इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 6 देशों के लिए लॉन्च किया सैटेलाइट

इसरो ने 2230 किलो के साउथ एशिया सैटेलाइट GSLV-F09 रॉकेट को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से दोपहर बाद 4:57 बजे लॉन्च किया गया। इसके जरिए पाकिस्तान को छोड़कर बाकी साउथ एशियाई देशों को कम्युनिकेशन की फेसेलिटी मिलेगी। इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं।

पाकिस्तान ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया था। बता दें कि 2014 में मोदी ने पीएम बनने के बाद पाकिस्तान को यह ऑफर दिया था। GSAT-9 को इसरो के बेंगलुरु स्थित सैटेलाइट सेंटर ने तैयार किया है। इसमें 12 कू-बैंड के ट्रांसपोंडर लगे हैं।इसे 50 मीटर ऊंचे GSLV-F9 रॉकेट से लॉन्च किया गया। इसमें क्रायोजेनिक इंजन के एडवांस्ड वर्जन का इस्तेमाल किया गया। GSLV की यह 11th लॉन्चिंग थी।

इसरो ने लॉन्चिंग के लिए पहली बार इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल किया। इससे 25% तक फ्यूल बचेगा।सैटेलाइट महज 80 किलो केमिकल फ्यूल से 12 साल तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा। आमतौर पर 2000-2500 किलो का सैटेलाइट भेजने में 200 से 300 किलो केमिकल फ्यूल लगता है।

GSAT-9 को तैयार करने में करीब 235 करोड़ रुपए की लागत आई है।नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को इस कामयाबी के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा यह एक ऐतिहासिक अवसर है। हमें आप पर गर्व है।बाद में नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सार्क देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ इस मूमेंट को सेलिब्रेट किया।

मोदी ने अफगानिस्तान के प्रेसिडेंट अशरफ गनी, बांग्लादेश पीएम शेख हसीना, भूटान पीएम थेरिंग तोबगे, मालदीव प्रेसिडेंट अब्दुल्ला यमीन, नेपाल पीएम पुष्प कमल दहल और श्रीलंकान प्रेसिडेंट एम सिरिसेना से बात की।पीएम ने कहा साउथ एशिया सैटेलाइट की कामयाब लॉन्चिग से पूरे रीजन को फायदा मिलेगा। आज का दिन ऐतिहासिक है।

इससे सार्क देशों को विकास में मदद मिलेगी। मैं अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के राष्ट्र प्रमुखों को धन्यवाद देता हूं। ये हम सबकी मिलीजुली कोशिश है। जिससे सभी देशों के लोगों के बीच बेहतर गवर्नेंस, बैंकिंग, कम्युनिकेशन, एजुकेशन और मौसम की जानकारी मिलेगी।

अफगानिस्तान के प्रेसिडेंट मो. अशरफ गनी ने भी सैटेलाइट की कामयाब लॉन्चिंग पर मोदी और इसरो को बधाई दी।इस सैटेलाइट का नाम पहले सार्क सैटेलाइट रखा गया था। पर पाकिस्तान के बाहर होने के बाद इसका नाम साउथ एशिया सैटेलाइट कर दिया गया।भारत के इस फैसले से पड़ोसी देशों को काफी हद तक आर्थिक मदद मिलेगी और कम्युनिकेशन में भी आसानी होगी।

बता दें कि 3 साल पहले नरेंद्र मोदी ने इसरो से सार्क देशों के लिए सैटेलाइट बनाने के लिए कहा था।फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन गोपाल बागले के मुताबिक, “भारत अपने पड़ोसियों के लिए अपना दिल खोल रहा है। इस योजना में किसी अन्य देश का कोई भी खर्च नहीं होगा। अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश और श्रीलंका ने मिशन का हिस्सा बनने की मंजूरी दे दी है।

पाकिस्तान को इससे बाहर रखा गया है।यह सैटेलाइट स्पेस में अपनी तरह का पहला होगा। दरअसल, स्पेस में सैटेलाइट भेजने वाली जितनी रीजनल एजेंसियां हैं, उनका मकसद फायदा कमाना है।इस योजना को नरेंद्र मोदी के एम्बीशस प्लान के तौर पर देखा जा रहा है। इससे इसरो 12 साल तक चलने वाले सैटेलाइट बनाएगा और इसमें हिस्सा लेने वाले देशों को 1500 मिलियन डॉलर देने होंगे।

इस प्रोजेक्ट से जुड़े और आईआईटियन प्रशांत अग्रवाल ने बताया मोदी ने असल में अपने नारे सब का साथ-सब का विकास को भारत के पड़ोस तक विस्तार दे दिया है, ताकि साउथ एशिया में गरीबों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

चीन 2007 से स्पेस डिप्लोमेसी के जरिए अपने रिलेशन मजूबत कर रहा है। उसने वेनेजुएला, नाइजीरिया, पाकिस्तान और श्रीलंका समेत कई देशों के लिए सैटेलाइट बनाए और लॉन्च किए हैं। हालांकि, कई देशों के लिए कॉमन सैटेलाइट भेजने की कोशिश उसकी तरफ से नहीं की गई। ऐसा करके मोदी ने चीन के असर को कम करने की कोशिश की है।

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