सिडी में भारी कटौती करने जैसे वादे किए। बजटीय प्रस्तावों में लोगों को व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्ष कर कुछ राहत देगा, लेकिन अब खाना-पीना, महंगी कारें खरीदना, हवाई यात्रा, कुछ पेशेवर सेवाओं का लाभ लेना और सोने के जेवरात खरीदना महंगा हो जाएगा।

मुखर्जी ने नए कर स्तरों की भी घोषणा की, जिसके तहत 2,00,000 रुपये तक की आय पूरी तरह करमुक्त होगी, 2,00,000 रुपये से 5,00,000 रुपये तक की आय पर 10 प्रतिशत कर होगा और उसके बाद 5,00,000 रुपये से 10,00,000 रुपये तक की आय पर 20 प्रतिशत कर तथा 10,00,000 से ऊपर की आमदनी पर 30 प्रतिशत कर लागू होगा।

मुखर्जी ने कहा कि कारपोरेट क्षेत्र के लिए यद्यपि कर दरें अपरिवर्तित हैं, लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र के विस्तार के लिए धन की आसान उपलब्धता का भरोसा दिलाया। भले ही उन्होंने खास वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क दरें और सीमा शुल्क बढ़ा दी।

मुखर्जी ने सेवा कर को मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया है।

भले ही वित्त मंत्री ने कुछ लोक-लुभावन घोषणाएं की हों, लेकिन उनका कोई विशेष लाभ आम आदमी को शायद ही मिले, क्योंकि उन्होंने एक हाथ से दिया कम है और दूसरे हाथ से ज्यादा लेने के प्रबंध अधिक किए हैं। जिस तरह रेल बजट के संदर्भ में यह धारणा बन गई थी कि इस बार किराया बढ़ना तय है उसी तरह यह मानकर चला जा रहा था कि आम बजट कोई बड़ी राहत शायद ही दे, क्योंकि वित्त मंत्री के सामने अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आने की चुनौती है और उन्हें उसका सामना करना ही चाहिए। इस आम धारणा के बावजूद वित्त मंत्री ने चुनौतियों से मुंह मोड़ लिया। वह न तो सब्सिडी कम करने के कोई ठोस उपाय कर सके और न ही राजकोषीय घाटे पर काबू पाने के। इसी तरह वह न तो आम जनता को कोई वास्तविक राहत दे सके और न ही आर्थिक सुधारों के रास्ते पर चल सके। अब तो यह भी तय है कि महंगाई पर लगाम नहीं लगने जा रही है।

यह समझना कठिन है कि अपेक्षित कदम न उठाने के बावजूद यह उम्मीद किस आधार पर जताई जा रही है कि आर्थिक विकास दर सात प्रतिशत के ऊपर रहेगी या फिर राजकोषीय घाटे में कमी आएगी अथवा सब्सिडी का बोझ कम होगा। जिन घोषणाओं के जरिये आम बजट को बेहतर बताने की कोशिश की जा रही है उनके बारे में यह कहना कठिन है कि उन पर समय रहते अमल किया भी जा सकेगा। अब यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वित्त मंत्रालय ने आर्थिक समीक्षा के निष्कर्षो की उपेक्षा ही की है।

वैसे बजट को ले कर जो लोगो की आस थी वह तो पूरी न हो सकी अब देखना है की उनके उदारवादी प्रयास जनता को कितना सुकून पहुंचा पाते हैं |

अभिषेक द्विवेदी —

[इण्डिया हल्लाबोल स्पेशल डेस्क}

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