दोस्त दोस्त न रहा, गठबंधन गठबंधन न रहा

17 साल तक मजबूती से बंधी भाजपा और जद यू बंधन की गांठ आखिर खुल ही गयी। दोनों के रास्ते भले ही अलग अलग हो गए हों लेकिन दोनों की मंजिल एक ही है…किसी भी तरह से सत्ता को हासिल करना..! 17 साल पहले भी जब ये गांठ बंधी थी तब भी दोनों सत्ता पाने के लक्ष्य को लेकर साथ हो चले थे और आज जब ये गांठ खुल गयी है तो भी दोनों की निगाहें सत्ता पर ही हैं..!

वैसे भी राजनीति की यही रीत है…यहां न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और न ही स्थाई दोस्त..! जब..जहां…जो उपयोगी लगता है…वो दोस्त बन जाता है और जब इसी दोस्त से अपना नुकसान लगने लगता है तो दोस्ती को तोड़ने में देर नहीं की जाती…फिर भले ही ये दोस्ती 17 साल पुरानी क्यों न हो..?

भाजपा और जद यू की दोस्ती की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सत्ता हासिल करने के लक्ष्य को लेकर 17 साल पहले दोनों ने हाथ मिलाया था। दोनों एक दूसरे के काम भी आए और समय समय पर आपसी समझौते के आधार पर दोनों ने सत्ता सुख भी भोगा…फिर चाहे वो केन्द्र का मामला हो या फिर बिहार का..!

दोस्ती में उतार चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन खासकर मुसीबत में सच्चे दोस्त कभी साथ नहीं छोड़ते लेकिन अगर ये दोस्ती राजनीतिक हो और सत्ता सुख भोगने के लिए की गयी हो तो फिर इस दोस्ती को दुश्मनी में बदलने में देर नहीं लगती..!

जद यू और भाजपा की दोस्ती भी राजनीतिक थी ऐसे में देर सबेर इस दोस्ती को टूटना ही था। लंबे समय से केन्द्र की सत्ता से दूर भाजपा हर हाल में सत्ता पाने को आतुर है ऐसे में भाजपा को मोदी की बढ़ती लोकप्रियता इसका रास्ता दिखाई देने लगी तो भाजपा ने तमाम विरोधों के बाद भी मोदी की ताजपोशी 2014 की चुनाव अभियान समिति के चेयरमैन की कुर्सी पर कर दी।

मोदी को सांप्रदायिक मानने वाली जद यू को भाजपा का ये फैसला बिहार में उसके लिए नुकसान की चाबी लगा..!ऐसे में जद यू को भाजपा के साथ दोस्ती में एक खास वर्ग के वोटरों का उससे खिसक जाने का भय लगने लगा तो जद यू ने भाजपा से 17 साल पुरानी दोस्ती तोड़ दी..!

भाजपा और जद  दोनों में से किसी ने भी 17 साल पुरानी इस दोस्ती को कायम रखने की कोशिश नहीं की और दोनों ही अपनी – अपनी जिद पर अड़े रहे। मजे की बात तो ये है कि बंधन की गांठ खुलने पर दोनों अब एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं..!

राजनीति के इस रुप को भी समझिए जो नेता अब तक साथ मिलकर बिहार की जनता के हक की बात करते हुए अलग अलग मुद्दों पर एक स्वर में फैसले लेते थे अब उन्हीं नेताओं में एक-एक मुद्दे पर तकरार सुनाई देगी..!शुरुआत भाजपा ने नीतीश कुमार का इस्तीफा मांग कर और 18 जून को बिहार बंद के एलान के साथ कर ही दी है..!

बहरहाल अपने – अपने राजनीतिक फायदे के लिए वोटबैंक की राजनीति के रास्ते पर दोनों दल भले ही चल दिए हों लेकिन इन्हें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जो जनता इन्हें सत्ता तक पहुंचा सकती है…वही जनता इन्हें सत्ता से बेदखल भी कर सकती है..!

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