नरेंद्र मोदी सरकार ने एक साल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के 4,200 से भी ज्यादा हिंदुओं को भारत की नागरिकता दी है । यह पिछले पांच साल के ऐसे आंकड़े से चार गुना ज्यादा है। अप्रैल 2015 के आखिर में बीजेपी सरकार ने इन देशों के 4,230 हिंदुओं को नागरिकता दी। इन लोगों ने भारत में शरण मांगी थी। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के पांच साल के कार्यकाल में ऐसे 1,023 लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई थी।
ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता देना बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी ने दुनिया के किसी भी हिस्से में धार्मिक भेदभाव का शिकार हो रहे हिंदुओं के लिए भारत को ठिकाना बनाने का ऐलान कर रखा है। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में भेदभाव के शिकार हिंदुओं के लिए भारत को स्वाभाविक घर बताया था।
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया, ‘सरकार ने भारतीय मूल के उन लोगों की दिक्कतों को दूर करने का निश्चय किया है, जो इस देश में लंबे समय से रह रहे हैं।’ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि आने वाले महीनों में पड़ोसी इस्लामिक देशों के हिंदुओं को भारतीय नागरिकता दिए जाने का ट्रेंड तेज हो सकता है। उनके मुताबिक, गृह मंत्रालय पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश छोड़कर आने वाले हिंदुओं के लिए लंबे समय का वीजा और नागरिकता को लेकर तेजी से काम कर रहा है।
पिछले साल मई में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद तकरीबन 19,000 प्रवासियों को पहले ही मध्य प्रदेश में लंबी अवधि का वीजा दिया गया है। मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक, कुल 11,000 लोगों को वीजा मुहैया कराया गया है।
अधिकारियों के मुताबिक, नागरिकता कानून में हाल में हुए बदलाव से भारत में स्थायी ठिकाना पाने वाले लोगों की तादाद दिसंबर 2016 तक बढ़कर 10 लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है। कानून में बदलाव के तहत नागरिकता हासिल करने के लिए लंबे समय से पड़े आवेदनों को जल्द से जल्द निपटाने की बात है।
पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 के आखिर तक पाकिस्तान में 70 लाख से भी ज्यादा हिंदू थे। अफगानिस्तान में इस तरह के भरोसेमंद आंकड़े इकट्ठा करना मुश्किल है। हालांकि, एक अनुमान के मुताबिक, 2011 के आखिर में इस मुल्क में सिखों और हिंदुओं की आबादी तकरीबन 6,000 थी।
पिछले साल दिसंबर में नागरिकता कानून में हुए बदलाव से पहले पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शख्स को भारतीय नागरिकता हासिल करने से पहले भारत में लगातार 12 महीनों तक रहना पड़ता था। हालांकि, संशोधन के जरिये सरकार ने इस शर्त में ढील देते हुए इसकी मियाद घटाकर 30 दिन कर दी और वह भी एक जगह पर नहीं।