प्राचीन काल से ही स्त्रियों के लिए लंबे बाल रखने की परंपरा चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं इस प्रथा का निर्वाह करती हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि केवल महिलाओं को ही लंबे बाल रखने चाहिए लेकिन पुराने समय में पुरुष भी लंबे बाल रखते थें। लंबे बाल रखने के पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं।
सिर पर बनी चोटी को शिखा भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार अग्नि के बिना हवन पूर्ण नहीं होता है ठीक उसी प्रकार चोटी या शिखा के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं हो सकता है। प्रारंभ से ही शिखा को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह एक अनिवार्य परंपरा है, इससे व्यक्ति की बुद्धि नियंत्रित होती है।
योगशास्त्र में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों की चर्चा होती है। इनमें सुषुम्ना ज्ञान और क्रियाशीलता की नाड़ी है। यह मेरुदंड (स्पाईनल कॉड) से होकर मस्तिष्क तक पहुंचती है। इस नाड़ी के मस्तिष्क में मिलने के स्थान पर शिखा बांधी जाती है। शिखा बंधन मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों की रक्षा कर आत्मशक्ति बढ़ाता है।
महिलाओं के लिए चोटी या शिखा रखना क्यों जरुरी है? इस संबंध में ऐसा माना जाता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मस्तिष्क अधिक संवेदनशील होता है। इसी वजह से वातावरण की नकारात्मकता का सीधा प्रभाव महिलाओं पर तुरंत ही पड़ता है। सिर पर चोटी होने से नकारात्मक वातावरण से मस्तिष्क की रक्षा होती है।
अध्ययन के लिए आवश्यक है- एकाग्रता, नियमितता और पवित्रता। शिखा बंधन हमें इनके प्रति सजग रखता है और अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। शिखा के माध्यम से वह अपनी बुद्धि को रचनात्मकता के लिए ही उपयोग करेगा।
वैदिक शिक्षा पद्धति में यज्ञोपवीत संस्कार और शिखा (चोटी) होने पर ही शिक्षा आरंभ होती थी। ऐसा हमारे भीतरी अनुशासन को मजबूत करने के लिए किया जाता था। यज्ञोपवीत ब्रह्मचारी को गुरुकुल में यह बोध कराती थी कि वह ईश्वर को साक्षी रख पिता के घर से शिक्षा प्राप्त करने आया है। जबकि शिखा यानी चोटी यह ध्यान कराती थी कि उसकी बुद्धि पर उसका अपना नियंत्रण है।
हमारे मस्तिष्क के दो भाग माने जाते हैं। दोनों भागों के संधि स्थान यानी जुड़ने की जगह वाला हिस्सा सर्वाधिक संवेदनशील होता है। अधिक ठंड या गरमी से इस भाग को सुरक्षित रखने के लिए चोटी या शिखा बनाई जाती है