कोर्ट के फैसले पर भड़कीं शिवसेना

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शिवसेना ने न्यायालय के उस आदेश की आलोचना की है जिसमें कहा गया है कि सड़कों एवं फुटपाथ पर अस्थायी पंडाल लगाने की अनुमति देने से इंकार करना धर्म के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन नहीं है। शिवसेना ने कहा कि अदालत का यह फरमान पढ़कर हिन्दुस्तान की श्रद्धालु जनता को गलतफहमी हुई होगी कि यह फैसला किसी पाकिस्तान की अदालत ने सुनाया है। ध्वनि प्रदूषण पर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए बम्बई उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में कहा था कि कोई भी नागरिक किसी भी स्थान पर और कहीं भी ईश्वर की पूजा या अर्चना करने के बुनियादी अधिकार का दावा नहीं कर सकता है जब तक कि वह पूजा करने का उपयुक्त स्थल न हो।

शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है, ‘ न्यायालय का यह फरमान पढ़कर हिन्दुस्तान की श्रद्धालु जनता को गलतफहमी हो गई होगी कि यह फैसला किसी पाकिस्तान के न्यायालय ने सुनाया है। क्योंकि हिन्दुओं के पर्वो और उत्सवों पर इतने कड़े प्रतिबंध वहीं लादे जाते हैं।’ शिवसेना ने कहा कि बुनियादी बात यह है कि मुम्बई और महाराष्ट्र की जनता ने कभी भी गणेशोत्सव अथवा नवरात्रोत्सव के खिलाफ शिकायत नहीं की। इस तरह की शिकायत किसी ने नहीं की कि इस तरह के उत्सवों से ध्वनि प्रदूषण होता है, कान के पर्दे फट जाते हैं, सांस फूलने लगती है, निद्रा का नाश होता है।

शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया है, ‘ अगर कोई ध्वनि प्रदूषण की बात करता है, तब भिंडी बाजार और माहिम में मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने का साहस किसी के पास क्यों नहीं है ? ईद ए मिलाद त्योहार के दौरान ध्वनि का स्तर 120 डेसीबल तक पहुंच जाता है। लेकिन तब कोई ध्वनि का स्तर नहीं मापता है। त्योहारों एवं उत्सवों पर प्रतिबंध लगाने का मतलब है कि जनता की जिंदगानी से आनंद के अवसर छीन लेना।’ शिवसेना ने कहा कि पहले ही लोग महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से जर्जर हो चुके हैं ।

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