उत्तर प्रदेश, देश का एक महत्तवपूर्ण राज्य, चाहे राजनैतिक स्तर हो या आर्थिक स्तर पर औऱ चाहे समाजिक स्तर पर. यह राज्य हमेशा ही देश की सत्ता का केन्द्र रहा है. प्रदेश के बारे में यह भी कहा जाता रहा है कि केन्द्र गद्दी का मार्ग उत्तर प्रदेश से प्रशस्त होता है. शायद यह सत्य भी है क्योंकि मौजूदा राजनीतिक हालात यही परिदृष्य पैदा कर रहे है. आने वाले 6 महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है. औऱ सभी छोटे बड़े दल इस चुनावी महौल को हवा देने मे जुट गये है. लेकिन इस बार शायद चुनाव पहले की अपेछा कहीं अधीक रोचक साबित होगें, क्योंकि सत्ता के स्तम्भों को भी अब भान जोड़ा गया हैं कि जनता का जागरण हो चुका है. बिहार औऱ 6 महीने पहले हुऐ पाँच राज्यो के चुनावो सभी यह स्पष्ट हो जोड़ा गया है.
इधर अपने अस्त्तिव को बचाने के लिए प्रयासरत भाजपा के वरिष्ट नेता लाल कृष्ण अडवाणी ने भ्रष्टाचार औऱ काले धन के मुद्दे को लेकर, जनचेतना यात्रा की जो शुरुआत की है वास्तव में यह प्रधानमंत्री की कुर्सी यात्रा साबित हो रही हैं, क्योकि भाजपा इस समय अपने अन्तर कलहो से जुझ रही हैं, औऱ अड़वाणी जी ने अपने आप को भी पीएम प्रोजेक्ट करने का तरीका यात्रा के मार्फत निकालने का सोचा, इसी यात्रा में एक हास्यास्पद स्थिती उस समय हुई जब सतना से यह खबर आई कि यहा भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने प्रेस वार्ता में पत्रकारो को रुपये बाटें. इससे इस यात्रा औऱ भाजपा का दोहरा चरित्र सामने आता हैं. एक दूसरे कद्दावर नेता राजनाथ सिंह भी मथुरा से अपनी स्वाभिमान यात्रा की शुरुआत कर दी हैं. इस यात्रा से पहले ही उन्होनें यूपी में अतिपिछड़ो को अलग से आरक्षण देने की बात कहकर एक अलग राजनैतिक माहौल देने की कोशिश की है. इस यात्रा के दौरान उनका साथ भाजपा के बुझे दीपक कलराज बनारस मिश्र से यात्रा की शुरुआत करके अयोध्या में एक साथ महारैली करके देगे.
वैसे अगर यात्राओ की बात की जाय तो इस समय समाजवादी पार्टी के युवराज अखिलेश यादव भी प्रदेश में क्रांतिरथ के मार्फत अपने साइकिल की रफ्तार बढा़ने में लगें है. जब युपी सियासत की बात हो रही है तो मुस्लिम रहनुमाई का दावा करने वाले दलो की संख्या मे इस बार इज़ाफा हुआ है. इनकी संख्या इस दर्जन भर हो गयी है और. यह सियासी सुरमाओं के लिए खौफ का सबब है. जो मुस्लिम मतो के भरोसे चुनावी नैया पार लगाते, औऱ आने वाले समय सभी इसका ख्वाब पाले हुऐ है. यूपी में तीस जिलो की करीब सौ सीटो पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. मुस्लिम वोटो के बिखराव को समझने के लिए पिछले लोक सभा चुनाव के नतीजे काफी है. वानगी के तौर पर आजमगढ़ में लगातार हारने वाली भाजपा को मुस्लिम मतो के बिखराव के चलते ही खाता खोलने का मौका मिला. लेकिन मुसलमानो के बडे नेता दावा करते है कि अब मुस्लिम मतो का बिखराव नही होगा. क्योंकि मुसलमान जान गया है कि उसकी भूमिका क्या है.
ऐसे में युपी चुनावी महासंग्राम में सभी को साथ लेकर चलने की कवायद शुरु हो गयी है. इसी के परिप्रेक्ष्य में कॉग्रेसी युवराज राहुल गांधी इन दिनो अपने बुंदेल खण्ड यात्रा में सजग दिखायी पड़ रहे है. फंडा वही पुराना कि दलीतो के यहां रात गुज़ारना औऱ खाना. लेकिन यहां देखने वाली बात यह है कि सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मुले को आधार बना कर बसपा सुप्रिमो मायावती अब कौन से नये फॉर्मुले तलाशती है. वैसे चुनावी महौल को भाप कर वह इन दिनों अपने मंत्रीयो के कार्य शैली का आंकलन कर रही है. इसी के चलते पिछले कुछ महिनो में उन्होने अपने मंत्रीयो पर पैनी नजर रखते हुऐ कार्यवाही की है. यह भी इसी चुनावी खेल के फंडे साबित हो रहे है, क्योंकि इन मंत्रीयो और विधायको को टिकट देते समय और चुनाव ल़डवाते समय इसका आंकलन करना आवश्यक था. परन्तु उस समय शायद सत्ता पाना सर्वोपरि था. यह सत्ता अब आगे रहे ना रहे इसका कोई भरोसा नही, लेकिन दामन पर लगे दागो को धोना जरुरी हो गया है. वैसे दीगर बात यह होगी कि राजनीतिक चौसर का खेल खेलने वाले यह महारथी चुनावी महासमर में कितना सफल हो पाते है, यह बात भविष्य के गर्भ में है. क्योंकि यदि जनता की पुरातन सोच को आधार माना जाय तो कहीं यह गफलत ना साबित हो जाय, क्योंकि डॉ लोहिया जी ने कहा था कि मे लोकतंत्र विकसित सोच के लिऐ बीस वर्ष काफी है, और यह बीस वर्ष अब बदल चुके है. जनता बीस वर्ष मे काफी आगे जा चुकी है.
अभिषेक व्दिवेदी के साथ दीपक पाण्डेय
इंडिया हल्ला बोल