राहत का झुनझुना…

बढ़ती महंगाई के बीच यूपीए सरकार ने भले ही सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या को 6 से बढ़ाकर 9 कर आमजन को राहत देनी की कोशिश की हो लेकिन डीजल के कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को देने का फैसला आने वाले दिनों में आम आदमी की जेब पर चौतरफा वार ही करेगा।

पेट्रोलियम कंपनियों के अऩुसार उन्हें वर्तमान में डीजल पर 9 रूपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। पेट्रोलियम कंपनियां सरकार से लंबे समय से डीजल के दाम बढ़ाने की मांग कर रही थी ऐसे में जब सरकार ने तेल कंपनियों को इसका अधिकार दे ही दिया है तो निश्चित है कि तेल कंपनियां एक झटके में न सही लेकिन धीरे धीरे डीजल के दाम बढ़ाकर आम आदमी को हलाल करेंगी यानि की आने वाले समय में या यूं कहें कि आने वाले कुछ घंटों या कुछ दिनों में ही डीजल कंपनियां दाम बढ़ाकर अपना घाटा पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगी। डीजल के साथ दिक्कत ये है कि डीजल के दाम बढ़ने से सिर्फ डीजल महंगा नहीं होगा बल्कि डीजल से उपयोग होने वाली या डीजल से जुड़ी तमाम चीजों के दामों पर इसका असर पड़ेगा। जिसमें माल ढुलाई के साथ ही खेती, परिवहन, बिजली मुख्य रूप से शामिल हैं।

तेल कंपनियां जैसे जैसे अपना घाटा पूरा करेंगी वैसे वैसे आम आदमी की जेब खाली होती जाएगी। जिस प्रकार सरकार का सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर की बढ़ी हुई संख्या का लोगों को तुरंत फायदा मिलेगा उसी तरह तेल कंपनियों के हाथ में डीजल के दाम तय करने का सरकार का फैसला लंबे समय तक लोगों की जेब काटता रहेगा। सरकार में शामिल लोग या कांग्रेसी भले ही रसोई गैस सिलेंडरों की बढ़ी हुई संख्या पर वाहवाही लूटते हुए इसे सरकार की उपलब्धि वाली किताब में इसका उल्लेख कर रहे हों लेकिन आम आदमी ये कैसे भूल सकता है कि सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या 6 तक सीमित करने का फैसला भी इसी सरकार का है।

ये तो वही बात हुई कि पहले किसी चीज के दाम 10 रूपए बढ़ा दो और विरोध हो तो उसके दाम 5 रूपए कम कर दो…और फिर दाम कम करने का श्रेय ले लो…अऱे महाराज पांच रुपए तो फिर भी दाम बढ़े न। वैसे भी यूपीए सरकार रसोई गैस पर लोगों को राहत देने के लिए सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या में ईजाफा नहीं करती तो ये गैस सिलेंडर की आंच यूपीए को 2013 में 9 राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव और 2014 के आम चुनाव में बुरी तरह झुलसा सकती थी ऐसे में यूपीए ने जल्द ही इस पर राहत देने का फैसला लेने में ही शायद गनीमत समझी। कुल मिलाकर यूपीए सरकार ने आम आदमी को राहत के नाम पर सिर्फ झुनझुना ही थमाया है।

दीपक तिवारी

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