गीता में सभी समस्याओं के समाधान के उपाय

गीता के उपदेशों में आधुनिक समस्याओं का हल छिपा है। गीता फल के बिना कर्म करने का उपदेश देती हैं। व्यक्ति कर्म तो करता है लेकिन तुरंत फल की कामना करने लगता है। इससे अवसाद होता है। इससे बचने के लिए हमें गीता के उपदेश को आत्मसात करने चाहिए।

मानवी सभ्यता के अन्तः स्पन्दनों बाह्य गतिविधियों का अध्ययन-विश्लेषण करने पर उद्घाटित तथ्य यही स्पष्ट करता है कि उसे अद्यतन काल में संकट पूर्ण स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। बाह्यतः यह स्थिति किसी विश्व युद्ध जैसी भयावह न दिखाई देने पर भी अन्दर ही अन्दर घुमड़ने वाले ज्वालामुखी की तरह समूचे विश्व को अपने शिकंजे में फंसाये हुए है।

नीतिविहीन भौतिकता के यह स्पन्दन बाह्मतः अपना प्रभाव किस तरह से दिखा रहे है, इसे बताते हुए येले विश्वविद्यालय अमेरिका के प्राध्यापक श्री एरिक फ्राम अपनी कृति “मैन फोर हिम सेल्फः एन इन्क्वायरी इन टू दि साइकोलॉजी ऑफ एथिक्स” में कहते है कि अनैतिक भौतिकता का घुमड़ता ज्वालामुखी मनोरोगों के रूप में अपने अंगारे फैलाकर मानव प्रजाति को नष्ट करता हुआ चला जा रहा है।

श्री फ्राम स्पष्टतया कहते हैं कि “मनोरोगी होने का सीधा तात्पर्य है नैतिक मूल्यों की अवहेलना। उन्होंने इसी उपरोक्त कृति की भूमिका में स्पष्ट करते हुए कहा है- मनोविज्ञान-दर्शन नीति और समाज विज्ञान से पूर्णतया अभिन्न हैं। इनका परस्पर कभी तलाक नहीं हो सकता। इससे सम्बन्ध विच्छेद करने वाले मनोविज्ञान को वह सूडो साइकोलॉजी (झूठा मनोविज्ञान) कहते हैं।

भौतिकवादी सभ्यता की दौड़ में पृथ्वी के जिन भागों की गति काफी तेज है उनमें भी अमेरिका सब से आगे हैं। तदनुरूप वहाँ मनोव्यथाओं की बाढ़ भी अधिक हैं। कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय इंग्लैंड के मनोविज्ञान के प्राध्यापक डॉ. डेविड इंग्लेबी ने अपनी कृति “ क्रिटिकल साइकियाट्री में स्पष्ट किया है कि भौतिकता की दृष्टि से मुकुटमणि माने जाने वाले इस देश में मात्र एक वर्ष में मनःचिकित्सकों ने तत्सम्बन्धित रोगों के लिए

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