सरकार आयकर दायरा बढ़ने की और अग्रसर

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सरकार ने आयकर विभाग को चालू वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान हर महीने कम से कम 25 लाख नए आयकरदाताओं को खोजकर आयकर दायरे में लाने के निर्देश दिए हैं. देश के दूसरी श्रेणी के शहरों- इंदौर, भोपाल, जयपुर, सूरत, नागपुर, लखनऊ, वडोदरा, पिंपरी-चिंचवड़, चंडीगढ़, गुड़गांव, राजकोट, कानपुर, विशाखापट्टनम, फरीदाबाद, नवी मुंबई, गाजियाबाद, लुधियाना और नासिक आदि में आयकर निगरानी बढ़ाई जाएगी. आयकर विभाग और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को मिशन की तरह इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए कहा गया है. आयकर प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) का सबसे महत्वपूर्ण भाग है लेकिन इसकी कम वसूली सरकार के लिए लगातार चिंता का कारण बनी हुई है. 

नवीनतम आंकड़ों को देखें तो पाते हैं कि सरकार ने पिछले वित्त वर्ष 2014-15 में प्रत्यक्ष कर संग्रह के रूप में 6,96,200 करोड़ रुपए का राजस्व जुटाया है. यह तय लक्ष्य से लगभग 14 फीसद कम है. जहां चीन में कुल आबादी के करीब 10 फीसद आयकरदाता हैं, वहीं हमारे देश में आयकरदाताओं की संख्या चार करोड़ से भी कम है, जो कुल आबादी का चार प्रतिशत भी नहीं है. इन आयकरदाताओं में तुलनात्मक रूप से अधिक संख्या नौकरीपेशा लोगों की है जिनकी आयकर कटौती सेवायोजक के द्वारा वेतन स्रेत से अनिवार्य रूप से की जाती है. उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों में आयकर देने वाले लोगों की दृष्टि से भारत सबसे पीछे है. 

उल्लेखनीय है कि देश में सेवा क्षेत्र और स्वयं का कारोबार करने वाला एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो आयकर के दायरे से दूर है. यह सर्वविदित है कि देश की ऊंची विकास दर के साथ-साथ शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बलबूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है. वर्ष 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में मध्यम वर्ग के लोगों की क्रय क्षमता चमकीली ऊंचाई पर पहुंच गई है. देश के मध्यम वर्ग की बढ़ती हुई क्रय शक्ति के कारण भारतीय बाजार को दुनिया का सबसे चमकीला बाजार माना जा रहा है. नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में भारत में मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोग पूरे देश में 46 फीसद क्रेडिट कार्ड, 49 फीसद कार, 52 फीसद एसी तथा 53 फीसद कम्प्यूटर के मालिक हैं. लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में लोग आयकर नहीं चुकाते हैं. 

इतना ही नहीं, जगह-जगह गली-मुहल्लों में कई ऐसे दुकानदार दिखाई देते हैं जहां दिनभर ग्राहकी होती है. भारी लाभ होता है. लेकिन वे आयकर नहीं देते. गली-मुहल्लों में बड़ी संख्या में ऐसे किराना दुकानदार, पान वाले और बेकरी वाले हैं जिनके द्वारा बड़ी मात्रा में तरह-तरह का सामान बेचा जाता है. इनमें कई ऐसे नए जमाने के किराना दुकानदार हैं जो थोक कारोबारी के अंदाज में काम करते हैं. उनके पास डिब्बाबंद खाद्य उत्पादों से लेकर पर्सनल केयर और होम केयर उत्पादों का जखीरा सजा हुआ होता है, जिन पर वे अच्छी-खासी छूट भी देते हैं. इसीलिए छोटे दुकानदार और आम ग्राहक भी उनके स्टोर पर खिंचे चले आते हैं.

इन किराना स्टोर्स में सामान सीधे कंपनियों से भी खरीदा जाता है. लेकिन ये विभिन्न प्रकार के दुकानदार अच्छी आय कमाते हुए भी आयकर देने से बचते हुए दिखाई देते हैं. न केवल शहरों में बल्कि बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों के बड़े दुकानदार भी आयकर देना अपना कर्तव्य नहीं समझते. यदि हम हिंदुस्तान यूनिलीवर, बजाज कॉर्प और गोदरेज कंज्यूमर जैसी कंपनियां की ओर देखें तो पाते हैं कि ग्रामीण इलाकों में इनके कारोबार की रफ्तार शहरी इलाकों से तेज है. पिछले एक दशक में ग्रामीण बाजारों में सरकारी योजनाओं के माध्यम से धन का जो प्रवाह बढ़ा है, उससे व्यापारियों और व्यावसायियों की आय बढ़ी है. 

जहां एक ओर इन विभिन्न प्रकार के दुकानदारों, उद्यमियों और सेवा प्रदाताओं में से नए आयकरदाता खोजकर कर आधार बढ़ाया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर आयकर की उच्चतम सीमा के तहत आयकर चुकाने वालों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है. उल्लेखनीय है कि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत के करीब 90 फीसद करदाता उस श्रेणी में आते हैं जिनकी कर योग्य आय पांच लाख रुपए वाषिर्क तक है. कुल आयकर संग्रह में इस आयकर श्रेणी की हिस्सेदारी महज 10 फीसद ही है. जबकि कुल करदाताओं में से महज दो फीसद ही 20 लाख रुपए वाषिर्क या इससे अधिक की आय की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इस आयकर श्रेणी से आयकर संग्रह में 63 फीसद हिस्सेदारी आती है. 

इन श्रेणियों में आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है. लेकिन यदि आयकर विभाग आयकर की उच्चतम सीमा के तहत अधिक कर चुकाने वालों की कम संख्या पर ध्यान दे तो आयकर का बड़ा आकार हो सकता है. करोड़पति वर्ग के आयकरदाताओं पर ध्यान देने से कर संग्रह में सुधार हो सकता है. अधिक आय वाले संभावित करदाताओं के आधार की पहचान करना तुलनात्मक रूप से आसान होगा. मल्टी मिलियनेयर फेनोमेना 2014 न्यू वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार 2013 में जहां भारत में एक करोड़ डॉलर की शुद्ध संपत्ति वाले करोड़पतियों की संख्या  2,14,000 थी, वहीं यह संख्या 2014 में बढ़कर 2,26,800 हो गई. लेकिन विचारणीय यह है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार एक करोड़ रुपए से अधिक की आय पर कर चुकाने वालों की संख्या मात्र 42,800 ही है.  

जरूरत है कि जहां सरकार आयकर का दायरा बढ़ाए, वहीं छोटे और नौकरीपेशा वर्ग के आयकरदाताओं के लिए राहत भरे कदम भी उठाए. देश के छोटे आयकरदाता लगातार आयकर व्यवस्था में सुधार के साथ आयकर राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं. ये ऐसे छोटे आयकरदाता हैं जिनमें से ज्यादातर के पास अपनी कमाई को कम दिखा पाने की कोई गुंजाइश नहीं होती. इतना ही नहीं, यूपीए के जिस पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम को अधिक राजस्व जुटाने हेतु प्रत्यक्ष करों के नए-नए प्रयासों के लिए जाना जाता है, उन्होंने आयकर में ऐसे कई कठोर व जटिल प्रावधान लागू करा दिए जिनसे आयकरदाता मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. 

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