सिख शब्द का शाब्दिक अर्थ शिष्य है। श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज तक १० गुरु हुये। उनके बाद गुरुगद्दी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को सौंप दी गई थी। दस गुरुओं तथा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के हुक्म के अनुसार जीवन यापन करने वाला व्यक्ति सिख कहलाता है। इस समय सिख धर्म दुनियां का पांचवा सबसे बड़ा धर्म है। सिख धर्म के संस्थापक जगत गुरु श्री नानक देव जी हैं। श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी ने खालसा पंथ में उसे परिवर्तित किया। खालसा का अर्थ खालिस अर्थात शुद्ध होता है। इस प्रकार दस गुरुओं ने २४० वर्षों तक मेहनत कर मनुष्य को जिस सांचे मे ढाला, वह खालसा कहलाया।
श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी ने सन् १६९९ ई. की बैसाखी वाले दिन खालसा पंथ की नींव रखी। उन्होंने इस दिन सिखों को दीक्षित करने के लिये खंडे – बाटे का अमृत-पान करने की परंपरा शुरु की। गुरु की चरण-पाहुल की जगह गुरुबानी का पाठ करते हुये खंडे तथा – बाटे के प्रयोग द्वारा अमृत तैयार करके, उसे सिख को पिला कर दीक्षित करना शुरू किया। उन्होंने सिख को इस दिन एक अनूठी पहचान भी प्रदान की जिसे प्रत्येक दीक्षित सिख के लिये धारण करना अनिवार्य कर दिया। इस पहचान के अंतर्गत पांच चीजें आती हैं। प्रत्येक चीज का नाम ‘क’ अक्षर से प्रारंभ होने के कारण इसे ‘पांच ककार’ कहा जाता है। ये ‘ककार’ निम्नलिखित हैं – :
१) केशः – प्रत्येक सिख को हुकुम है कि वह जन्म से मृत्यु पर्यंत अपने शरीर के केशों की सम्भाल करे। सिर से पैरों के नख अर्थात शरीर के किसी भी हिस्से के केश सिख न तो