बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मायाजाल

भारत में लोकतन्त्र की पूरी तरह से हत्या हो चुकी है सभी स्तंभ ढह चुके है लेकिन वे ऐसा ढोंग कर रहे है जैसे कुछ नहीं हुआ इस लोकतन्त्र के शरीर मे कंपनी तंत्र घुस गया है और ये कंपनी-तंत्र जवाहरलाल के समय से शुरू हुआ है काफी दबाव से ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत से खदेड़ा लेकिन 126 विदेशी कंपनीया तो 1948 मे थी भारत मे…. ये सब काम नेहरू के दिशा निर्देशो के अनुसार हुआ । इस तंत्र मे कंपनियाँ जो चाहती है वही होता है कंपनियाँ चाहती है लोकतन्त्र का दिखावा करने वाली लच्चर संसदीय प्रणालियाँ, भ्रष्ट नौकरशाही, न्याय की जगह जटिल कानून, उनके घटिया उत्पादोको वैज्ञानिक समर्थन, उनके सनुकूल राष्ट्रिय नीतियाँ, मानसिक गुलामी फैलाने वाली स्कूली शिक्षा …. । वेटिकन चाहता है की भारत ईसाई बने तो सब जगह नर्सरी और किंडर गार्डन बन रहे है स्वाभाविक है ईसाई बनते भारतीय संस्कृति सांप्रदायिक हो जाती है और ईसाई तंत्र जीवन पद्धति मतलब कंपनी तंत्र का समर्थन ! क्योंकि कंपनियों को भी धर्म और संस्कृति से कोई लेना देना नहीं होता सिवाय पैसे के ।
एक जांच संस्थान कोक पेप्सी मे कीटनाशक पाए जाने की जांच करती है और जांच मे कीटनाशक पाए जाते है । कंपनियों के खिलाफ जबर्दस्त विरोध का माहोल वनता है, नेताओ की भ्रष्ट टोली जेपीसी बैठाती है लेकिन शरद पवार जैसे नेता और गोयनका जैसे दलाल साथ मिलकर के उस कंपनियों को अभयदन देते है, फिर मीडिया के जरिये लीपापोती की जाती है की “ऐ ! मूर्ख जनता पियो पेप्सी कोला जियो पेप्सी कोला, अब यही तुम्हारी नियति है”

आज वही सब हो रहा है कंपनियाँ चाहती है नमक बेचना तो आयोडाइज्ड नमक हो गया कानूनी और अन्य नमक बेचना गैर कानूनी, कंपनियाँ चाहती है घटिया तेलो को रेफ़ाइंड कर बेचना तो डॉक्टर उसे स्वास्थ्य प्रद बताने लगे  इस कंपनी तंत्र ने इतनी आर्थिक विषमता फैला दी है की एक ओर पाँच करोड़ लोगो की आय दस रूपए से भी कम है तो दूसरी ओर ऐसे लोग भी है जिनकी प्रतिदिन की आय लाखो-करोड़ो मे है । व्यक्ति मानव न रहकर इन शिकारी कंपनियों का शिकार बनकर रह गया है । लोकतन्त्र की आड़ मे ही ऐसे धंधे होते है । लोकतन्त्र की आड़ मे आहार, शिक्षा, नीति, कानून शोध ,म चिकित्सा, आर्ट, मीडिया सभी पर अपना शिकंजा कस लिया गया है अर्थात आपको हर जगह वही देखने सुनने को मिलेगा जो कंपनियाँ चाहेगी पूरी मीडिया पर कंपनी और चर्च तंत्र का कब्जा है
ऐसी परिस्थियों में एक ही उपाय है की इस तंत्र से असहयोग करें । आइये समाज मे फैलाए गए षडयंत्रो से आपको अवगत कराए और कुछ षड्यंत्र पर प्रकाश डाले –

फलां- फलां तेल में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है किसी भी तेल मे कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है कोलेस्ट्रॉल केवल यकृत मे बनता है
सोयाबीन में भरपूर प्रोटीन होता है सोयाबीन सूअर का आहार है मनुष्य के खाने लायक नहीं, भारत मे अन्न की कमी नहीं है इसका प्रोटीन सूअर आसानी से पचा सकता है मनुष्य नहीं जिन देशो मे वर्ष के 8-9 महीने ठंड रहती है वहाँ सोयाबीन जैसे आहार चलते है,
