भारत ने ईरान से बन रहे 7200km लंबे कॉरिडोर का काम तेज किया

ईरान से भारत तक बनाए जा रहे 7200 किलोमीटर लंबे इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर (INSTC) का काम तेज कर दिया गया है। माना जा रहा है कि चीन की वन बेल्ट वन रोड पॉलिसी की चलते इस काम में तेजी लाई गई है। इससे भारत की सेंट्रल एशियाई देशों (कजाकिस्तान, किर्गीजस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान), रूस और यूरोप तक पहुंच हो जाएगी।
बता दें कि चीन, पाक के ग्वादर पोर्ट से शिनजियांग तक चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) बना रहा है, जो पाक के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से गुजरेगा। ये कॉरिडोर चीन के OBOR प्रोजेक्ट का ही हिस्सा है। भारत, CPEC को लेकर अपना विरोध जता चुका है।न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, भारत चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान के बॉर्डर से लगे शहर जरांज तक 883 किमी की सड़क बना चुका है। इसे 2009 में भारत के बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन ने बनाया था।
इस रोड से अफगानिस्तान के 4 शहरों हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ को जोड़ा गया है।इसी साल अगस्त में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी ईरान दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने कहा था कि चाबहार से अफगानिस्तान तक रेलवे लाइन और सड़क बनाने पर बात चल रही है। इससे हमें रूस तक एक्सेस मिल जाएगा।गडकरी ने ये भी कहा था उम्मीद है कि 12-18 महीने में चाबहार शुरू हो जाएगा। इससे व्यापार के लिए कई मौके मिलेंगे।
यह भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए एक गेटवे की तरह काम करेगा।बता दें कि सितंबर, 2014 में ईरान की रिक्वेस्ट पर भारत सरकार ने चाबहार पोर्ट पर डेवलपमेंट करने की बात कही थी।इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) की स्थापना 12 सितंबर 2000 को सेंट पीटर्सबर्ग में ईरान, रूस और भारत ने की थी। इसका मकसद मेंबर कंट्रीज के बीच ट्रांसपोर्टेशन की मदद को बढ़ाना था।
 
यह कॉरिडोर हिंद महासागर (India Ocean) और फारस की खाड़ी (Persian Gulf) को कैस्पियन सागर से ईरान के जरिए जोड़ेगा, फिर फिर रूस से होते हुए नॉर्थ यूरोप तक पहुंचेगा।चीन से पाकिस्तान के बीच बने CPEC की कुल लंबाई करीब 3000 किलोमीटर है। इसके मुकाबले INSTC की लंबाई 7200 किलोमीटर है।
 
बता दें कि सेंट्रल एशियन रिपब्लिक (कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान) में नेचुरल गैस और तेल का भंडार है।चाबहार को पाकिस्तान उसके लिए खतरा बता रहा है। यह पोर्ट पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर है।मई, 2016 में नरेंद्र मोदी ईरान के दौरे पर गए थे। वे 15 साल में पहली बार ईरान जाने वाले भारतीय पीएम थे।उन्होंने चाबहार पोर्ट के लिए 50 करोड़ डॉलर की मदद देने का एलान किया था।
 
OBOR, प्रेसिडेंट शी जिनपिंग का पसंदीदा प्लान है। इसके तहत चीन पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप को सड़क से जोड़ेगा। ये चीन को दुनिया के कई पोर्ट्स से भी जोड़ देगा।एक रूट बीजिंग को तुर्की तक जोड़ने के लिए प्रपोज्ड है। यह इकोनॉमिक रूट सड़कों के जरिए गुजरेगा और रूस-ईरान-इराक को कवर करेगा।दूसरा रूट साउथ चाइना सी के जरिए इंडोनेशिया, बंगाल की खाड़ी, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, ओमान के रास्ते इराक तक जाएगा।
पाक से बन रहे CPEC को इसी का हिस्सा माना जा सकता है। फिलहाल, 46 बिलियन डॉलर के चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर काम चल रहा है। बांग्लादेश, चीन, भारत और म्यांमार के साथ एक कॉरिडोर (BCIM) का भी प्लान है।CPEC के तहत पाक के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग को जोड़ा जा रहा है। इसमें रोड, रेलवे, पावर प्लान्ट्स समेत कई इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट किए जाएंगे।
CPEC को लेकर भारत विरोध करता रहा है। हमारा दावा है कि कॉरिडोर पाक के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से गुजरेगा, तो इससे सुरक्षा जैसे मसलों पर असर पड़ेगा।13-14 मई को बीजिंग में हुई OBOR समिट में भारत शामिल नहीं हुआ था। चीन ने भारत को शामिल होने के लिए न्योता भेजा था।
भारत ने कहा था हम क्षेत्र में कनेक्टिविटी को लेकर जोर देते रहे हैं लेकिन OBOR में पाकिस्तान की तरफ से समस्या रही है। इसकी वजह ये है कि OBOR का हिस्सा माना जाने वाला चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पीओके से होकर गुजरेगा।भारत ने समिट शामिल न होने की वजह कश्मीर और सॉवेरीनटी (संप्रभुता) को बताया था। इसमें दुनियाभर के 29 देश शामिल हुए थे।

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