महाभियोग नोटिस खारिज होने पर सुप्रीम कोर्ट जा सकती है कांग्रेस

अगर राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस खारिज होता है तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। पार्टी नेताओं ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) से अपील की कि महाभियोग पर फैसला होने तक उन्हें खुद को न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों से दूर रखना चाहिए। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा दीपक मिश्रा के बचाव में आ गई है।

सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा चीफ जस्टिस के पद के साथ समझौता कर रही है और न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा रही है। बता दें कि शुक्रवार को चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कांग्रेस समेत 7 दलों ने 64 सांसदों के दस्तखत वाला नोटिस राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को सौंपा था।

सुरजेवाला ने कहा सीजेआई को खुद कहना चाहिए कि भाजपा उनके ऑफिस पर राजनीति ना करे। सीजेआई का ताल्लुक किसी भी पार्टी से नहीं होता। भाजपा के सांसद और मंत्री उनका बचाव क्यों कर रहे हैं? देश के चीफ जस्टिस को किसी भी तरह के संदेह से परे होना चाहिए। अगर दीपक मिश्रा का कामकाज संदेह में घिरा है, तो उन्हें खुद को न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों से दूर रखना चाहिए।

हमने ये उनके विवेक पर छोड़ा है। क्या उन्हें खुद को जांच के सुपुर्द करना चाहिए ताकि सीजेआई का दफ्तर और उनकी खुद की ईमानदारी स्पष्ट हो सके। इससे ये निश्चित होगा कि न्यायिक व्यवस्था का सही तरह से पालन किया गया।कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने कहा भाजपा सीजेआई को ओडिशा से कैसे जोड़ सकती है। वे पूरे देश के चीफ जस्टिस हैं।

मुझे उम्मीद है कि राज्यसभा के सभापति इस मुद्दे पर संविधान के प्रावधानों के तहत उचित फैसला लेंगे। देश और आम आदमी जवाब जानना चाहता है। मुझे लगता है कि तब तक सीजेआई को खुद को जांच के सुपुर्द कर देना चाहिए।सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी ने कहा, “न्यायाधीशों की ईमानदारी को जनता गर्व से देखती है।

लेकिन, अगर इस पर जरा सा भी शक होता है तो ये संसद की जिम्मेदारी होती है कि इस पर ध्यान दे। एक सांसद के तौर पर हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। हम ये बड़े भारी मन से कर रहे हैं, लेकिन ये देश लोकतंत्र के हित में है कि जांच होनी चाहिए। अगर किसी तरह की जांच नहीं होती है तो ये सुप्रीम कोर्ट के लिए बड़ा नुकसानदायक होगा।

चीफ जस्टिस पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस समेत 7 दलों ने महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस वेंकैया नायडू को सौंपा था। इसमें 64 सांसदों के दस्तखत थे।कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने शुुक्रवार को सभापति को सौंपे सांसदों के नोटिस का हवाला देते हुए वो पांच आरोप बताए थे। इनके आधार पर ही चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस लाया गया है।

पहले आरोप के बारे में सिब्बल ने कहा था हमने प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज और एक दलाल के बीच बातचीत के टेप भी राज्यसभा के सभापति को सौंपे हैं। ये टेप सीबीआई को मिले थे। इस मामले में चीफ जस्टिस की भूमिका की जांच की जरूरत है।एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ सीबीआई के पास सबूत थे, लेकिन चीफ जस्टिस ने सीबीआई को केस दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी।

जस्टिस चेलमेश्वर जब 9 नवंबर 2017 को एक याचिका की सुनवाई करने को राजी हुए, तब अचानक उनके पास सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से बैक डेट का एक नोट भेजा गया और कहा गया कि आप इस याचिका पर सुनवाई नहीं करें।जब चीफ जस्टिस वकालत कर रहे थे तब उन्होंने झूठा हलफनामा दायर कर जमीन हासिल की थी।

एडीएम ने हलफनामे को झूठा करार दिया था।1985 में जमीन आवंटन रद्द हुआ, लेकिन 2012 में उन्होंने जमीन तब सरेंडर की जब वे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए गए।चीफ जस्टिस ने संवेदनशील मुकदमों को मनमाने तरीके से कुछ विशेष बेंचों में भेजा। ऐसा कर उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया।

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