घी पचाने मे भारी होता है बुढ़ापे में मस्तिष्क, आंतों, मासो, और संधियों में रूखापन आने लगता है इसलिए घी खाना बहुत ही जरूरी होता है देशी घी के घी के अलावा अन्य सभी घी पचने में भारी होते है और भारत मे घी का अर्थ देशी गाय के घी से ही होता है
घी खाने से मोटापा बढ़ता है षड्यंत्र प्रचार: ताकि लोग घी खाना बंद करे और गाय मांस की मंडियों मे पहुंचे ।
जो व्यक्ति पहले पतला हो और बाद मे मोटा हो जाय, ऐसा व्यक्ति देशी घी खाने से पतला होता है
घी ह्रदय के लिए हानिकारक है देशी गाय का घी ह्रदय के लिए अमृत है पंचगव्य मे इसका स्थान है
डेयरी उद्योग दुग्ध उद्योग है डेयरी उद्योग मांस उद्योग है यहाँ बछड़े और बैलो को, वीमार, कमजोर गायों को, दूध देना बंद करते ही स्वस्थ गायों को कत्लखानों मे भेज दिया जाता है । दूध डेयरी का गौण उत्पाद है
आयोडाइज्ड नमक से आयोडिन की कमी पूरी होती है आयोडाइज्ड नमक का कोई इतिहास नहीं है, ये पश्चिम का कंपनी षडयंत्र है, आयोडाइज्ड नमक मे आयोडिन नहीं पोटेशियम आयोडेट होता है वह भी भोजन पकाने की विधि में गरम करते समय उड़ जाता है । स्वदेशी जागरण मंच के विरोध के फलस्वरूप 2000 मे बीजेपी सरकार ने यह प्रतिबंध हटा लिया था लेकिन कॉंग्रेस ने फिर से प्रतिबंध लगा दिया ताकि लूटतंत्र  चलता रहे
शक्कर का कारख़ाना शक्कर का कारख़ाना इस नाम की आड़ मे चलाने वाला शराब का कारख़ाना शक्कर इसका गौण उत्पाद है
शक्कर सफ़ेद जहर है रासायनिक प्रक्रिया के कारण कारखानो में बनी शक्कर सफ़ेद जहर है परंपरागत शक्कर एकदम सफ़ेद नहीं होती है थोड़ा हल्का पीलापन लिए होती है
फ्रिज मे आहार ताजा होता है फ्रिज मे रखा आहार ताजा दिखता है पर होता नहीं है, जब फ्रिज का आविष्कार नहीं था तब इतने समय रक्खे भोजन को सड़ा हुआ, बांसी भोजन कहते थे
चाय से ताजगी आती है गरम पानी से आती है ताजगी, चाय तो नशा (निकोटिन) है
सलाद स्वास्थ्यप्रद है केवल कफ प्रधान व्यक्तियों के लिए सलाद सेवनीय है कच्चे आहार से पका हुआ आहार अधिक सुपाच्य होता है इसलिए हर चीज का सलाद बनाना उचित नहीं सब्जियों पर सर्वाधिक कीटनाशकों का प्रयोग होता है और होटलों समारोहो मे जहां सब्जियों को ठीक से धोया भी नहीं जाता ।
एलोपैथी स्वास्थ्य विज्ञान है एलोपथी चिकित्सा विज्ञान है स्वास्थ्य विज्ञान नहीं
एलोपैथी विज्ञान ने बहुत प्रगति की है दवाई कंपनियों ने बहुत प्रगति की है एलोपैथी में मूल दवाइयाँ 480-520 है जबकि बाजार मे 1,00,000 से अधिक दवाइयाँ बिक रही है
बैक्टीरिया वायरस के कारण रोग होते है शरीर में बैक्टीरिया-वायरस के लायक वातावरण तैयार होने पर रोग होते है
भारत मे लोकतन्त्र है जनता के हितो का ध्यान रखने वाली जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार है भारत मे लोकतन्त्र नहीं कंपनी तंत्र है बहुत से सांसद, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी कंपनियों के दलाल है उनकी भी नौकरिया करते है उनके अनुसार नीतियाँ बनाते है, वे जनहित मे नहीं कंपनी हित मे निर्णय लेते है । भोपाल गैस कांड से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है जहां एक अपराधी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के आदेशानुसार फरार हो सका । लोकतन्त्र होता तो उसे पकड़ के वापस लाते ना ?
