दिल्ली में नशेड़ियों की बढ़ती तदात

हमारी दिल्ली तुम्हारी दिल्ली हम सब की प्यारी दिल्ली यह जुम्ला कहना कितना असान हैं। पर जब हम हकीक्त के पन्ने पलट कर देखें तो पता चलता है कि हम सब के दिल मे कितना प्यार है अपनी दिल्ली के लिए लोगो के अन्दर प्यार है पर प्यार का इजहार करने का तरीका अफशोस जनक है यह सुनकर कुछ अजीब सा लग रहा है कि क्या कह रहा हूँ। पर बात सौ फीसदी सही है। सरकार हम सब की भलाई के लिए जगह- जगह पर बोर्ड तथा दिवारों पर लिखवाती है कि कानून का पालन करो। हमेशा नियम के साथ चलो तथा शहर को साफ-सुथरा रखो पर हम लोग है कि उसका उल्टा करते है। जहां पर लिखा होगा- नो पार्किंग हमलोग वहीं पर गाडी खडी करते हैं। जहां पर होगा कि कूडा करना या थूकना मना है हमलोग उसका विपरीत ही करते हैं। पर सोचो इस तरह का काम करेगे तो क्या हम अपने शहर से प्यार करते है…

अब इस बात की तफ्तीस हमलोगो को करना है क्योकि उपर दिये गये जुम्ले को हमी लोग दोहराते है। अगर बात करे दिल्ली मे रहने वालो रहीशदारों की तो उनके लिए कोई नियम कानून बना ही नही है। क्योकि उनके पास पैसा है पावर है और …. बहुत कुछ क्या आप ने कभी सोचा की राजधानी दिल्ली में एक्सीटेंट ज्यादा क्यों होता है वो भी खासकर रात में या दिल्ली में अपराध क्यो बढ़ रहे है… अब हम बताते है जिसको सुनकर आप के कान खडें हो जायेगे। दिल्ली में इसी साल 2011 में (13000) तेरह हजार लोग पकड़े गये है अभी तक जो शराब के नशे में टल्ली हो कर शहर की सडको पर गाड़ी से मौज-मस्ती करते पकड़े गये है। यही नहीं रिकॉर्ड पिछले दस सालों का देखे तो होश उड़ जाएगे। 

एक नजर पीयकड़ो पर….
सन् 2000 में 1545 लोग नशे की हालत में ड्राईविंग करते हुए दिल्ली पुलिस के हाथ दबोचे गये। सन् 2001 में 2464 लोग नशे की हालत में पकड़े गये। सन् 2002 में 2793 पियकडों को पुलिस ने धर दबोचा 2003 में 2664 लोग पुलिस के पकड़ में आए। सन् 2004 में 3551 का ग्राफ बढ़ा। जब नशे के आदि लोग बढने लगे तो दिल्ली पुलिस की परेशानीयां बढ़ गयी लेकिन फिर भी पुलिस नकाम नज़र आयी 2005 में पीयकडो की संख्या बढकर 4286 हो गयी।

जिसके बाद दिल्ली ट्रफिक पुलिस ने स्पेशल तरीके का ऑपरेसन शुरु किया जिससे 2006 में संख्या थोडी घटी जो कि 4192 हुई लेकिन ज्यादा अन्तर देखने को नही मिला फिर 2007 में एकाएक संख्या बढ़कर 8296 पर पहुंच गयी। पुलिस के बनाये गये नियम किसी भी काम नही आये। जिसके चलते 2008 और 2009 में पियकड़ो की संख्या 12784 का आकड़ा पार कर गया। प्रसाशन पूरी तरह से भग दिखाई पडने लगी जिसके चलते दिल्ली पुलिस ने 2010 में 1908 ड्राईविंग लाइसेंस रद्द किये लेकिन इस रद्द करने का कोई  संक्रात्मक परिणाम नहीं मिला।

कुल मिलाकर यह कह सकते है कि दिनो दिन पुलिस फेल होती नजर आती रही और सडको पर नशेडी धूम मचाते रहे। (यह सब डेटा इंटरनेट से लिया गया है जिसकी अधिकारिक पुष्टी हो चुकी है ईयर वाइज)  यह सब देखकर यही लगता है कि सरकार या पुलिस कुछ भी कर ले हम सुधरने वाले नही है। इंडिया हल्ला वोल की गुजारिस है  कि यह शहर हम सब का है और हमारे गाडीयों से दबकर मरने वाले भी हमारे लोग है। इसलिए हमसब को नियम का पालन करना चाहिए तथा अपनी एव अपने शहर की छबी बनाने में अग्रसर होना चाहिए। जिससे प्रसाशन हमारी सुरक्षा मुस्तैदी से कर सके और हम लोग गर्व से कह सके हमसब की प्यारी दिल्ली…

दीपक पाण्डेय
इंडिया हल्ला बोल

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