देश में शिक्षा की कमी नही खामिया है शिक्षण प्रणाली में

शिक्षा की कायाकल्प के लिए बड़ी-2 बातें हो रही हैं। इनके बीच यदि हम अपनेप्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को देखें तो इन बातों और दावों की असलियत औरउद्देश्य पता चल जायेंगे। पूरे शिक्षा जगत को किस तरह से से निजीकरण कीप्रयोगशाला में तब्दील करने की मुहिम शुरू कर दी गयी है। जब सूचना औरप्रसारण मंत्री ‘‘अंबिका सोनी’’ देश में चार और आर्इ0आर्इ0एम0सी0 जैसे संस्थानखोलने की घोषणा कर रही थी, उसी समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय केपत्रकारिता विभाग के छात्रों द्वारा अपने विभाग के अस्तित्व को बचाने के लिएआन्दोलन की शुरूआत करनी पड़ी। विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा मिले पांच वर्षबीत चुके हैं, लेकिन इसके हवा में उड़ान भरने की बात छोड़िए इसकी अपनी जमीनखिसकने लगी है। इसको केंद्रीय दर्जा प्राप्त होने से करोड़ो रू0. प्रतिवर्ष आते हैं।लेकिन सुधार के नाम पर कुछ नहीं होता है। ऐसे में पत्रकारिता विभाग केसामान्तर बी0ए0 इन मीडिया स्टडीज जैसे संस्थान खोलकर विवि द्वारानिजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मैं भी पत्रकारिता विभाग का छात्र हूं और अपने विभाग के अस्तित्व की लड़ार्इ में शामिल हूं। लाखों छात्र प्रतिवर्ष यहां नये-2सपने लेकर आते हैं, लेकिन विवि के नाम पर लाखों रू0. इनसे वसूले जाते हैं।पत्रकारिता विभाग के छात्रों का आन्दोलन सिर्फपत्रकारिता विभाग की ही नहीं है, अपितु उन सभी निजी शिक्षण संस्थानों के खिलाफ जो छात्रों से मोटी रकम वसूलते हैं, वैसे तोहर स्ववित्त्ापोषित कोर्स को लेकर हर केंद्रीय विवि के छात्रों द्वारा अपने तरीके से लड़ार्इ लड़ी जा रही है, लेकिन इ0वि0वि0इसका अहम् मोड़ है। अब सवाल यह उठता है कि पत्रकारिता विभाग के रहते इस विभाग के सामान्तर प्रोफेशनल स्टडी के नामपर किसी दूसरे पत्रकारिता कोर्स की कवायद? यदि पत्रकारिता विभाग 16000/- रु. में अच्छी तैयारी के साथ दो वर्ष का मास्टरऑफ जर्नलिज्म एण्ड मास कम्युनिकेशन कोर्स करवा रहा है फिर अलग से मीडिया सेण्टर और उसके तहत बी0ए0 इन मीडियास्टडी की जरूरत क्यों आ पड़ी जिसकी फीस 1030000रु. है। जाहिर सी बात है कि सस्ती शिक्षा का गला घोटने वाले निजीकरणको बढ़ावा दे रहे हैं और किस तरह मोटी रकम वसूली जा रही है, जो न तो युक्ति संगत है और नही न्याय संगत। अगर मानाजाय तो स्ववित्त्ापोषित कोर्स का जिम्मा यू0जी0सी0 उठाता है। कर्इ बार दी गयी राशि का उपयोग न होने के कारणयू0जी0सी0 को वापस लेनी पड़ती है। ऐसे में मीडिया स्टडी गोरखधंधा के सिवाय कुछ नहीं। इस आन्दोलन के सहयोग मेंगुलाबी गैंग, प्रभाष जोशी, मधु किश्वर, संदीप पाण्डेय जैसे लोगो ने सहयोग दिया। इसी बीच हमारे शिक्षक दिल्ली भी गयेलेकिन उनकी बातों को खारिज कर दिया गया। यानि बात स्पष्ट थी कि केंद्र में बैठे वही लोग इस निजीकरण को बढ़ावा देते हैं,जो श़िक्षा में सुधार की बात करते हैं। अगर महज स्ववित्त्ापोषित कोर्स के चश्में से शिक्षा में सुधार की कवायद चलती रही तोमानव संसाधन विकास मंत्री ‘‘कपिल सिब्बल’’ तक समान रूप से हर नागरिक को शिक्षा उपलब्ध नही करा पायेंगे। जब तकशिक्षा की जड़ो में जमी धूल झाड़ा पोंछा न जाय। विवि के वी0सी0 राजेन हर्षे इस आंदोलन में धृतराष्ट्र की भूमिका निभाने मेंकोर्इ कसर नहीं छोड़ी। अगर निजीकरण को रोका नहीं गया तो वो दिन दूर नहीं जब पूरब का ऑक्सफोर्ड कहलाने वाला विवि कीजमीन पूर्ण रूप से खिसक जाएगी। अन्त में यही कहना चाहूंगा- ‘‘एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्तां करने को, यहां पर हरसाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम गुलिस्तां क्या होगा।’’

अम्बरीश द्विवेदी

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