वृश्चिक का अर्थ है बिच्छू। इस आसन को करने में व्यक्ति की आकृति किसी बिच्छू के समान हो जाती है इसीलिए इसे वृश्चिकासन (Scorpion Pose) कहते हैं। इस योग आसन को शुरुआत में करना कठिन है। अभ्यास के बाद यह सरल ही लगता है।
सावधानी : इस आसन का अभ्यास धैर्य पूर्वक करें। जिन लोगों को ब्लडप्रेशर, टीबी, हृदय रोग, अल्सर और हर्निया जैसे रोग की शिकायत हो, वे यह आसन न करें।
अवधि/दोहराव : आप इस आसन की स्थिति में 20 से 30 सेकंड तक रह सकते हैं। और, इसे सिर्फ 2 बार ही करें।
आसन विधि : किसी दीवार के पास समतल भूमि पर नर्म आसन बिछाएं। फिर दोनों हाथों में कुछ अंतर रखते हुए उनकी हथेलियों को कोहनियों सहित भूमि पर टिका दें। दूसरी ओर दोनों घुटनों को भूमि पर टिकाकर किसी चौपाए की तरह अपनी आकृति बना लें। इस स्थित में आपका मुंह दीवार की ओर रहेगा।
अब सिर को हाथों के बीच टिकाकर पैरों को ऊपर ले जाकर सीधा करते हुए घुटनों से मोड़कर दीवार से टीका दें। अर्थात कोहनियों और हथेलियों के बल पर शीर्षासन करते हुए दोनों पैरों के पंजों को दीवार पर टिका दें।
अब सिर को उठाने का प्रयत्न कर दीवार को देखने का प्रयास करें। दूसरी ओर पैरों को दीवार के सहारे जहां तक संभव हो नीचे सिर की ओर खसकाते जाएं। 20 सेकंड तक इसी स्थिति में रहने के बाद पुन: सामान्य अवस्था में लौट आएं।
वृश्चिकासन की पूर्ण स्थिति में पैरों के पंजे सिर पर टिक जाते हैं। आप इसे दीवार के सहारे शीर्षासन करते हुए भी कर सकते हैं। इससे यह आसन करना आसान होगा।
वृश्चिकासन का लाभ : इस आसन को करने से कोहनी, रीढ़, कंधे, गर्दन, छाती और पेट में खिंचाव होता है। शीर्षासन और चक्रासन से जो लाभ मिलता है वही लाभ इस आसन को करने से भी मिलता है।
यह आसन पेट संबंधित रोग को दूर कर भूख बढ़ाता है। इसके अभ्यास से मूत्र संबंधित विकार भी दूर हो जाते हैं। खासकर यह चेहरे को सुंदरता प्रदान करता है। इसके नियमित अभ्यास से मुख की कांति बढ़ जाती है।