जब बना एक दिन का ‘नायक’

‘नायक’ फिल्म में अनिल कपूर साहब को जो उपलब्धि मिली उससे बड़ी उपलब्धि मुझे मिली। बस फर्क इतना था कि उन्हें उपलब्धि फिल्म में मिली थी और मुझे स्वप्न में। एक दिन मुझे स्वप्न आया कि मुझे एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बना दिया गया है। जैसे ही मैंने ये खबर सुनी मैं फूले नहीं समा रहा था। थोड़ी ही देर बाद ताजपोशी के बाद जब मैंने कार्यभार संभाला तो मेरे समक्ष समस्याओं का ढेर लग गया। मैं जब भी कुछ बोलने को होता फोन की घंटी मंत्रियों के तर्क फाइलों के गट्ठर और चैनलों की ब्रेकिंग मेरे मुंह पर ताला लगा देतीं। तब मुझे याद आए प्रिय मनमोहन सिंह। इन्हीं सब कारणों ने उनके मुंह पर ब्रेक लगा दिया था। बेचारे कभी कभार ही अपनी बात रख पाते थे।

माथा पीटते हुए मैंने एक कप चाय का आर्डर दिया। चाय पी ही थी कि चीन से फोन आया कि वियतनाम से संधी तोड़ दो नही तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। अभी फोन रखा ही था कि जनरल वीके सिंह फोन पर बोले साहब पाक ने फिर से घुसपैठ का प्रयास किया है। हमारी उससे मुतभेड़ जारी है। मैने डंटे रहो कह कर फोन रखा कि पीआरओ आकर बोला कि अन्ना हजारे की चिट्ठी आई है। उन्होंने कहा है कि जनलोकेपाल पारित करो नहीं तो पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। चिट्ठी पढ़ी ही थी कि तेलांगना विधायको का फोन आने लगा। विधायक मांग कर रहे थे कि जल्द ही तेलांगना को अलग राज्य बनाने की संस्तुती दी जाए नही तो वे बगावत पर उतर आएंगे। भाई बैठा तो देश की सर्वोच्च कुर्सीयों में से एक पर था लेकिन चारों तरफ से धमकीयों और बगावत का दौर चालू था।

इसके बाद का एक घंटा आरमदायक था। मगर ये क्या चपरासी अंदर आकर बोलता है साहब एक आरटीआई आई है। मैं डर गया और सोचने लगा कि कहीं किसी ने सम्पत्ती का ब्योरा तो नहीं मांग लिया है। मैं झल्लाकर बोला रख दो बाद में देखूंगा। अब मेरा पर्सनल मोबाइल बज पड़ा। देखा तो तिहाड़ से राजा का फोन था। वह बहुत गुस्से में था। राजा बोला 2जी घोटाला का पैसे तो सबमें बंटा था लेकिन सजा सिर्फ मैं ही क्यों खाऊं, तत्काल मेरी जमानत की व्यवस्था कराईये। उसको फिर से मैंने आश्वासनों का आक्सीजन चढ़ा कर दिलासा दे दिया।

भाई ये कुर्सी है या कांटो का जाल। इसमें बैठ कर दर्द ही दर्द मिल महसूस हो रहा था। भविष्य के बारे में सोचा तो याद आया कि पांच राज्यों में चुनाव होने है तो उसका खाका तैयार करवाना है। अब प्रश्न उठता है कि पार्टी की बैठक में किसको बुलाऊ और किसको नहीं। एक ओर पार्टी में गुटबाजी है दूसरी तरफ वरिष्ठ नेताओं की आपस में नहीं बनती। दिमाग टेंशन में था तो सोचा थोड़ी देर टीवी देख लूं तो मन बहल जाएगा। टीवी खोलते ही आवाज सुनाई दी ‘निष्क्रीय हैं प्रधानमंत्री। उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।‘ बढ़ती महंगाई और लगातार पेट्रो कीमतों हो रही वृद्धि को लेकर विपक्ष मेरी और पार्टी की टांग खींच रहा था। दूसरा चैनल बदला तो कामेडी शो चल रहा था। अभी चेहरे पर मुस्कान आई थी कि देखा राजू श्रीवास्तव मुझे ही हंसी का केन्द्र बनाए हैं। एक अन्य चैनल में काव्य सम्मेलन चल रहा था तो देखा कि उसमें भी कवि हम पर कविता बनाकर खूब तालियां बटोर रहे हैं। गुस्से में मैंने टीवी बंद कर दिया। शाम हो गई थी और घर के लिए निकल ही रहा था कि स्विस बैंके के मैनेजर का फोन आ गया। उसने प्रणाम किया तो लगा कि चलो कोई तो है जो मेरा सम्मान करता है। लेकिन यह क्या, वह बोला पीएम साहब रिशेसन के समय देश में इन दिनों घोटाले बंद हो गए हैं क्या? मैंने पूछा क्यों? वह बोला बहुत दिन हो गए बैंक में पैसे नहीं जमा किए आपने।

हाय राम! भाई ये कुर्सी मनमोहन जी को ही मुबारक हो।

प्रशांत भार्मा

इंडिया हल्ला बोल  

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