धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता

words_ca_kill

धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता

हिंदी में एक कहावत प्रचलित है कि “मुंह से निकले शब्द वापिस नहीं लिए जा सकते ठीक वैसे ही जैसे धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता ” इसलिए हमे बड़ी सावधानी से अपने शब्दों का चुनाव करना चाहिए। बडबोलापन दोस्तों के बीच आपको जरूर लोकप्रियता दिला सकता है लेकिन कभी कभी ये नुकसानदेह होता है। क्योकि पहली दफा हमसे मिलने के बाद जो छवि किसी इन्सान के लिए बनती है उसमे उस से हुई हमारी बातचीत का ही शत प्रतिशत योगदान होता है। उसके बाद बाकि सारी चीजों का नंबर आता है। हम एक कहानी के जरिये इसे समझते है।

एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया। उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा।

संत ने किसान से कहा, ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो, और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो।” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया।

तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”

किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे। किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा। तब संत ने उससे कहा कि जिस तरह तुम पंखो को वापिस नहीं समेट सकते उसी तरह तुम लाख पश्चाताप कर लों लेकिन अपने बोले हुए शब्द वापिस नहीं ले सकते। इंसानी जिन्दगी में भी ये बात लागु होती है इसलिए हमे शब्दों के चुनाव में हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए क्योकि कई बार कोई अच्छा अवसर भी इसी आदत से हमारे हाथ से निकल जाता है।

Check Also

आसान नहीं है निष्पक्ष पत्रकारिता – पीनाज त्यागी

पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जहां अगर आपको कुछ मुकाम हासिल करना है तो आपमें …