आज के युग मे मार्केटिंग का बहुत विकास हो गया है मेर्केटिंग नहीं ठगी का विकास हुआ है, माल गुणवत्ता के आधार पर नहीं विभिन्न प्रलोभन व जुए के द्वारा बेचा जाता है
टी॰वी॰ मनोरंजन के लिए घर घर तक पहुंचाया गया है जब टी॰वी॰ नहीं था तब लोगो का जीवन देखो और आज देखो जो आज इन्टरनेट पर बैठे जय सुलभता से जीवन जी रहे है उन्हें अहसास नहीं होगा ।
कंपनियों का माल बिकवाने और परिवार व्यवस्था को तोड़ने, इसाइवाद का प्रचार करने के लिए टी॰वी॰ घर-घर तक पहुंचाया जाता है
टूथपेस्ट से दाँत साफ होते है टूथपेस्ट करने वाले यूरोप में हर तीन मे से एक के दाँत खराब है दंतमंजन करने से दाँत साफ होते है मंजन – माँजना, क्या बर्तन ब्रश से साफ होते है ? मसूड़ों की मालिश करने से दाँतो की जड़ें भी मजबूत होती है
साबुन मैल साफ कर त्वचा की रक्षा करता है साबुन में स्थित ‘केमिकल’(कास्टिक सोडा, एस ॰एल॰एस॰) और चर्बी त्वचा को नुकसान पहुँचाते है, और डॉक्टर इसलिए चर्म रोग होने पर साबुन लगाने पर मना करते है । साबुन मे गौ की चर्बी पाए जाने पर विरोध होने से पहले हिंदुस्तान लीवर हर साबुन मे गाय की चर्बी का उपयोग करती थी आज पता नहीं मीडिया और सरकार दोनों बिके हुए है, मीडिया को विज्ञापन से पैसा मिलता है तो सरकार को दलाली और संरक्षण का
आटा चक्कियाँ औद्योगिक प्रगति की निशानी है इससे महिलाओ को कमर तोड़ मेहनत से राहत मिलती है हाथ से चक्की चलाने से महिलाओं में प्रसव सामान्य होता था प्रसव के बाद होने वाला कमर दर्द नहीं होता था बच्चो के पोषण के लिए स्तनो में भरपुर होता था । स्तन पान कराने से दो बच्चो के बीच में स्वाभाविक रूप से दो तीन वर्षों का अंतर होता था । कृत्रिम गर्भ निरोधकों के प्रयोग से होने वाली जटिलताओं का सामना नहीं करना पड़ता था । चक्की चलाने से शरीर सूडोल रहता था । आटे में सभी पोशाक तत्व विद्यमान रहते थे जो मशीन की शक्की मे नष्ट हो जाते है, आटे में सात्विकता बनी रहती थी एवं ताजा आटा खाया जाता था इसलिए ये कहते है की चक्की से महिलाओ को कमर तोड़ मेहनत से राहत मिलती है और टीवी के विज्ञापन और सीरियल देखने, के लिए समय मिलता है सीरियल मे कहानी की सीख की जगह उत्पाद का प्रचार और पारिवारिक विखराव के षड्यंत्र की शिक्षा का प्रचार अधिक होता है
महाझूठ (प्रचारषड्यंत्र ) सत्य
