Geeta Ke Updesh – गीता के उपदेश

श्रीमद् भगवत गीता

ईश्वर की वाणीमय मूर्ति है भगवत गीता!  इसका अध्ययन हमारी मृत्यु को सँवारता है।

श्रीगीता कृष्ण की वांग्मय मूर्ति है! भगवान् वाणी के रूप में गीता के श्लोकों में बसते हैं। भगवान् ने महाभारत युद्ध से पहले, जब अर्जुन को मोह व्याप्त हो गया था, तब गीता का उपदेश दिया था। यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था भगवान् ने। भागवत में कहा गया है- श्री कृष्ण ने जब गीता उपदेश दिया, तो इसे अर्जुन के सिवा और कोई नही सुन सका। दोनों ओर की सेनाएं सम्मोहित सी खड़ी रहीं। अर्जुन ने गीता का उपदेश प्रभु से सुना और तमाम तरह की शंकाओं का समाधान भगवान से पाया। अर्जुन ने भगवान् का विराट रूप भी देखा। अर्जुन डर गए, बोले- हे वासुदेव, मैं आपको पहचान नहीं पाया, मुझे क्षमा कर दीजिये। मैंने आपको अपना सखा कहा और आपको साधारण मनुष्य समझता रहा।

श्री कृष्ण ने कहा जब युद्ध भूमि में आ गये हैं तो शत्रु को पराजित करना महत्वपूर्ण है। अर्जुन का मोह भंग हुआ और ”देवदत्त”,  जो उनके शंख का नाम था, उससे चुनौती भरा निनाद किया।

पांडवो ने वर्षों दुर्योधन का अत्याचार सहा। शान्ति के लिए बहुत प्रयास भी किया। १३ वर्ष तक वनवास किया ताकि युद्ध न हो। त्याग की अन्तिम सीमा तक गए पर युद्ध न टला। पांडवो ने अपनी रक्षा, न्याय और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध किया। दुर्योधन के अत्याचारों के प्रतिवाद में यह धर्मयुद्ध हुआ।

कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव की सेनायें आमने सामने खड़ी हैं। श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी हैं। अर्जुन ने कहा- केशव! रथ को एक बार दोनों सेनाओं के मध्य ले चलिए। श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए रथ को आगे बढ़ा दिया।

अर्जुन ने देखा- पितामह, आचार्य द्रोण और अन्य बंधु-बांधव युद्ध के मैदान में हैं। अर्जुन का मन शिथिल हो गया। कैसे करूँगा मैं इनसे युद्ध। मैं इनका वध

Check Also

Know About Bhishma Pitamaha । भीष्म पितामह के संपूर्ण जीवन परिचय के बारें में जानिए

Know About Bhishma Pitamaha : महाभारत एक बहुत ही विशाल ग्रंथ है। इस ग्रंथ में …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *