बदलते भारत की नयी तस्वीर 'अतुल्य भारत' का सच

लिखने से पहले बहुत सोचा कि कैसे शुरु करुं इस बदलते भारत की तस्वीर को, सोचते सोचते कवि प्रदीप की वह रचना याद आ गयी जिसको बहुत पहले पढ़ा था, और अब उस की कुछ लाइनें चरितार्थ होती दिख रही है’ ‘देख तेरे संसार की हालत,क्या हो गयी भगवान’

वास्तव में संसार रुपी भारत बदलता दिख रहा है, उसी तरह से जिस तरह से मौसम बदलता है। नवम्बर का महीना चल रहा है, बडे-बडे़ रईसो के लिये, आर्थिक रुप से संपन्न व्यक्तियों के लिए बेहद मजे का समय है। बेहद माकूल मौसम की शुरुआत हो चुकी है। अर्थात जाडे़ की शुरुआत हो चुकी है। लोग इस गुलाबी मौसम का लुत्फ उठा रहे है, यही नही कृषि प्रधान देश में रबी फसल की बुवाई चल रही है, हर तबके के लोग अपने-अपने काम में व्यस्त है। परन्तु समाज का एक तबका इन एहसासो से मरहूम है। जो देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, जिसके बारे में सीधेतौर पर कहना देश की गरिमा को चोट पहुंचाना है। बात उन दबे-कुचले गरीबो की जिनकी अपनी कोई दिनचर्या नही होती, जिनके घरो में कई दिनो तक चूल्हा ना जलना कोई नयी बात नही है। इनकी रोजीरोटी कहां पर होती है इसका अंदाजा किसी को नही… इसलिए तो ऐ कुडे के ढ़ेरो पर, तथा नालियों के किनारो पर, शहर के बड़ी बत्तीयों पर, ओवरबिजो के नीचे, और जब यह जगह भर जाती है तो सड़को के फुटपाथो पर, ये वह रैनबसेरे है जिनको आमलोग जानते है, पर एक स्थान जहां पर इंसान जाने से डरता है।

वहां पर अक्सर इन तबको के नवनिहाल और जवान अपने रोटी की तलाश में भटकते रहते है. लाशों के उतारे हुए कपडे तथा उनपर चढाये हुए सामान को लेकर अपनी जिन्दगी के अहम दिन को गुजारते है। गरीबो की तस्वीर को देखते हुए कागजो पर इतनी योजनाएं चल रही है और सरकारी अभिलेखो में दिन-व-दिन गरीबो की संख्या कम होती दिख रही है। लेकिन सच्चाई को देखे तो पैरो तले जमीन खिसक जाती है। भारत में कुल ५.१७ लाख गांव है। जिसमें भारत की लगभग ७० फीसदी जनता निवास करती है। भारत की कुल जनसंख्या का ४०.७४ करोड़ लोग आज भी गरीब है। अफ्रीका महादीप के १२ देशो के गरीबो की कुल संख्या से यह संख्या अधिक है। और हमारे देश के नेताओ को ६४ साल बाद भी यह तस्बीर नजर नही आती,   सरकार ने गरीबो को सवारने के लिए अनेको हथकंडे अपनाये है लेकिन इस भ्रष्ट-तंत्र में सभी समीकरण धूल फांकते नजर आये है। अफसोस तब होता है जब देश का स्लोगन विकास को प्रेरित करता है। लेकिन जब इन गरीबों पर नजर जाती है तो रुह कांप जाती है।

यह मुद्दा नया नही है यह वह मुद्दा है जो देश के साथ पैदा हुआ है, जिसके उपर आज के नेता राजनीति करके अपना ऊल्लू सीधा करते है। और इसी मुद्दे पर आज की भारतीय राजनीति का जाल बुना हुआ है, लिहाजा गरीब तबके के उपर ज्यादा बहस ना करके इसके उन्मूलन हेतू कुछ पुख्ता इंतजामात् करने होगे, जिससे देश छबि ही नही अस्मिता भी सुधर जायेगी।।

पुष्पेन्द्र मिश्रा

कानपुर

इंडिया हल्ला बोल

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