भारत दौरे पर 3 दिन के लिए आज आएंगे ईरान के प्रेसिडेंट हसन रूहानी

ईरान के प्रेसिडेंट हसन रूहानी आज तीन दिन की यात्रा पर भारत आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में ईरान गए थे। रूहानी की ये विजिट दोनों देशों के लिए अहम है। ईरान को विकास के लिए भारत सरकार और यहां की कंपनियों की मदद चाहिए। वहीं, भारत अपनी वेस्ट एशिया पॉलिसी के तहत उसे अहम साथी बनाना चाहता है।

चाबहार पोर्ट को भारत बना ही रहा है। कुछ हद तक यहां से ऑपरेशन भी शुरू हो गए हैं।ईरान सरकार के खिलाफ हाल ही में हिंसक प्रदर्शन हुए। लोग 2 वजहों से नाराज थे। पहली- खाद्यान की कमी। दूसरी- बेरोजगारी। न्यूक्लियर प्रोग्राम की वजह से लगे बैन ईरान से हटने जरूर हो चुके हैं। लेकिन, इनका असर अब तक है।

इन्हीं से परेशान जनता सरकार से नाराज है। रूहानी वादों पर खरे भी नहीं उतरे।रूहानी अब विकास को रफ्तार देना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें दूसरे देशों की तुलना में भारत ज्यादा बेहतर दोस्त नजर आता है। रूहानी खुद कह चुके हैं उनके सामने जो चुनौतियां हैं, उनसे निपटने में भारत बहुत मदद कर सकता है।

अमेरिका चाहता है कि ईरान अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम हमेशा के लिए छोड़ दे। डोनाल्ड ट्रम्प ने कुछ दिनों पहले अमेरिकी कांग्रेस से कहा था कि पुराने समझौते के तहत ईरान के यूरेनियम एनरिचमेंट (यूरेनियम संवर्धन या परमाणु हथियार बनाने के लिए खासतौर पर यूरेनियम को तैयार करना) पर रोक हमेशा के लिए होनी चाहिए, सिर्फ 2025 तक ही नहीं। यानी वो पुराने समझौते में बदलाव चाहते हैं। 

अमेरिका अब ईरान पर बैलेस्टिक मिसाइल प्रोग्राम बंद करने का दबाव भी डाल रहा है। ईरान झुकने को तैयार नहीं है। खास बात ये है कि सिर्फ अमेरिका ही है जो ईरान पर दबाव डाल रहा है। जर्मनी और बाकी ताकतवर देश मानते हैं कि ईरान ने यूएन समझौते का पालन किया है। अब रूहानी चाहते हैं कि भारत भी ईरान की मदद करे।

ईरान में सरकार या राष्ट्रपति से ज्यादा ताकतवर वहां के मुख्य धार्मिक गुरू हैं। संसद, सरकार और राष्ट्रपति को उनके बताए रास्ते पर ही चलना पड़ता है। रिवोल्यूशनरी गार्ड (ईरान की सेना) भी मुख्य धार्मिक गुरू के प्रति जवाबदेह होती है।रूहानी जब भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं तो इसका मतलब ये है कि उन्हें देश की इन सभी ताकतों का समर्थन हासिल है।

यानी भारत को पश्चिम एशिया में एक मजबूत आधार मिल चुका है। ईरान शिया मुस्लिम मेजॉरिटी वाला देश है। भारत में भी करीब 15 फीसदी शिया मुसलमान हैं। यानी धार्मिक तौर पर भी करीबी है।भारत को सस्ते ऑयल और गैस के लिए पश्चिम एशिया की जरूरत है। ईरान समेत इस रीजन के बाकी देश इस सच्चाई को जानते हैं।

अमेरिका अब अपनी जरूरतों के लिए इन मुल्कों का मोहताज नहीं रहा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। एनर्जी सेक्टर में दोनों देश मिलकर बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं।चाबहार पोर्ट दोनों देशों का प्रोजेक्ट है। कुछ हद तक शुरू हो चुका है। यहां से बिना पाकिस्तान जाए अफगानिस्तान और आगे के मुल्कों तक सामान सप्लाई किया जा सकता है।

दोनों ही देश चाहते हैं कि चाबहार का काम तय वक्त से पहले पूरा किया जाए। ईरान में इससे रोजगार बढ़ेगा। रूहानी इस पर भारत की मदद चाहेंगे।ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि रूस, पाकिस्तान और कुछ हद तक ईरान भी अफगान तालिबान को मदद करते हैं। अफगानिस्तान में भारत की बड़ी मौजूदगी है। तालिबान अफगान सरकार और अमेरिका के लिए खतरा है।

रूहानी पर भारत दबाव डाल सकता है कि वो तालिबान और दूसरे आतंकी संगठनों पर सख्ती दिखाएं।प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम एशिया पर फोकस रखा है। मोदी खुद दो साल पहले ईरान गए थे। भारत इस इलाके में आर्थिक और सामरिक हितों पर फोकस कर रहा है।

इजरायल के सबसे बड़े अखबार ‘येरुशलम पोस्ट’ ने 13 फरवरी को एडिटोरियल में लिखा- मोदी ने नेतन्याहू का दिल्ली में वेलकम किया। इसके बाद वो फिलिस्तीन, ओमान और यूएई गए। अब रूहानी भारत आ रहे हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि वो अकेले ही वेस्ट एशिया से भारत के हितों के बारे में डील कर सकते हैं। भले ही इन देशों के आपसी रिश्ते खराब क्यों ना हों।

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