महाझूठ – रिफाइंग तेल स्वास्थ्य-प्रद है पाम, सोयाबीन, सूर्यमुखी, कुसुम, कपास, चावल की भूसी आदि के तेल बेस्वाद व दुर्गंध से भरे होते है उन्हें इससे मुक्त करने के लिए रिफ़ाइन करने की प्रक्रिया का आविष्कार हुआ, “क्या आप जानते है रिफ़ाइन करने के लिए प्रयुक्त रसायन (कास्टिक सोडा, हेकजेन, फुलर आर्क, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि ) के तेल मे थोड़ी मात्र मे रह जाते है, लगभग 2 – 3%, जिससे रक्तचाप (BP) बढ़ना, आदि बीमारियाँ होती है, तिल, सरसो, मूँगफली, नारियल आदि तेलो मे विद्यमान विटामिन व एंजाइमो के कारण जो विशेष स्वाद व सुगंध होता है वह रिफ़ाइन करने से नष्ट हो जाता है रिफ़ाइन तेलो मे स्वाद सुगंध न होने से मिलावट की आशंका अधिक है
सोयाबीन का तेल बहुत गुणकारी है सोयाबीन का तेल पेन्ट और वार्निश मे काम आने वाला तेल है अमेरिकी स्वार्थ के कारण इसका ज़ोर शोर से प्रचार हो रहा है
जर्सी एक गाय है जब हम भेंड को भेंस-गाय, गाय को याक-गाय नहीं कहते तो जर्सी को जर्सी-गाय क्यों कहते है ? जर्सी, होलेस्टीन, फ्रीजियन आदि गाय नहीं सदृश्य जानवर है ये जानवर पूतना की तरह विश और नपुंसकता के वाहक है इसी कारण पश्चिम मे ब्लेक-टी, ब्लेक-कॉफी, (दूध रहित कॉफी चाय) का प्रचालन है और दूध को सफ़ेद जहर मे गिना जाने लगा है जबकि गाय तो माता है एक ‘चलता फिरता औषधालय’ और दूध उसका अमृत है
वनस्पति गरीबों का घी । तेल को घी कहकर बेचने से बढ़ा झूठ और क्या हो सकता है ? तेल को हाइड्रोजन और निकल के द्वारा विकृत कर क्या असली घी बनाया जा सकता है ? यह तो रावण के साधू वेष धारण करने जैसा है, गौ हत्या के कारण भारत मे घी की कमी न हो इसलिए नकली घी बनाकर खिलाने की चाले नेहरू के कार्यकाल से चली आ रही है , इस घिनोने षड्यंत्र के तहत भारत मे ऐसे घी बनाने का षड्यंत्र का जमकर प्रयोग हुआ, जिसका पर्दाफाश करने के स्थान पर नेहरू ने इसको संरक्षण दिया, विदेशियों के साथ गौ का मांस चखने वाले को क्या पता गौ का महत्व और ध्यान
भारतीय गाये कम दूध देती है, जबकि जर्सी अधिक दूध देती है भारत मे गायों की 30 से भी अधिक नस्ले है, जिनमे अधिकांश अच्छे बैल देने वाली 28 नस्ले है कुछ नस्ले अच्छे बैल और अधिक दूध देने वाली नस्ले है, 6 नस्ले तो अधिक दूध देती है लेकिन जब तुलना की जाती है तब बैल देने वाली नस्लों और जर्सी आदि की तुलना की जाती है इन विदेशी जानवरो के नर खेती के काम के योग्य ही नहीं है ये सिर्फ कटने के लिए ही विकसित हुए है
धवल क्रांति के कारण भारत में दूध की नदियां बहाने लगी धवल क्रांति की आड़ मे कम दूध देने वाली गाय के नाम पर गौ माता पर भयंकर अत्याचार हुआ, रोगौत्पादक जर्सी आदि जानवरों और भेंसों को बढ़ावा दिया (हमने हमेशा व्यापार मे क्रांति का अर्थ विदेशी क्रांति से ही लिया)
