नारी बिन विज्ञापन न होय…

नारी जिसे पहले के समय में देवी माना जाता था. और वह लक्ष्मी का स्वरूप होती थी जिनके बिना कोई भी अनुष्ठान पूरा नही होता था. वही नारी आज ऐसी हो गयी है. जिसको पहचानना मुश्किल होता जा रहा है. आज का दौर तेजी से बदलते नैतिक मूल्यों का है. इस युग में कल तक जो कुछ वर्जनाओं के घेरे में था. उसे आज स्वीकार कर लिया गया है. अच्छाई – बुराई के पैमानों में निरंतर परिवर्तन हो रहा है.

आज अजीब – गरीब विज्ञापन देखेजाते है मिमिक्री करते सर्कस के जोकर की तरह हाथ पाव नचाते मुंह बनाते करतब करते जवान स्त्री पुरुष बूढ़े बुढ़िया और बच्चे तक भी सबकी सिरकत करते है. उनमे विज्ञापन के नारी छेत्र के स्वरूप में क्रांति कारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आज से चार दशक पूर्व किसी महिला का बाल कटवाना, लिपस्टिक लगाना, जींस, टी शर्ट जैसे परिधान पहनना अशिस्ट माना जाता था. किन्तु वर्तमान में यह आम बात हो चली है. आये दिन नये – नये विज्ञापनों में स्त्रियों के नये – नये रूप देखने को मिलते है इस समय स्त्रियों का जो रूप सबसे ज्यादा आश्चर्य कर रहा है. वह रियलिटी शो और क्रिकेट के मैदान पर देखा जा सकता है. जहा पर वह अपने फूहड़ पन कापरिचय देते हुए नजर आती है और इसमें वह वो सब भी कर जाती है. जो शायद ही किसी को पसंद आता हो, लेकिन वह उसमे इतनी ज्यादा व्यस्त होती है. की वह अपनी तहजीब को भी भूल जाती है.

रियल्टी शो में अगर राखी सावंत अपनी बेहुदा एक्टिंग नही करेगी तो क्या वह नही चलेगा तब? भी चलेगा लेकिन वह इस तरह के कारनामे कर के दुनिया सभी अपनी एक अलग पहचान बना रही है लेकिन उनकी पहचान किस तरह की बन रही है या तो सबजानते है

इसलिए आज के दौर में परिवार के साथ बैठ कर किसी प्रोगाम को देखना बहुत ही मुशकिल होता है क्योकि हम कितना भी एंडवास हो जाय पर हमे अपना वजुद नहीं भूलना चाहिए. जो भूल गया वह रहा नही इसलिए कही ना कही इसी वजह से महिलाओं की क्रद कम होती जा रहीं हैं.

सूरज बिन उजाला होए, रात बिन अँधेरा होए
बादल बिन बरसात होए, लेकिन नारी बिन विज्ञापन न होए


अर्चना यादव

इलाहाबाद

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