हरित क्रांति ने देश को खाद्यान की समस्या हल कर दी हरित क्रांति की आड़ में प्रचलित संकर बीज, खाद्य और कीटनाशकों ने पूरे आहार को विषाक्त कर दिया फलस्वरूप आज एक एक व्यक्ति बीमार और अस्वस्थ है आवश्यकता अंग्रेज़ो द्वारा नष्ट सुजलाम सुफलाम कृषि व्यवस्था को बढ़ावा देने की थी , और आज भूख से कितने मरते है यह बात किसी से छुपी है क्या ? कोंग्रेसी पहले भी झूठ बोलते है और आज भी झूठ का सिलसिला अनवरत जारी है भारत निर्माण खूब अच्छे से हो रहा है
टीवी के विज्ञापन टीवी के विज्ञापन मे विज्ञापित वस्तुओं की लागत और बिक्री मूल्य में 12-14 गुने से भी अधिक का अंतर होता है जैसे 80-85 पैसे में बना कोल्ड ड्रिंक 10-12 रु॰ में 1.50 – 2.00 रु॰ में बने टूथपेस्ट 40-45 रु॰ में, 1.00-1.50 रु॰ में बने साबुन 15-20 रुपये में बेचे जाते है किसी भी सौन्दर्य की क्रीम मे हमेशा ट्राइ करने के लिए क्यूँ कहते है ऐसा क्यूँ नहीं कहते है की यह प्रमाणित है ? फिर भी लोग इसे लगते है
शुद्ध नमक एकदम सफ़ेद होता है सोडियम क्लोराइड का रंग हल्का सफ़ेद होता है, इसलिए शुद्ध नमक की पहचान उसका एकदम सफ़ेद न होना ही है उसे सफ़ेद करने के लिए उसमे मेग्नेशियम क्लोराइड जेसी अशुद्धियाँ मिलाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है मेग्नेशियम क्लोराइड अक्सर टीवी के विज्ञापन मे एरियल, टाइड जैसे डिटर्जेंट मे लिखा या दिखाया जाता है , नमक को सफ़ेद रंग से इसलिए करते है क्योंकि हल्का सफ़ेद रंग आज के जमाने मे अशुद्धता और मैल की निशानी है बाजार मे कम बिकता है

अब आइए जानते है की ये क्म्पनिये काम कैसे करती है –
मल्टी ब्रांड रिटेल्स वाली कंपनिया जैसे वालमार्ट कैसे काम करती हैं जिसे सरकार इस शीतकालीन सत्र में पास करना चाहती है –

1-  इन कंपनियों के पास बहुत पैसा होता है और देश का कानून इनके हाथ में होता है !
2- ये उत्पादको से सीधे लहसुन, प्याज, आलू जैस उत्पाद बहुत सस्ते रेट खरीद कर जमा कर लेते है और जब बाजार में सामान की कमी हो जाती है और उसके भाव बढ़ जाते है जैसे प्याज 3० रुपये किलो बिकेगा तब ये कंपनिया अपने जमा स्टाक से प्याज निकालकर 25/- किलो बेचेगी और रोज अखबार में प्रचार आयेगा की वालमार्ट प्याज 25/- में बेच रही है. जबकि खुले बाजार में प्याज 3०/- किलो है !
3- बड़ी कंपनियों का यही रवैया पूरे विश्व में है, भारत में यह करना बहुत आसान है क्योकि यहाँ पर सरकार और नेता दलाल, चोर और भ्रष्ट है.
4- हमारे समाज के गरीब दुकान बंद करके राहजनी करना शुरू कर देंगे क्योकि वालमार्ट और टेस्को जैसी कम्पनिया आने से ठेले वालो की दुकानदारी बंद होनी ही है ! यह ठगी बंद होना चाहिए !

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